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पुस्तक समीक्षा के लेख

पागल मन फिर बुन रहा सपनों का संसार

13 नवम्बर 2015
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समीक्षक :एम.एम.चन्द्रासामान्य सेसामान्य लोग चाहे वो अमीर हो या गरीब, शहरी हो या देहाती, पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़,सभी को कुछ याद हो या न हो कबीर के दोहे जरूर याद होंगे. ये दोहे आज भी समाज मेंबड़े पैमाने पर बोले और गाए जाते हैं और भविष्य में भी गाए जाते रहेंगे.पिछले कुछ दशकोंसे हिंदी साहित्य में विभिन्न विध

क्योंकि औरत कट्टर नहीं होती

2 नवम्बर 2015
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समीक्षक- आरिफाएविस ‘क्योंकि औरत कट्टर नहीं होती’ डॉ. शिखा कौशिक ‘नूतन’ द्वारा लिखा गया लघुकथा संग्रह है जिसमें स्त्री और पुरुष की गैर बराबरी के विभिन्न पहलुओं कोछोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से सशक्त रूप में उजागर किया है. इस संग्रह मेंहमारे समाज की सामंती सोच को बहुत ही सरल और सहज ढंग से प्रस्तुत कि

प्रखर विचारक, उत्कृष्ट संगठनकर्ता और प्रबुद्ध साहित्यकार : पं. दीनदयाल उपाध्याय

20 अक्टूबर 2015
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समीक्षक : एम.एम.चन्द्रा डायमंड बुक्स ने अपनी प्रकाशनयात्रा में सैकड़ों देशभक्तों, क्रांतिकारियों एवं प्रसिद्ध हस्तियों की जीवनियाँपाठकों के सामने प्रस्तुत की हैं. उसी श्रृंखला के अंतर्गत इस बार पं. दीनदयालउपाध्याय के जीवन पर लेखक हरीश दत्त शर्मा ने रौशनी डाली है.उनके बारे में लेखक हरीश दत्तशर्मा लिखत

कंगाल होता जनतंत्र

4 अक्टूबर 2015
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समीक्षक – एम.एम.चन्द्रा  ‘कंगाल होता जनतंत्र’ अनिल कुमारशर्मा का पहला काव्य संग्रह है. यह संग्रह पिछले दो दशकों के आर्थिक, राजनीतिक,सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र का एक ऐसा दस्तावेज़ है जिसने न सिर्फ लेखक की चेतनाका ही निर्माण किया बल्कि आम जनमानस की चेतना की निर्माण प्रकिया को आसानी सेसमझने का प्रयास

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