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डॉ. शिखा कौशिक के बारे में

हमारे हाथ में है जो कलम वो सच ही लिखेगी , कलम के कातिलों से इस तरह करी बगावत है !

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डॉ. शिखा कौशिक की पुस्तकें

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डॉ. शिखा कौशिक के लेख

मैंने गलत को गलत कहा

12 मई 2017
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ना कोई सगा रहा, जिस दिन से होकर बेधड़क मैंने गलत को गलत कहा! तोहमतें लगने लगी, धमकियां मिलने लगी, हां मेरे किरदार पर भी ऊंगलियां उठने लगी, कातिलों के सामने भी सिर नहीं मेरा झुका! मैंने गलत को गलत कहा! चापलूसों से घिरे झाड़ पर वो चढ़ गये, इतना गुरूर था उन्हें कि वो खुदा ही बन गये, झूठी तारीफें न सु

स्व -वित्त पोषित संस्थान

18 अप्रैल 2017
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स्व-वित्त पोषित संस्थान में जो विराजते हैं ऊपर के पदों पर, उनको होता है हक निचले पदों पर काम करने वालों को ज़लील करने का, क्योंकि वे बाध्य नहीं है अपने किये को जस्टिफाई करने के लिए . स्व-वित्त पोषित संस्थान में आपको नियुक्त किया जाता है, इस शर्त के साथ कि खाली समय में आप सहयोग करेंगे संस्थान के अन्

जय पताका ले चढ़ा

7 दिसम्बर 2016
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त्याग कर सारी निराशा दृढ़ मनोबल से बढ़ा, तब पराजय के शिखर पर जय पताका ले चढ़ा ! ……………… थी कमी प्रयास में आधे - अधूरे थे सभी, एक लक्ष्य के प्रति आस्था न थी कभी, अपनी ही कमजोरियों से सख्त होकर मैं लड़ा

मैं ऐसे मित्र नहीं चाहता !

27 मार्च 2016
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देख दुःखों में डूबा मुझको ;जिनके उर आनंद मनें ,किन्तु मेरे रह समीप ;मेरे जो हमदर्द बनें ,ढोंग मित्रता का किंचिंत ऐसा न मुझको भाता !मैं ऐसे मित्र नहीं चाहता ! सुन्दर -मँहगे उपहारों से ;भर दें जो झोली मेरी ,,पर संकट के क्षण में जो ;आने में करते देरी ,तुम्हीं बताओ कैसे रखूँ उनसे मैं नेह का नाता !मैं ऐस

वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती !

16 जुलाई 2015
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शोषणों की आग जब रक्त को उबालती , शंख लेकर हाथ में वो फूंक देता क्रांति , उसको साधारण समझना है भयानक भ्रान्ति , वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती ! ........................................................................ हम सामान्य -जन समक्ष श्री राम का आदर्श है , एक वनवासी कुचलता लंकेश का मह

शुभकामनाओं की प्रबल आकांक्षा है !

10 जुलाई 2015
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मेरी लघु-कथाओं का प्रथम संग्रह अंजुमन प्रकाशन [इलाहाबाद ] से शीघ्र ही प्रकाशित हो रहा है .आप सभी की शुभकामनाओं की प्रबल आकांक्षा है ! https://www.facebook.com/anjumanpublication?pnref=lhc -डॉ. शिखा कौशिक 'नूतन'

वैदेही सोच रही मन में

3 जुलाई 2015
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वैदेही सोच रही मन में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !! वैदेही सोच रही मन में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते , लव-कुश की बाल -लीलाओं का आनंद प्रभु संग में लेते . जब प्रभु बुलाते लव -कुश को आओ पुत्रों समीप जरा , घुटने के बल चलकर जाते हर्षित हो जाता ह्रदय मेरा , फैलाकर बांहों का घेरा लव

वो लड़की.... रौद दी जाती है अस्मत जिसकी

27 जून 2015
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वो लड़की रौंद दी जाती है अस्मत जिसकी , करती है नफरत अपने ही वजूद से जिंदगी हो जाती है बदतर उसकी मौत से . वो लड़की रौद दी जाती है अस्मत जिसकी , घिन्न आती है उसे अपने ही जिस्म से , नहीं चाहती करना अपनों का सामना , वहशियत की शिकार बनकर लाचार घबरा जाती है हल्की सी आहट से .

मानस के रचनाकार में भी पुरुष अहम् भारी

24 जून 2015
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सात कांड में रची तुलसी ने ' मानस ' ; आठवाँ लिखने का क्यों कर न सके साहस ? आठवे में लिखा जाता सिया का विद्रोह ; पर त्यागते कैसे श्री राम यश का मोह ? लिखते अगर तुलसी सिया का वनवास ; घटती राम-महिमा उनको था विश्वास . अग्नि परीक्षा और शुचिता प्रमाणन ; पूर्ण कहाँ इनके बिना होती

मानस के रचनाकार में भी पुरुष अहम् भारी

24 जून 2015
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सात कांड में रची तुलसी ने ' मानस ' ; आठवाँ लिखने का क्यों कर न सके साहस ? आठवे में लिखा जाता सिया का विद्रोह ; पर त्यागते कैसे श्री राम यश का मोह ? लिखते अगर तुलसी सिया का वनवास ; घटती राम-महिमा उनको था विश्वास . अग्नि परीक्षा और शुचिता प्रमाणन ; पूर्ण कहाँ इनके बिना होती

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