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रवि कुमार गुप्ता के बारे में

विचारों से ही इन्सान की पहचान होती हैं . (पत्रकार, लेखक और कवि ).

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रवि कुमार गुप्ता की पुस्तकें

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रवि कुमार गुप्ता के लेख

कलमवार से: लोकतांत्रिक लॉलीपॉप,'हम बने तुम बने वोट देने के लिए'-

26 जनवरी 2017
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लेकिन समाज व्याप्त अराजकता, दंगे-फसाद, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार आदि को देखकर तो लगता है कि कोई सही नहीं है, सब के सब गरीबों के टैक्स पर ऐश कर रहे हैं. इतना तो हम जान रहे हैं पर हम जैसे लोग हैं कितने. हर चुनाव में बस वादा और इरादा का नाटक देख रहे हैं. लेकिन फर्क बस इतना दिखता

कलमवार से: अमेरिकन स्टार का दिल हिंदुस्तानी, 2017 का भारतीय विवेक-

11 जनवरी 2017
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(A Hindu monk,Swami vivekananda has done a great service not only in bringing forward the pure doctrines of Hindu philosophy,but has succeeded in convincing the intelligent and enlightened portion of the American public.Similarly a young ac

इस ठण्ड के लिए आग कब जलाओगी?

8 जनवरी 2017
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हर ठंड के लिए गर्मी जरुरी है. बिना गर्मी के ठण्ड थोड़े ही भागती है, और अगर गर्मी लानी है तो आग लगानी पड़ेगी. ठण्ड का मौसम है तो हर कोई तो आग पर खुद को सेंक रहा होगा, तो कोई आग जलाने की तैयारी कर रहा होगा. भैया, आप यही सोंच रहे हो ना की, ठंड

कलमवार से :: बैंककर्मियों के लिए नोटबंदी बना 'पाइल्स', दर्द किसे बताएं-

6 जनवरी 2017
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भाई नोटबंदी के 50 दिन बीत गए हैं, हाँ भाई उससे भी ज्यादा दिन हो गए हैं पर अभी तक पिछऊटा का घाव बन गया है. यह बात बड़े बिजसनेस को नहीं समझ आएगी काहे की उनके काम तो ऊपर से ही हो जाता है, चाहे वेस्टर्न कमोड की तरह. लाइन में लगाने की और कुछ जर

महिलाओं को ' हिलाओं ' बनाने में भी पुरुषों का हाथ

4 जनवरी 2017
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जी हाँ, यह अब तक का सबसे बड़ा खुलासा है. खुलासा करने वाली कोई महिला नही बल्कि एक लड़का कर रहा है. यह कोई गलत बात नहीं हैं आपने भी तो देखा ही होगा, ये 'हिलाओं' वाला कारनामा और यह

कलमवार से :: डॉक्टर के इंतजार में मरीज का अंतकाल (व्यंग्य )

3 जनवरी 2017
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डॉक्टर के इंतजार में मरीज का अंतकाल (व्यंग्य )प्राथमिक विद्यालय का वो टेंश का वाक्य मुझे आज भी याद है कि 'डाॅक्टर के आने से पहले मरीज मर चुका था ' और मैं भला भूल भी कैसे सकता हूँ ? क्योंकि आज तक डॉक्टरी के चक्कर मे मैने अपना आधा जीवन जो गुजार दिया है और दवाई के लिए तो क

इस साल नोटबंदी बना मज़ाक, आप भी जानिए पर जूता मत मारीयेगा प्लीज

30 दिसम्बर 2016
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साहब, नोटबंदी को लेकर के सब परेशान हैं, मैं भी परेशान क्योंकि मैं ना मोदी, ना राहुल, ना रविश और ना ही खान हूँ. लेकिन पूरी नोटबंदी के मसले में कुछ लोगों ने मजाकिया मशाल भर दिया

कलमवार से :: लंगोट का ढीलापन बीवी जानकर छुपा लेती हैं पर अपने अंडरमन की नपुंसकता बाजार में काहे बेच रहे हो!

29 दिसम्बर 2016
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हाँ, मेरी नज़र ब्रा के स्ट्रैप पर जा के अटक जाती है, जब ब्रा और पैंटी को टंगा हुआ देखता हूँ तो मेरे आँखों में भी नशा सा छा जाता हैं. जो बची-खुची फीलिंग्स रहती हैं उनको मेरे दोस्त बोल- बोल कर के जगा देते हैं. और कौन नहीं देखता है, जब सामने कोई भी चीज आ जाये तो हम देखते हैं.

बातें रात की : वो झींगुरों की बातें -

27 दिसम्बर 2016
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रात की कचकच काली अंधेरी और झींगुरो की बिरह गीत, तो ऐसे पल मे तन्हा मन अपनी विरानीयों को दूर करने के लिए कोई ना कोई रास्ता निकाल ही लेता है । तन्हाईयों का रात मे आने का राज तो ना राज ही है, ना ही आवाज ही है । कुछ भी हो परन्तु मेरे लिए तो हमर

वाकई गधा गधा है!

25 दिसम्बर 2016
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वाकई गधा, गधा हैं! ( व्यंग्य )-गधे का बोल देना यात्रा के दौरान मंगलमय माना जाता है और यदि कछुआ अंगुलि को पकड़ ले तो गधे की आवाज सुनकर छोङ देता है. ऐसा माना जाता है पता नहीं वास्तविकता क्या है लेकिन गधे की मेहनत की वास्तविकता को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं परंतु कर

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