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मनमोहन भाटिया के बारे में

नाम: मनमोहन भाटिया जन्म तिथि: 29 मार्च 1958 जन्म स्थान: दिल्ली शिक्षा: बी. कॉम., ऑनर्स, हिन्दू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय; एल. एल. बी., कैम्पस लॉ सेन्टर, दिल्ली विश्वविद्यालय संप्रति: सृष्टी उदयपुर होटल एंड रिजार्टस प्राईवेट लिमिटेड में सीनियर मैनेजर-फाईनेंस एंड अकाउंटस प्रकाशित रचनायें: हिन्दुस्तान टाईम्स, नवभारत टाईम्स, मेल टुडे और इकॉनमिक्स टाईम्स में सामयिक विषयों पर पत्र कहानियाँ: 1. सरिता, गृहशोभा, अभिव्यक्ति, स्वर्ग विभा, प्रतिलिपी, जय विजय, अनहद कृति, अरगला, हिन्दी नेस्ट और नवभारत टाईम्स में प्रकाशित 2. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की वेबसाईट hindisamay.com में कहानी संकलन। लिंक: http://www.hindisamay.com/writer/writer_details.aspx?id=1316 3. राजकमल प्रकाशन की डॉ. राजकुमार सम्पादिक पुस्तक "कहानियां रिश्तों की - दादा-दादी नाना-नानी" में कहानी "बडी दादी" प्रकाशित। ISBN: 978-81-267-2541-0 4. बोलती कहानी “बडी दादी” स्वर “अर्चना चावजी” रेडियो प्लेबैक इंडिया पर उपलब्ध। लिंक: http://radioplaybackindia.blogspot.in/2014/01/badi-dadi-by-manmohan-bhatia.html 5. कहानी “ब्लू टरबन” का तेलुगु अनुवाद। अनुवादक: सोम शंकर कोल्लूरि। लिंक: http://eemaata.com/em/issues/201403/3356.html?allinonepage=1 6. प्रतिलिपी वेबसाईट pratilipi.com में कहानी संकलन। लिंक: http://www.pratilipi.com/author/4899148398592000 7. गूगल प्ले स्टोर पर कहानियों का संग्रह कथासागर। लिंक: https://play.google.com/store/apps/details?id=com.abhivyaktyapps.hindi.stories 8. प्रतिलिपी वेबसाईट pratilipi.com में इंटरव्यू। लिंक: http://www.pratilipi.com/author-interview/5715757912555520 सम्मान एवं पुरस्कार: 1. दिल्ली प्रेस की कहानी 2006 प्रतियोगिता में 'लाईसेंस' कहानी

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मनमोहन भाटिया की पुस्तकें

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मनमोहन भाटिया के लेख

रक्षा

14 अक्टूबर 2016
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रविवार छुट्टी के दिन खूब धमा चौकडी रही। मेहमानों का तांता रहा। बच्चों को पढाई से अवकाश मिला। खेल, कूद और मस्ती। कुछ और क्या चाहिए बच्चों को। कौन बच्चा पढना चाहता है, रविवार या छुट्टी के दिन। मेहमानों के आगे तो मां बाप की बोलती बंद हो जाती है, उनकी क्या मजाल, कि बच्चों को पढनें को कहे। वैसे सबकी भलाई

तीन बच्चे

30 अगस्त 2015
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तीन बच्चेनवगांव की सीमा पर एक तालाब है और उसके पास धोबियों की बस्ती। कपडे धोने के काम में तालाब का प्रयोग होता है। तालाब के पास रेल की पटरी है। रेल गाड़ियों की आवाजावी रात दिन होती है। सवारी गाड़ियां दिन में चार और रात को दो आती हैं, बाकी कुछ मालगाड़ियां आती जाती हैं। गर्मियों के दिन थे। सुबह कुछ धोबी

अम्मा

15 अप्रैल 2015
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रात के डेढ़ बज़ रहे थे। कोठी का गेट चौकीदार ने खोला। रवि और रीना कार से उतरे। मेन गेट चाबी से खोल रहे थे, अम्मा सीढ़ियां उतर कर भागी भागी आई। अम्मा को आते देख कर रवि ने कहा "अम्मा क्या बात है सोई नहीं।" "कार का हॉर्न सुन कर नींद खुल गई। सोचा, कुछ ज़रुरत हो आपको।" रीना ने हंसते हुए कहा "अम्मा, आपको कह

कायाकल्प

11 मार्च 2015
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कायाकल्प मेज पर फाइलों का पुलिंदा पड़ा है, पर दिलीप को कोई जल्दी नहीं है कि फाइलों को निबटाया जाए। सरकारी विभाग, बिना दक्षिणा के फ़ाइल का पट नहीं खुलता। दिलीप का सिद्धान्त है कि मंदिर जाते है तो बिना प्रसाद, चढ़ावे के भगवान से भी विनती नहीं करते तो सरकारी कर्मचारी कौन भगवान से कम हैं। पूरे देश के ज

बस एक बार

23 फरवरी 2015
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बस एक बार मुड़ कर देंखे वो बचपन के अल्हड दिन बस एक बार मुड़ कर देंखे वो बचपन की किलकारी हंसी बस एक बार मुड़ कर देंखे वो बचपन में आसमान छूते छोटे छोटे हाथ बस एक बार मुड़ कर देंखे वो बचपन की मस्तियां नादानियां बस एक बार मुड़ कर देंखे वो छोटे हाथों का कबूतर बिल्लियों के पीछे भागना बस एक बार फिर मु

रौशन

16 फरवरी 2015
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करें दिल हम रौशन भुला दें हम दिलों के अंतर गिले शिकवों में क्या रखा है करें दिल हम रौशन करें दिल हम रौशन न समझे किसी को छोटा बड़ा सब हैं प्यार के काबिल करें दिल हम रौशन करें दिल हम रौशन क्या कोई गरीब अमीर दिल है सबका एक सा करें दिल हम रौशन करें दिल हम रौशन एक सा सबका धड़कता है दि

दिल

13 फरवरी 2015
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इस दिल को संभाल कर रखिये हर बात पर मचल जाता है। नादान है यह दिल हर बात पर रूठ जाता है। बात ना मानो इस दिल की जोर से धड़कने लग जाता है। जब कहते है इसको नादान भाग कर कोपभवन चला जाता है। जब मानते हैं इसकी बात खुश होकर हंसता जाता है। जब मुस्कुरा कर मिलते हैं दो हसीन चेहरे दिल दिल से मिल जाता ह

यूंही

8 फरवरी 2015
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बस यूंही गुज़र रहा है दिन सोचते सोचते बस यूंही गुज़र रही है ज़िन्दगी सोचते सोचते बस एक ठंडी हवा का मस्त झोंका आया सोचते सोचते बस एक गरम हवा बदन पस्त कर गई सोचते सोचते बस रिश्ते बनते टूटते रहे सोचते सोचते बस कुछ हंसी के लम्हे आ गए सोचते सोचते बस कुछ गम से समय बीत गया सोचते सोचते बस कुछ उदा

ख्वाब

7 फरवरी 2015
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मेरा इक ख्वाब है, तुम उसे पूरा करवा दो, हॅँसना चाहता हूं, खुल कर हॅँसवा दो। मेरा इक ख्वाब है, तुम उसे पूरा करवा दो, इक छोटे से बच्चे की किलकारी जैसी हॅँसी हॅँसवा दो। मेरा इक ख्वाब है, तुम उसे पूरा करवा दो, रोते हुए छोटे बच्चों को हॅँसवा दो। मेरा इक ख्वाब है, तुम उसे पूरा करवा दो, उदास होठों प

उम्मीद

4 फरवरी 2015
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किसी पर उम्मीद छोड कर देखो जिन्दगी कितनी आसान है अपने पर उम्मीद रख कर देखो जिन्दगी कितनी आसान है अपनी उम्मीद पर हौसला रख कर देखो जिन्दगी कितनी आसान है

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