मूलनाम - दुर्गेश कुमार लौहार
निःशुल्क
मन की बातें जो कलम तक आ पहुंचे
कागज पेन औ फूलों का पहाड़ रखा हैंदरअसल उसकी यादों का जुगाड़ रखा हैं_ ऐसे तो मियां बड़े शरीफ हैं हम लेकीन मेरी ही एक 'डायरी' ने बिगाड़ रखा हैंमुहब्बत वाला 'खत' औ साथ वाली 'फोटो'मेरे कमरे में बहुत सा कबाड़ रखा है।।©®कुमार दुर्गेश 'बेपरवाह'
तुमको बुलाऊंगा कभीफिर से जलाउंगा कभी_ अभी कफ़स में हूँ तेरे पर निकल जाऊंगा कभी_तेरे दर से गुजरा हूँकरीब आऊंगा कभी_ एक शख्स और हैं मुझमे आना मिलाऊंगा कभी_ये भी मालूम हैं मुझेजान से जाऊँगा कभी_ ईश्क गज़ल औ मैकदा (कुमार) यूँ तो मर जाऊंगा कभी_