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दीपक श्रीवास्तव के बारे में

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दीपक श्रीवास्तव की पुस्तकें

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सामाजिक सरोकारों को समर्पित है स्वेच्छिक संस्था स्नेह

1 पाठक
76 रचनाएँ

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दीपक श्रीवास्तव के लेख

महबूब महबूब महब महबूबा

20 जून 2018
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समाजवाद

21 मार्च 2016
6
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एकवेश्यालय कीचौखट परमजमा लगाते है रोज़समाजवादी;बिना किसी वर्ग भेद केबिना किसी जाति भेद केबिना किस धर्म भेद केबिना किसी पन्थ भेद के!एकमदिरालय कीचौखट परमजमा लगाते है रोज़समाजवादी;बिना किसी वर्ग भेद केबिना किसी जाति भेद केबिना किस धर्म भेद केबिना किसी पन्थ भेद के!एकमंदिर कीचौखट परमजमा लगाते है रोज़समाज

Kaveeta

20 मार्च 2016
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देश केसहिष्णुकहते हैं कि;जयहिन्द नही कहेंगेवंदे मातरम नही कहेंगेभारत माता कीजय नहीं बोलेगेंक्योंकि;भारतीय संविधान मेंइस हेतुकोई;व्यवस्था नही हैवह उदारवादी हैंधर्म निरपेक्ष हैंऔर;यदि हम इंशाअल्लाहकिसीआंतकवादी कोफांसी दे देतो;हमअसहिष्णु हैंसाम्प्रदायिक हैंवहदेश काविरोध करें तोयह उनकामौलिक अधिकार हैजबक

कविता

19 मार्च 2016
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एक व्यस्तमचौराहे केघूर परकुत्तो के झुण्ड के बीचपड़ी ; नवजात बच्ची ! उनकी गुर्राहट सुनकभी अपनीसामर्थ्य अनुसारचित्कार रही हैतो ; कभी हाँथ-पाँवचलाकर अपनेजीवित होने का प्रमाण दे रही है ! और  ; स्वानों का झुण्डखूनी आंखों सेयमदूत की भाँति गोश्त के लोथड़े को देखउसको नोचने खसोटने को तत्पर है ! तभीकुछ अपरिचि

कविता

19 मार्च 2016
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एकनन्हाकबाड़ीरोज़मेरेघर केपिछावड़ेके;कूड़ेदान मेंतलाशता हैकबाड़और;फिरसमपर्ण भाव सेउन्हेएकत्र करले जाता हैअपने साथइस उद्देश्य केनिहितकि;प्राप्तसामग्री कोझाड़ पोछचमका करटूट फूट कीमरम्मत करया;गला पिघलाकरनया आकार देपुर्न: स्थापितकरेगाबाज़ार में!कमोवेशवहनन्हा बालक भी तोहै;कबाड़ सरीखापर;उसेझाड़-पोछ करचमका

Kaveeta

17 मार्च 2016
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मैं;रोजदेखता हूँसरसोईफ्राक मेंघूंघराले बालो वालीउस;नन्हीलड़की कोजो;सरगोशी के साथभीड़ भरे बाज़ार मेंगुब्बारों कागुलदस्ता लिएकभी रोड कीइस पटरी परतो कभीरोड कीउस पटरी परबेचती हैरंग-बिरंगेगुब्बारेअपनी हीउम्र केउननन्हें-मुन्नों कोजो;लकदक करतीगाड़ियों से उतरराजा बाबू बनरुआब सेखरीदते हैगुब्बारेऔर;वहकभीअचम्भ

इंसानियत

16 मार्च 2016
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समाजिकजगंल मेंवजूद की तलाशयनि कि;मुर्दो के बीचआज़िमइंसान की तलाशअफ़सुर्दा मौसम मेंखुदाई से अन्जखुदा ऐहतमाम करइंसानियत कोबरक्कत देबरक्कत देऔर;बरक्कत दें !!

ग़ज़ल

13 मार्च 2016
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 अली रे आलीबन जाइस जहाँ का मालीतू आदिल बनआफ़ताब हो जाआजिम बनमहताब हो जाआवाज़ह सेमत हो आशुफ़्ताअब-ए-आईने मेंआसिमआजिज़ होआकिबत कोरुखसती करआब-ए-चश्म सेशख्सीयत कोबेपरवाह करेगेंअली रे आलीतू; है,इस जहाँ का माली !!

कविता

11 मार्च 2016
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मटमैलेचादरों कीसिलवटों सेलिपटीविस्मृत हो चुकीस्मृतियों सेचिपककरअतीत कीअनन्त गहराईयों मेंझाँक;बोझिल हो रहीपलकों केकपाट कोखोलनेबंद करनेकि;जद्दोजहद मेंबमुश्किलरोज़बीत जाती हैरातेंऔर;सुबहशेष रहते हैतकियों केगिलाफ़ों परआँसू कीमोटी मोटीबून्दों कीछापजो;वयां करते हैरात्रि केसफर कीदर्द भरीकहानी !!

international women day स्पेशल.

8 मार्च 2016
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अन्तर्राष्ट्रीय विश्व महिला दिवस पर विशेष - एक तथ्य यह भी ......          मैने महिला सशक्तिकरण पर हुए कई सेमीनार में प्रतिभाग किया है तथा पाया है कि जिस भी वक्ता ने पुरुष बर्चस्वादी समाज की आलोचना करते हुए पुरूषो को धिक्कारा है उसने ज्यादा तालियाँ बटोरी है, पर ऐसे वक्ताओं ने महिलाओं की मूलभूत समस्या

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