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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी के बारे में

इंजीनियरिंग स्नातक कम्पुटर व्यापार मे सेवा की उपलब्धता के हेतु तत्पर रहने के साथ साथ हिन्दी और भोजपुरी लेखन मे संलग्न हूँ । भोजपुरी पंचायत पत्रिका ,मैना (भोजपुरी साहित्य की उड़ान ), वर्तमान अंकुर हिन्दी दैनिक , दी न्यू एज रिपोर्टर (हिन्दी साप्ताहिक), ड्रीम लाइन एक्सप्रेस (हिन्दी साप्ताहिक) हमारा पूर्वाञ्चल (हिन्दी साप्ताहिक) , भोजपुरिका (अंजोरिया) सरीखे पत्र पत्रिकाओं मे मेरी कवितायें अनवरत रूप से प्रकाशित होती हैं । भोजपुरी पंचायत पत्रिका के वेव टीम मे “मैनेजिग एडिटर” के रूप मे साहित्य सेवा मे संलग्न हूँ ।

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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी की पुस्तकें

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मन के कथ्य

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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी के लेख

जबरी पहुना भइल जिनगी

21 जुलाई 2017
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कब दरक गइल जियरा उधियाइल भिनुसहरा अब टोवत बेवाई सभे अहमक़ कहाई । साटल पेवना भइल जिनगी ॥ घाव बाटे जियतारटकटोरत बार बार उहाँ उजार खोरियादेखीं जवने ओरिया काँच खेलवना भइल जिनगी ॥ बड़की बिटिया सयान सभे उझिलत गियानदाना ला मोहताजकइसे चली राज काजओद लगवना भइल जिनगी ॥ माँग बहोरि आंखि

गांधी तेरे देश में

1 अक्टूबर 2016
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बड़े बड़े घड़ियाल पड़े हैं धन से मालामाल बड़े हैलूट रहे हैं रोज देश कोनित्य नए गणवेश में || गाँधी तेरे ...... चोरी या पाकिटमारी है घोटालों की बीमारी हैबात बात में पैसा चाहिएसरकारी निवेश में || गाँधी तेरे ... कोई आता धमका जाता नेताओं को दिल्ली भातानिंदा फिर कड़ी ही करतेसंस

चलती के बेरिया

21 मई 2016
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निहुरी ओढावले चदरिया||चलती के बेरिया || जवने दिन पडल हमरे ओहरवाआई, ठाढ नियरे चारोकंहरवा  घरवां में रोअतगुजरिया || चलती के बेरिया || लोर भरी अंखिया, अइनीसहेलिया आपन पराया जे निकसलमहलिया लोर बरसे अस बदरिया|| चलती के बेरिया || सून महल, सून गउवांके गलियामुरझाइल अब बगियनमें कलिया  कहवां हेराइलअंजोरिया ||

अब्बो ले सुपवा बोलेला

21 मई 2016
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ताल तलहटी, गाँव करहटी कब फूटल किस्मत खोलेलाअब्बो ले सुपवाबोलेला |  दिन में खैनी साँझ कहुक्का भोरे आइल साह करुक्का खेती में जब भयल नाकुछहु अन्दाता फुक्के काफुक्का  बिगरल माथा डोलेला |अब्बो ले सुपवा बोलेला |  बाढ़ में बहल गाँव पेगाँव पहरी पर बनल मोरा ठांवमदत लीहने शहरी  बाबू अब कइसे पड़ी मोरा पाँव  फ़ांस

बसंत दीदार

13 फरवरी 2016
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मन अगराइल सरसो फुलाइल बहे लागल बसंती बयारमोरा दिल गुलजार भइलें खुदही सेप्यार ।  नाचे मोर रोम रोम खिलल बा अब व्योम अमवों मोजराइल बा भँवरा गुन गुनाइल गोरी करेलीं अनंत शृंगार ।  दुअरे चइता गवाइल कुहूंकत कोइला सुनाइल अंग अंग महकाइल पिया मोर बेल्हमाइल देखत गोरिया निहार ।  बाग बगइचा हरियाइल हिया हुलसाइल आ

गइल भइसिया पानी मे

11 जनवरी 2016
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राजनीति कS चकरी घूमल   आग लपेटल घानी में |गइल भइसिया पानी मे ॥  बागड़ बिल्ला नेता बनिहे करिया अक्षर वेद बखनिहे केहुके कब्जावल माल परमार पालथी शान बघरिहे ।     कुरसी से जब  पेट भरल ना       खइलस चारा सानी  मे ।       गइल भइसिया पानी मे ॥  सगरोंमचइहे हाहाकार करिहेकुल उलटा बेइपार  मरनअपहरन राहजनी पे  एह

पठानकोट

5 जनवरी 2016
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विश्वासघातकब तक सहोगे बताओ अब ।  मंतब्य पूरारक्तरंजित माटीदीख रही है ।  मरा गरीब बेआंच युवराज आखिर क्यों ।  फँसती पेंचकंहरते आदमी लगी है आग ।  किसकी जांचकिसके लिए होगी तरीका वही ।  कोसना बंदमुहतोड़ जवाब देश की इच्छा । आतंकवाद एक ऑपरेशन उनके घर ।  आतंकियों के अटूट मंसूबों कोखत्म समझो ।  हुक्म सेना को

बुढ़िया माई

31 दिसम्बर 2015
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१९७९ - १९८० के साल रहलहोई , जब बुढ़िया माई आपन भरल पुरल परिवार छोड़ के सरग सिधार गइनी । एगो लमहरइयादन के फेहरिस्त अपने पीछे छोड़ गइनी , जवना के अगर केहुकबों पलटे लागी त ओही मे भुला जाई । साचों मे बुढ़िया माई सनेह, तियाग आउर सतीत्व के अइसन मूरत रहनी , जेकर लेखाओघरी गाँव जवार मे केहु दोसर ना रहुए । जात धर

का भइल

15 दिसम्बर 2015
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न किसाने सुखी न मजूरी भली न शिक्षा क केहरो मशाले जली बरिअइए भर कुरसी चढ़ल बानी हम ।  घुम अइली हम कबके सउसें नगर केनियों मिलल न हमरा नीमन डगर  न जाने कबसे किनारे पड़ल बानी हम । आम बउरल भी बा , अ डलियो झुकल सब चलत बा समय से ना कुछों रुकल   बाउर मन ले संकोचे गड़ल बानी हम ।  कहीं लउकल न हमरा धरम के झगड़ा नत

बंदरबाँट

6 दिसम्बर 2015
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कुछ तीतर कोकुछ बटेर को बाकी मेरा अहम खा गया ।  कुछ बंदो कोकुछ चंदों कोबाकी पर कुछ रहम आ गया ।  कुछ तोड़ फोड़ कुछ कहासुनीबाकी पर वाक आउट छा गया ।  कुछ आरक्षण कुछ संरक्षण बाकी पर स्टे आ गया ।  कुछ झूठों कोकुछ रूठों को बाकी तो मीडिया पा गया ।  कुछ लूट कोकुछ छूट को बाकी को परदेश भा गया ।  कुछ सोने कोकुछ र

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