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रीतेश खरे के बारे में

एक साधारण मनुष्य. विज्ञापन क्षेत्र में लेखन और अनुवाद के छोटे-मोटे हुनर से जीविकोपार्जन. गीत-संगीत सुनने और रचने की रुचि. पेशेवर बनने की तड़प क़ायम.

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रीतेश खरे की पुस्तकें

रीतेश खरे के लेख

माँ का यक़ीन

24 मई 2016
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ख़ुश हो जाती है मेरी माँजब उसको wish करता हूँ happy mother's dayक्योंकि भागती हुई ज़िंदगी की दौड़ मेंबेमंज़िल सी किसी रेस की होड़ मेंउसके बच्चे को फ़ुर्सत कहाँ के पूछ ले कैसी हो माँकमाल की बात है कि वो बखूब समझती है येउसे शिकवा भी नहीं बिछे हुए फासलों सेभले ही उड़ गया वो दूर अपने घोंसले सेभूला तो न होगा वो

हिंदी: सिर्फ मेरी नहीं

3 नवम्बर 2015
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मेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहताखुद में ही सीमित रहता सबसे मैं न कहतासबसे पहले जान लो मैंने खुद से ही कहा हैतौल लूँ क्या हिंदी का ह्रदय में प्रतिमान रहा हैपाया है स्वर अपना मैंने इसी वेग में बहतामेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहतातुम भी जानो जब अंतर के भाव उमड़ हैं आतेनैनों का ये नीर

हिंदी: सिर्फ मेरी नहीं

20 अक्टूबर 2015
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मेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहताखुद में ही सीमित रहता सबसे मैं न कहतासबसे पहले जान लो मैंने खुद से ही कहा हैतौल लूँ क्या हिंदी का ह्रदय में प्रतिमान रहा हैपाया है स्वर अपना मैंने इसी वेग में बहतामेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहतातुम भी जानो जब अंतर के भाव उमड़ हैं आतेनैनों का ये नीर

एक मुक्तक, मुक्तता के पर्व के नाम...

15 अगस्त 2015
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कौन कहता हैआज का दिन ड्रायभीगा है तिरंगालहू शहीद है बहायमेरी रूहमेरी जिंदजय हिंद!!! जय ६९वाँ स्वतंत्रता पर्व, ६८ की हुई आज़ादी

हिंदी: सिर्फ मेरी नहीं

10 अगस्त 2015
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मेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहताखुद में ही सीमित रहता सबसे मैं न कहतासबसे पहले जान लो मैंने खुद से ही कहा हैतौल लूँ क्या हिंदी का ह्रदय में प्रतिमान रहा हैपाया है स्वर अपना मैंने इसी वेग में बहतामेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहतातुम भी जानो जब अंतर के भाव उमड़ हैं आतेनैनों का ये नीर

हिंदी: सिर्फ मेरी नहीं

10 अगस्त 2015
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मेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहताखुद में ही सीमित रहता सबसे मैं न कहतासबसे पहले जान लो मैंने खुद से ही कहा हैतौल लूँ क्या हिंदी का ह्रदय में प्रतिमान रहा हैपाया है स्वर अपना मैंने इसी वेग में बहतामेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहतातुम भी जानो जब अंतर के भाव उमड़ हैं आतेनैनों का ये नीर

हिंदी: सिर्फ मेरी नहीं

10 अगस्त 2015
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मेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहताखुद में ही सीमित रहता सबसे मैं न कहतासबसे पहले जान लो मैंने खुद से ही कहा हैतौल लूँ क्या हिंदी का ह्रदय में प्रतिमान रहा हैपाया है स्वर अपना मैंने इसी वेग में बहतामेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहतातुम भी जानो जब अंतर के भाव उमड़ हैं आतेनैनों का ये नीर

हिंदी: सिर्फ मेरी नहीं

10 अगस्त 2015
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मेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहताखुद में ही सीमित रहता सबसे मैं न कहतासबसे पहले जान लो मैंने खुद से ही कहा हैतौल लूँ क्या हिंदी का ह्रदय में प्रतिमान रहा हैपाया है स्वर अपना मैंने इसी वेग में बहतामेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहतातुम भी जानो जब अंतर के भाव उमड़ हैं आतेनैनों का ये नीर

हिंदी: सिर्फ मेरी नहीं

10 अगस्त 2015
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मेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहताखुद में ही सीमित रहता सबसे मैं न कहतासबसे पहले जान लो मैंने खुद से ही कहा हैतौल लूँ क्या हिंदी का ह्रदय में प्रतिमान रहा हैपाया है स्वर अपना मैंने इसी वेग में बहतामेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहतातुम भी जानो जब अंतर के भाव उमड़ हैं आतेनैनों का ये नीर

हिंदी: सिर्फ मेरी नहीं

10 अगस्त 2015
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मेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहताखुद में ही सीमित रहता सबसे मैं न कहतासबसे पहले जान लो मैंने खुद से ही कहा हैतौल लूँ क्या हिंदी का ह्रदय में प्रतिमान रहा हैपाया है स्वर अपना मैंने इसी वेग में बहतामेरी होती सिर्फ ये भाषा तो मैं चुप ही रहतातुम भी जानो जब अंतर के भाव उमड़ हैं आतेनैनों का ये नीर

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