मजबूरी
न चाहते हुए भी वो काम करवाती है ॥जो दिल को नही भाता॥न दिमाग को भाता ॥फिर भी मैं उसी डगर जाता हूँ ॥आखिर क्यूं? मोह मोहे जीने न दे॥किसका मोह ओर कैसा मोह॥यह दुनियादारी एक ऐसी मदारी॥बंदर की तरह जो मुझे नचा रही ॥रंगमंच ऐसा ,अभिनय करवा मुझसे, खाख में मिला रही॥