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कुंवर समीर शाही के बारे में

चक्रव्यूह न्यूज़ समाधान संस्था अयोध्या फैजाबाद द्वारा शुरू किया गया है ! पिछले १४ वर्षो से पत्रिकारिता की अलग अलग विधाओ से गुजरने के उपरांत हमने महसूस किया की लोग दावे भले ही कितने भी बड़े बड़े करते हो लेकिन सच के लिए जब आवाज़ उठाने की बात आती है तो बस बगले झाकने लगते है ! काफी सोच विचार के बाद हमने मित्रो के कहने पर चक्रव्यूह न्यूज़ को शुरू करने का मन बनाया जो आज आपके सामने है ! हमारी पूरी कोशिस रहेगी की हम अपनी जान की परवाह न करते हुए आपको सच जरुर बतायेंगे ! हमे जरुरत है तो बस आपके प्यार और सहयोग की आशा है की जरुर मिलेगा इसी उम्मीद के साथ आपका स्वागत है - जय हिंद

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कुंवर समीर शाही की पुस्तकें

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न डरेंगे न डराएंगे ,डंके की चोट पर सच दिखाएंगे

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कुंवर समीर शाही के लेख

समाज तन्दुरुस्त और बोध दुरुस्त होना चाहिए

9 नवम्बर 2015
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समाज तन्दुरुस्त और बोध दुरुस्त होना चाहिएआये दिन मीडिया के विभिन्न माध्यमों में नए नए मुद्दों पर चर्चा होती रहती है फिर कुछ दिनों तक उसी की लहर चलती है और उसके शांत होने तक एक नई लहर बन जाती है ... जनमानस में इन लहरों का क्या होता है असर ?....कैसे इसका प्रयोग करते होंगे राजनीती के खिलाड़ी ....  जनमान

गृह लक्ष्मी पर हावी होती लक्ष्मी

7 नवम्बर 2015
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प्राचीन काल में दहेज को स्त्रीधन की संज्ञा दी जाती थी। वह स्त्री का अपना धन हुआ करता था। गांव के गांव पूरा साम्राय तक दहेज में दे दिया जाता था लेकिन कन्या को इसके लिए प्रताड़ित नहीं किया जाता था। यहां तक कि कोई राजा युध्द में पराजित हो जाता था तो वह अपनी पुत्री का विवाह विजेता राजा से करके अपने साम्र

पत्नी की कमाई पर हक जताते पति

7 नवम्बर 2015
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अभी तक माना जाता था कि कम पढ़े-लिखे, शराबी, जुआरी या अय्याश किस्म के गरीब पति ही अपनी पत्नी की कमाई को हड़प लेते हैं और यदि वह नहीं देती है तो मार ठोकर उससे छीन लेते हैं। लोगों के घरों में झाड़ू-पोछा और बर्तन साफ करने वाली बाइयों के साथ तो यह हमेशा होता है कि उनके शराबी पति की नजर सदैव पत्नी की आमदनी प

बिखरने न दें परिवार

7 नवम्बर 2015
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परिवारों का टूटना आज की एक वलंत समस्या है, जिसका हल ढूंढा जाना जरूरी है। दरअसल आज एकल परिवारों में ढेरों सुख-सुविधाओं के बीच पलने वाले बच्चों में सहयोग और समर्पण आदि मूलभूत गुणों का अकसर अभाव होता है। हमें चाहिए कि हम अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें और उन्हें सामाजिक बनाएं तभी परिवारों का टूटना रुक

महिलाएं और बच्चे भी पहनें हेलमेट

7 नवम्बर 2015
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हमारे रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बन चुकी कुछ बातें हमें शायद ही कभी चौंकाती हैं या गलत लगती हैं। जैसे किसी दो पहिया वाहन पर सवार एक परिवार, जिसमें पुरुष ने तो हेलमेट पहन रखा है लेकिन महिला एवं बच्चे कभी हेलमेट पहने नहीं दिखते। वर्ल्ड हेड इंज्यूरी अवेयरनेस डे (20) के मौके पर चिकित्सकों का कहना है कि

वेदों में क्या है!

7 नवम्बर 2015
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वेद देव स्तुति से भरे हैं। देवता माने जो देता है। सुर जो सुरा का सेवन करते हैं असुर जो नहीं करते। वेदों में सर्वाधिक प्रार्थना इंद्र की हुई है। पर इसका मतलब यह नहीं कि इंद्र सबसे महत्वपूर्ण देवता हैं। इंद्र के बाद सबसे ज्यादा मंत्र अग्नि पर है। ऋग वेद का आरंभ अग्नि पर लिखी ऋचा से होता है। यह सम्मान

रिश्वत

7 नवम्बर 2015
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 पं. प्रतापनारायण मिश्रक्या कोई ऐसा भी विचारशील पुरुष होगा जो रिश्वत को बुरा न समझे? एक ने तो सैकड़ों कष्ट उठा के, मर-खप के धन उपार्जन किया है दूसरा उसे सहज में लिए लेता है, यह महा अनर्थ नहीं तो और क्या है? हमारी समझ में तो जैसे चोरी करना, डाका डालना और जुआ खेलना है वैसा ही एक यह भी है। कदाचित कोई क

महज मनोरंजन नहीं : अब 'खेल' बनाते हैं नवाब!

7 नवम्बर 2015
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खेलों में आगे आने का यदि कोई अचूक मंत्र है तो वह है ''कैच देम यंगÓÓ जिसका मतलब है छोटी उम्र में ही खेलों में रुचि रखने वाले, स्वस्थ, मजबूत शरीर च इच्छाशक्ति वाले बच्चों को चुनना । स्कूल स्तर से ही उन्हें अच्छे से अच्छा प्रशिक्षण देना, उन्हें सुविधाएं मुहैया कराना, उन्हें अच्छा कैरियर विकल्प व सुरक्ष

इंटरनेट: एक नजरिया यह भी

7 नवम्बर 2015
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ढोलक बनाने व कचरा बीनने वाले समुदाय के लिए इंटरनेट लाभदायी हो सकता है या यह उन पर अतिरिक्त आर्थिक भार डालेगा? इसके अलावा इंटरनेट पर बढ़ती अश्लीलता क्या इन युवाओं को और अधिक उग्र व नशे का आदी नहीं बनाएगी? जिनके पास इंटरनेट की सुविधा नहीं होगी तो क्या उनकी स्थिति और खराब नहीं होगी? परंतु कहा जाता है क

गुम होता गांव

7 नवम्बर 2015
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वे  शभूषा, सामूहिकता और सादगी गांवों की पहचान रही है जो कम से कम होती चली जा रही है। ग्रामीण पहचान रही पहनावे से स्त्री हो या पुरुष दोनों दूर से ही पहचाने जाते थे। अंगरकी, धोती और सिर पर पहनी जाने वाली पगड़ी वृद्ध पीढ़ी के साथ ही चली जा रही है। पेंट-बुशर्ट, लहंगा, लेहंगी आम हो चली है। कोई भी उत्सव म

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