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सुशील कुमार रावत के बारे में

मै सुशील कुमार रावत "शील" साधारण व्यक्ति हूँ , मैं कुछ थोड़ी बहुत तुकबंदी कर लेता हूँ , मेरी तरह मेरी कावताएं भी सरल और साधारण हैं ,

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सुशील कुमार रावत की पुस्तकें

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मेरे गीत व कवितायेँ

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सुशील कुमार रावत के लेख

कहॉ हो तुम

4 मार्च 2016
1
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अंतिम पल शेष रहे हॅ,मेरे पीड़ित जीवन के,ओ प्रेम पथिक आ जाओं मुंदने से पहले पलकें।घायल है ह्रदय हमारा, अगणित विषाक्‍त तीरों से,तुम हॅस कर खेल रहीं हो, निजी घर में यूॅ हीरों से।।मेरी ये दोनों पलकें है, क्‍यों दृग जल से गीली,जब तुम इठलाती फिरती हो, आेढ चुनरिया नीली।।कॉटे ही थे जीवन में, मृदु कलियॉ कब ख

गॉव

14 अक्टूबर 2015
3
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शहरों से दूर गॉव, मस्‍ती मे चूर गॉव, ठण्‍ढी बयारों में, हल्‍की फुहारों में, सावन में लगते हैं, जन्‍नत की हूर गॉव ।।

बाहुबली नेता

14 अक्टूबर 2015
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जिंदगी कुछ और सस्‍ती हो गई।शहर में इन कातिलों की,जबसे बस्‍ती हो गई।दूध जिनको था पिलाया,अब वही हमको डसेंगें ।अब तो सत्‍ता जालिमों की,ही गिरिस्‍ती हो गई।।

यादें

14 अक्टूबर 2015
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आज उठी फिर अन्‍तर्मन में, भूली बिसरी सी ज्‍वाला ।फिर से इस ह्रदय पटल पर, उन मेघों ने डाका डाला !!विमुख हो चुका था जिनसे मैं, भूल गया था जिनके दॉव ।आज अचानक हेर घेर कर, हाय दे गये कितने घाव  ।।यौवन की थीं कुछ यादें,  और कुछ  यादें थी तरूणाई की ।कुछ उसके अधरों की थीं, और कुछ उसकी अगणाई की ।।उस यौना का

शायरी

7 अक्टूबर 2015
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खा न जाये ये अंधेरी रात मुझको इसलिए,                याद का उसकी जला रक्‍खा है मैने ये दिया ।। पर उसे क्‍या खबर, वो खेल समझी है इसे,                 जिसको चाहा दे दिया दिल जिससे चाजा ले लिया।।                                    **********कस्‍तियॉ डूब न जायें जो ये मझधार न हो,                  कोई यूॅ

कहॉ हो तुम

30 सितम्बर 2015
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अंतिम पल शेष रहे हॅ,मेरे पीड़ित जीवन के,ओ प्रेम पथिक आ जाओं मुंदने से पहले पलकें।घायल है ह्रदय हमारा, अगणित विषाक्‍त तीरों से,तुम हॅस कर खेल रहीं हो, निजी घर में यूॅ हीरों से।।मेरी ये दोनों पलकें है, क्‍यों दृग जल से गीली,जब तुम इठलाती फिरती हो, आेढ चुनरिया नीली।।कॉटे ही थे जीवन में, मृदु कलियॉ कब ख

हॉ मैं कवि हूॅ

30 सितम्बर 2015
3
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स्‍वप्‍नों में रहता हूॅ,भावों में बहता हूॅ। अपने मन की सुनता हूॅ,अपने मन की कहता हॅ।। नीर छीर विवेक की,अ‍ति विशिष्‍ट छवि हूॅ ।। हॉ मै कवि हूॅ.............. प्रकृति के छोरों को,बॉध बॉध धागों में। एक एक शब्‍द बॉट,सहस्त्रो भागों में ।। मेघों को चीर कर,निकलता हुआ रवि

क्‍या और गरल पीना होगा

29 सितम्बर 2015
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आह व्‍यथा क्‍या सहते सहते ही जीवन जीना होगा,बदन हो गया है नीला क्‍या और गरल पीना होगा ।।पीड़ा से दुखता है तल मन, धीरज का सारा संचित धन,कोई कब का चुरा ले गया, सब अच्‍छा ओ बुरा ले गया।।आशाओं के लिपि चित्रों पर काली काली पोत सियाही ,क्यों आँचल में छेद कर रहा भूल गया ये था उसका ही !!उसने ही अपने हॉथों स

बोनसाई

24 सितम्बर 2015
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गमले में पेड़ों का होना,जैसे पिंजरे में मैना,एक छोटी ब‍गिया में जैसे,रक्‍खा जाये मृग छौना,कैसे कटते होगें दिन,और कैसे कटती होंगी रातें,किससे कर पाते होंगें वो,अपने दिल की सारी बातें,कैसे कटता होगा उनका,जीवन यूॅ बनके बौना,गमले में पेड़ों का होना,जैसे पिंजरे मे मैना ।।

बिन तुमहारे सारा शहर वीरान है मै क्‍या करूॅ

23 सितम्बर 2015
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आसमॉ चुप है जमीं हैरान है मै क्‍या करूॅ,बिन तुम्‍हारे सारा शहर वीराना है मैं क्‍या करूॅ।उन घनी जुल्‍फों की छाया अब तलक भूली नहीं,हॉथ मे तेरा पुराना पैगाम है मैं क्‍या करूॅ।।जिन्‍दगी खामोश लमहों में सितम ढाती रही,बस वही तस्वीर ऑखों को नजर आती रहीं।हादसा वर्षो पुराना है मगर अब तक नया,दिन में मेरे या

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