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मुकुल शर्मा के बारे में

पेशे से सॉफ्टवेयर इंजिनियर हूँ | कॉफी पीना, कुछ नया सीखना, जीवन से जुड़े विषयों पर बातचीत करना खुशी का अहसास कराते हैं | जीवन की अनुभूतियों एवं अनुभवों को लेखन तथा चित्रकारी से अभिव्यक्त करना सुकून देता हैं |

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मुकुल शर्मा की पुस्तकें

ahsaas

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बस अहसास ही तो हैं! कि तुम भी वही हो.. और मैं भी वही हूँ.! :)

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ahsaas

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<p>बस अहसास ही तो हैं! कि तुम भी वही हो.. और मैं भी वही हूँ.! :)</p>

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anubhuti

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एक प्रयास जीवन की अनुभूतियों को शब्दों में समेटने का !

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<p>एक प्रयास जीवन की अनुभूतियों को शब्दों में समेटने का !</p>

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मुकुल शर्मा के लेख

पुस्तकें जो मेरी प्रेरणा बनी..!

11 जुलाई 2016
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नौ दस वर्ष की उम्र में कॉमिक्स पढते हुए जाने कब ओशो को पढ़ना प्रारम्भ कर दिया ठीक से याद नहीं आता |ओशो की नानक पर एक पुस्तक "एक ओमकार सतनाम" पढते हुए उस वक्त ऐसा लगा कि कोई नया द्वार खुल गया हो | और फिर एक सिलसिला चल पड़ा पुस्तकें पढ़ने का | ओशो के अतिरिक्त जे. कृष्णमूर्ति, दलाई लामा, आचार्य महाप्रज्ञ,

रिश्ता नाजुक सा था..!

29 जून 2016
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ना छुपाया गया, ना बताया गया..रिश्ता नाजुक सा था, ना निभाया गया..साँसे बेबस सी थी, बेकरारी भी थी..हालत मेरी जो थी, क्या तुम्हारी भी थी.?दिल बहुत था दुःखा, सब दिल में रखा..दर्द आँखों से मुझसे, ना बहाया गया..रिश्ता नाजुक सा था...की कई कोशिशें, पर समझ ना सका..मैं यूँ घुट घुट जिया, कि तड़प ना सका..कोई बात

मेरा लेखन - अनुभूति , संवेदना और जीवन्तता..!

25 जून 2016
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जीवन में घटित हुआ कुछ भी, जो मन पर अंकित हो जाए लेखन में तब्दील हो ही जाता है | चिंतन लेखन को दिशा देता है, और लेखन जीवन को |सच कहूँ तो लेखन से अनुशासन, संकल्प, चिंतन जैसी कई सकारात्मक प्रवृतियों ने मुझमे जन्म लिया |मेरे लिए लेखन सदैव ही आत्म-सुधार का कार्य करता है | शायद व्यक्तित्व के अनुसार ही लेख

कोई कैसे कह दे..!

24 जून 2016
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कोई कैसे कह दे...कि वो किसी से.. कितना प्रेम करता है..!!क्या यह विचार करना भी...उसके प्रेम पर.. प्रश्न नहीं होगा..?क्यों इस 'क्यों' के फेर में पड़कर...अपने पावन प्रेम से बढ़कर...अपनी बौद्धिकता से.. हृदय को हराए...क्या यह निर्मल प्रीत का.. हनन नहीं होगा..?कोई कैसे कह दे...कोई कैसे.. अपने समर्पण की..

शब्दों के अँधियारे में..!

18 जून 2016
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शब्दों के अँधियारे में, जो देखा होके मौन,मन अँधियारा मिट गया, दीखा कैसा कौन ||राह कई उलझन कई, है अनगिनत विकल्प दिशा नजर आने लगी, साधा जब संकल्प ||सम्पूर्ण जीवन अनवरत, नित नूतन संघर्षआस्था भीतर में हो, संघर्ष बनें सब हर्ष ||आगे की चिंता किसलिए, क्यों अतीत से युद्धचिंता कोई भी ना टिके, रहे जो चिंतन शु

मैं बस प्यार लिखता हूँ..!

13 जून 2016
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ना तू दिल का आलम पूछ.. कि बनके ख्वाव खिलता हूँ..मैं तुझसे जब भी मिलता हूँ.. हाँ पहली बार मिलता हूँ..मेरी कीमत का जो सोचो.. हूँ सदियों की जमा पूँजी...जो तुम बस प्यार से देखो.. सरे बाज़ार बिकता हूँ..कभी दुश्मन कभी आशिक़.. कभी मौला कभी मुर्शिद..जिस नीयत से तुम देखो.. मैं वैसा यार दिखता हूँ..तेरी परवाह मे

बेवजह.. बस यूँ ही..!

12 जून 2016
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कैसा महसूस होता है..? जब... आप किसी के लिए कम महत्वपूर्ण हो जाते हैं.. वो भी उसके लिए जो आपके लिए सर्वाधिक महत्व रखता है.. मन तो होता है.. कि उसे सीधे शब्दों में जाकर बोल दिया जाए कि.. "अब तुम मेरा ख्याल नहीं रखते..".. या "अब कभी ऐसा मत करना..".. फिर लगता है कि..ये तो उसकी स्वतंत्रता पर अंकुश लगाना

दर्द उसके हिस्से का..!

11 जून 2016
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सूखे में चटकती मिट्टी सी ...उसके चेहरे की रेखाएं...व्याकुल सी सहमी सी ....उसकी वो निगाहें...दर्द उसके हिस्से का...कम मैं कैसे करूँ ...सजा दूँ मैं खुद को...या..खुदा से लडूं ....इस उम्र में जब....सम्मान उसका अधिकार है...वो फैला रही है ...हाथो को...उसे कुछ....पैसो की दरकार है....कोई देता है ताने....कोई

माँ तो बस माँ होती है..!

10 जून 2016
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जब कभी मैं..माँ के विषय में..लिखने का विचार करता हूँ...तो जैसे...शब्द भी डरने लगते है...अक्षर सब क्षरने लगते है....और कहते है मुझसे...कि...अस्तित्व का वर्णन हो सकता है...पर माँ को... कौन वर्णित कर सकता है...?संतो-अरिहंतो की दुआ होती है...बुद्धो की जैसे पनाह होती है.... पूछे जब कोई... मैं क्या उपमा द

अनायास..!

9 जून 2016
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उल्टा मटका.. खामोश सवेरा..संकोच से गाती चिड़िया... सहमे से पेड़... दम तोड़ते पत्ते...कुछ धूल भरी पुरानी चीज़े..एक उम्रदराज़ कुर्सी...एक तस्वीर.. मेरी और तुम्हारी..डायरी के खाली पन्ने..सूखा हुआ फूल..एक अधूरा चित्र.. सूखे हुए रंग..सब जीवंत हो उठते है..जब तुम...नज़रे मिलाते हो..! :)

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