shabd-logo

सीताराम पंडित के बारे में

मै चिंतनशील हूँ। ज्ञान की तलाश में पढ़ने लिखने का शौक रखता हूं।

no-certificate
अभी तक कोई सर्टिफिकेट नहीं मिला है|

सीताराम पंडित की पुस्तकें

divya

divya

महाकवियों की रचनाएं

1 पाठक
6 रचनाएँ

निःशुल्क

divya

divya

महाकवियों की रचनाएं

1 पाठक
6 रचनाएँ

निःशुल्क

gyankosh

gyankosh

नेत्रभूमि मेरे द्वारा रचित कविता संग्रह है।

निःशुल्क

gyankosh

gyankosh

नेत्रभूमि मेरे द्वारा रचित कविता संग्रह है।

निःशुल्क

सीताराम पंडित के लेख

सम्पूर्ण भारत को शिक्षित करने के लिए क्या कदम उठाये जाने चाहिए?

7 जनवरी 2016
0
5

मांग रही कुर्बानी माता

5 जनवरी 2016
5
0

मांग रही कुर्बानी फिर सेकण-कण से आ रही पुकार हैचरणों में शीश चढ़ाने कोकब से हम तैयार हैंलगे हाथ से हाथ मिलाकरतुम भी अब कदम बढ़ाओमांग रही कुर्बानी माताशीश की अब भेंट चढ़ाओलगी जेहन में एक आग अग्न सीपगड़ी सर पे बांध कफ़न कीमर के भी जीने को तैयार हैंमांग रही कुर्बानी माताकण-कण से आ रही पुकार हैदम भी तूझमें क

मांग रही कुर्बानी माता

1 जनवरी 2016
4
2

मांग रही कुर्बानी फिर सेकण-कण से आ रही पुकार हैचरणों में शीश चढ़ाने कोकब से हम तैयार हैंलगे हाथ से हाथ मिलाकरतुम भी अब कदम बढ़ाओमांग रही कुर्बानी माताशीश की अब भेंट चढ़ाओलगी जेहन में एक आग अग्न सीपगड़ी सर पे बांध कफ़न कीमर के भी जीने को तैयार हैंमांग रही कुर्बानी माताकण-कण से आ रही पुकार हैदम भी तूझमें क

रिश्वत लेना अपराध है या देना?

24 दिसम्बर 2015
0
4

क्या हमारे देश की लोकतंत्र सलामत है?

20 दिसम्बर 2015
1
6

हमारे देश की लोकतंत्र कहाँ तक सुरक्षित है? यदि लोकतंत्र भंग हो रही ही तो कौन जिम्मेवार है? पुनर्व्यवस्थित करने के लिए क्या कदम उठाये जाएं?

भारत की श्रम शक्ति

19 दिसम्बर 2015
0
0

भारत में विशाल श्रम शक्ति होते हुए भी यहां की सरकार इस विशाल युवाशक्ति को रोजगार से परे रखती है, हमारी तर्क कहाँ तक सही है कि मशीनों के प्रयोग के कारण ही अत्यधिक बेरोजगारी का सृजन हुई है?

भारत में शिक्षित लोग ज्यादा बेरोजगार हैं, इसके क्या कारण हो सकते हैं?

18 दिसम्बर 2015
0
10

पेड़ों को मत काटो इंसान/ सीताराम पंडित

14 दिसम्बर 2015
4
2

पेड़ों को मत काटो इंसानइसने ही वायु बनायाइसने ही जल बर्षायाइसपे टिकी है सबकी जानपेड़ों को मत काटो इंसानये धरती थी आग का गोलाजो थी एक धधकती शोलाअंबर ने इसे ठंडा कियाऔर पेड़ों को मिली प्राणपेड़ों को मत काटो इंसानपंथी को ये देती छायापंछी को ये देती सायावृक्ष है अन्नदाता हमारेसब करो इसकी गुणगानपेड़ों को मत क

किताब/ सीताराम पंडित

14 दिसम्बर 2015
4
1

कितनी खुबसुरस्त है वह दोस्त हमारीकभी सिरहाने होती है, कभी अलमारीहम पथिक हैं,हमें मार्ग की पहचान कहाँहम चले हैं अकेले पथ पर, राह ले जाता जहाँभटक रहे थे,मंजिल भी बिछड़ रही थीकिताब ने पथ बताया,वरना बिखर जाता यहाँकिसी कोने की अंधेरों में सिमट चूका थाअज्ञानता की आगोश में लिपट चूका थारौशनी की किरणें आती थी

आज की शिक्षा प्रणाली

7 दिसम्बर 2015
1
0

आज की शिक्षा प्रणाली से कौन वाक़िब नहीं है? सब जानते हैं कि किस तरह विद्यालयों में बच्चों के भविष्य को फांसी पर लटकाया जा रहा है। ऐसी दशा को देखकर लगता है शिक्षक के जगह पर जल्लाद को पढ़ाने का काम सौंप गया है।   हम धूर्त सियार की कहानी से रूबरू हैं- जो अपने शरीर में नीला रंग लगने के कारण खुद को जंगल का

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए