में हिन्दी का कवि और गद्य की अनेक विधाओं का लेखक हूँ । मेरी अब तक २९ पुस्तकें हिन्दी में छपी हैं ।
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आत्म चिन्तन महत्त्वाकांक्षा जीवन में महत्त्वाकांक्षा ने मुझे दु:ख दिये पर जब अल्प सन्तोषी बनने की कोशिश की तो दुनिया ने मुझे कायर समझा । पर जीवन संध्या में आकाँक्षाएं मेरा पीछा नहीं छोड़ रहीं । बल्कि नई नई इच्छाएँ पैदा हो रही हैं । क्या यह बुझते दीपक की बढ़ती लौ है? मैं ने देखा और स्वय