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विशाल शुक्ल के बारे में

पेशे से पत्रकार, हृदय से कवि यानी करेला वह भी नीम चढ़ा

पुरस्कार और सम्मान

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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2022-06-29

विशाल शुक्ल की पुस्तकें

विशाल शुक्ल के लेख

साष्टांग प्रणाम और गोरे-गोरे पैर

31 अगस्त 2022
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कड़ी कभी मंदिर गए हो…। ये क्या सवाल हुआ… मंदिर गए हो क्या…अरे गए ही होगे..। खैर … बात मंदिर जाने न जाने की नहीं है। नास्तिक-आस्तिक की भी नहीं है। बात है साष्टांग दंडवत की…। नहीं समझे…। अरे वही..जिसमें

मेरा पहला वैलेंटाइंस डे

18 अगस्त 2022
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वो भी क्या दिन थे। आज सोचो तो हंसी आती है पर थे वे बड़े सुहाने दिन। 1996-97 की बात है। गांव से निकलकर नया-नया कस्बे में पढ़ने पहुंचा था। केंद्रीय विद्यालय में कक्षा 11 में एडमिशन हुआ था। दीन-दुनिया से

बारिश का दर्द

28 जून 2022
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सुना है गांव में बादल आये हैं मां के कदमों में झूमकर बरसे हैं कुछ ग़म की बूंदों ने शिकायत की और ढेर सारे खुशी के पानी झरे हैं मां से बोले हैं बादल अपने शहर वाले बेटे को जरा समझाओ इतना पढ़ा लिख

इशारों ही इशारों

14 अगस्त 2016
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अपने गिरेबां में झांकऐ मेरे रहगुजरसाथ चलना है तो चलऐ मेरे हमसफरचाल चलता ही जा तूरात-ओ-दिन दोपहरजीत इंसां की होगीयाद रख ले मगरइल्म तुझको भी हैहै तुझे यह खबरएक झटके में होगाजहां से बदरशांति दूत हैं तोहैं हम जहरबचके रहना जरान रह बेखबर

चलो कुछ ऐसा कमाया जाये

13 अगस्त 2016
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चलो कुछ ऐसा कमाया जायेरिश्तों का बोझ ढहाया जायेआईने पर जम गई है धूल जोमिलकर कुछ यूं हटाया जाये#विशाल शुक्ल अक्खड़

हां मेरे भी दो चेहरे हैं

5 अगस्त 2016
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हां मेरे भी दो चेहरे हैंदुनिया से हंस हंस करबातें करनाबिना वजह खुद कोहाजिरजवाब दिखानापर असली चेहरे सेकेवल तुम वाकिफ होहै न...क्योंकि तुम्हारे हीआंचल में तो ढलके हैंदुनिया के दिए आंसूतुम्हारे ही कदमों मेंझुका है गलती से लबरेज यह चेहरातुम पर ही तोउतरा है जमाने भर का गुस्साऔर यह दुनियाकहती हैमैं तुम्हा

वो कमजर्फ

15 जुलाई 2016
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वो कमजर्फ निगहबां को भूल जाते हैंकमबख्त कैसे बागबां को भूल जाते हैंबचकर रहना इन बेमौसमी बादलों सेखुदगर्जी में आसमां को भूल जाते हैं

वह बेटी है

3 जुलाई 2016
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मैं हंसता हूंवह हंसती हैमैं रोता हूंवह रोती हैमैं पिता हूंवह बेटी हैमैं सेंकता हूंवह सिंकती हैमैं खाता हूंवह घुलती हैमैं याचक हूंवह रोटी हैमैं सजता हूंवह सजती हैमैं हर्षित हूंवह मुदित हैमैं नंगा हूंवह धोती है

शब्दों की सीमा में तुझको बांध कहां पाऊंगा

1 जुलाई 2016
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शब्दों की सीमा में तुझको बांध कहां पाऊंगा कविता में तुझ जैसा अभिमान कहां से लाऊंगा ममता की कीमत देने को कैसे कह डाला तुमने जननी जैसा कोई न सम्मान तुम्हें दे पाऊंगा 

जुल्फ घनेरी छांव तले बादल बन उड़ जाऊंगा

25 जून 2016
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जुल्फ घनेरी छांव तले बादल बन उड़ जाऊंगाकैसे सोच लिया तुमने मन गीत तुम्हारे गाऊंगामां के आंचल में सिसका हूं मां के सीने पर सोया हूंमैं गीत उसी के गाता हूं, मैं गीत उसी के गाऊंगा

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