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विजय कनौजिया के बारे में

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विजय कनौजिया की पुस्तकें

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विजय कनौजिया के लेख

छलनाओं के भाव

9 जून 2016
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छलनाओं के भाव छिपे हैं इन मीठे अनुबंधों मेंछल छल करती मन की नदिया इन पीड़ा के छंदों में।।रह रह कर उत्साह उछलताअधर मचल कर रह जाते हैं।जाने कितने मीठे सपनेउठ उठ कर फिर ढह जाते हैं।।जीवन कितना जटिल हो गया जग के इन प्रतिबंधों मेंछल छल करती मन की नदिया इन पीड़ा के छंदों में।।हर मुस्कान लिए फिरती हैकोई पीड़ा

अच्छा लगता है

15 अप्रैल 2016
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अच्छा लगता है कभी कभी अतीत के पन्नो को पलटना किसी पृष्ठ पर रुक कर उसे हौले से सहलानाऔर उस पर उभर आई तस्वीरों में कुछ देर के लिए गुम हो जाना अच्छा लगता है चलते चलते कभी ठिठक जाना पीछे मुड़कर पगडंडियों के घुमाव को देखना और अपने स्थितिजन्य साहस पर आत्म-मुग्ध हो जाना अच्छा लगता है कभी, किसी का, "हमारे अ

शुभ होली

24 मार्च 2016
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आप के जीवन के रंगो में इंद्रधनुष🌈 जैसे सप्त रंगो की छटा प्रतीत हो।हँसी ख़ुशी सौहार्द प्रेम प्रसन्नता सफलता और आरोग्य की निरंतरता रहेऐसीईश्वर से प्रार्थना करता हूँ। होली की शुभकामनाओ के साथ.....शुभ होली....शुभाकांक्षी~~~विजय कनौजिया

अमर प्रेम

4 मार्च 2016
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सच्चा प्रेम "अमर" है। दुनिया की कोई भी शक्ति उसे मिटाने में समर्थ नहीं है।प्रेम कदापि मृत्यु को प्राप्त नही होता। किन्तु इधर "समय" भी बड़ा महान है।जीवन में ना जाने कभी कभी ऐसे अद्भुत खेल दिखा जाता है~कभी "सुखद" तो कभी "दुखद" और मनुष्य को इसकी खबर भीं नही होती, कि कब, कैसे, कहाँ क्या हुआ! और कभी

प्रेम और घृणा

2 मार्च 2016
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प्रेम पर सब लिखते हैं,घृणा पर कोई नहीं लिखता,जबकि कई बार प्रेम से ज्यादा तीव्र होती है घृणाप्रेम के लिए दी जाती है शाश्वत बने रहने की शुभकामना,लेकिन प्रेम टिके न टिके, घृणा बची रहती है।कई बार ऐसा भी होता हैकि पहली नज़र में जिनसे प्रेम होता हैदूसरी नज़र में उनसे ईर्ष्या होती हैऔरअंत में कभी-कभी वह घृ

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