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संतोष झा के बारे में

<span style="font-size:17.0pt;mso-bidi-font-size:11.0pt;line-height:115%;font-family: &quot;Mangal&quot;,&quot;serif&quot;">ऐसा<span style="font-size:17.0pt;mso-bidi-font-size:11.0pt;line-height:115%;font-family: &quot;Kruti Dev 010&quot;"> <span style="font-size:17.0pt;mso-bidi-font-size:11.0pt;line-height:115%;font-family: &quot;Mangal&quot;,&quot;serif&quot;">प्रतीत<span style="font-size:17.0pt;mso-bidi-font-size:11.0pt;line-height:115%;font-family: &quot;Kruti Dev 010&quot;"> <span style="font-size:17.0pt;mso-bidi-font-size:11.0pt;line-height:115%;font-family: &quot;Mangal&quot;,&quot;serif&quot;">होने<span style="font-size:17.0pt;mso-bidi-font-size:11.0pt;line-height:115%;font-family: &quot;Kruti Dev 010&quot;"> <span style="font-size:17.0pt;mso-bidi-font-size:11.0pt;line-height:115%;font-family: &quot;Mangal&quot;,&quot;serif&quot;">लगा<span style="font-size:17.0pt;mso-bidi-font-size:11.0pt;line-height:115%;font-family: &quot;Kruti Dev 010&quot;"> <span style="font-size:17.0pt;mso-bidi-font-size:11.0pt;line-height:115%;font-family: &quot;Mangal&quot;,&quot;serif&quot;">है<span style="font-size:17.0pt;mso-bidi-font-size:11.0pt;line-height:115%;font-family: &quot;Kruti Dev 010&quot;"> <span style="font-size:17.0pt;mso-bidi-font-size:11.0pt;line-height:115%;font-family: &quot;Mangal&quot;,&quot;serif&quot;">कि<span style="font-size:17.0pt;mso-bidi-font-size:11.0pt;line-height:115%;font-family: &quot;Kruti Dev 010&quot;"> <span style="font-size:17.0pt;mso-bidi-font-size:11.0pt;line-height:115%;font-family: &quot;Mangal&quot;,&quot;serif&quot;">संभवतः<span style="font-size

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संतोष झा की पुस्तकें

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संतोष झा के लेख

हालिया तहजीब

18 अगस्त 2021
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हस्ती का शोर तो है मगर, एतबार क्या,दुनिया तमाशाई, हर कुंदजेहन यहां अदीब है... जिंदगी के रंगमंच की रवायत ही देखिए,दीद अंधेरे में, उजाले अदायगी को नसीब है... जवाब भी ढूंढ़ते है सवालों के उस फकीर से,जिसकी कैफियत, उसकी दाढ़ी सी बेतरतीब है... उलझे हुए लोग, चौराहों पर दुकान

बस लुत्फ लीजे...

17 अगस्त 2021
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इकदरवाजा है, खुला भी है,स्मृतियों का, अपने ही ज्ञान का,सीमाओं में जकड़ा, उलझा इंसान,थोड़े कोबहुत, बहुत को थोड़ा करता,अपनी हीद्वंद में इतराता इंसान,बंद कमरे साजीवन जीता नादान... घुटी, पिघलती बदबूदार सांसें लेता,सूरत सेबेपरवाह, आईनें बदलता,दिमाग खाली, घर केकमरे भरता,गर्क यहकि दरवाजे सदाएं नहीं देतीं,खुन

दिल चाहता है...

14 अगस्त 2021
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जिंदगी बेहद मुख्तसर,इसकी रस्मे-अदायगी,गोया औरभी मुख्तसर...बन पड़ते हैं गाहे-बगाहे,शफकत-अखलाक केअवसर,खुलती हैं दिलों कीखिड़कियां,सबा आती है, मगर, पल भर,फिर वही, पुरानी सीवीरानगी...कमाल है, अपनों की दीवानगी...तहजीब की,फुलझड़ी सी रवानगी...बस चंद कतरे अल्फाज परोसिये, या फिर

तब जा के...

13 अगस्त 2021
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बहुत साल जाया हुए,कई रातें कटीं आंखों में,पैर जख्मों सेरुबरु हुए,तब जाके यह तय हुआ,झूठ कितना विस्तृत है,सच कितना बेबुनियाद है,यथार्थ कितना बेचारा है,भटकाव कितना व्यापक है... ... बहुत साल जाया हुए,तब जाके यह तय हुआ,लोग कैसे गुमराह जीते हैं,दुनिया क्यूं फरेब खरीदती है,इ

नाहक ही...

13 अगस्त 2021
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नाहक ही...बेसबब न भी हो,पर, नाहक ही...<!--[if !supportLineBreakNewLine]--><!--[endif]-->शायद, यही सिला है,बचपन से पचपन तक,ये जो उड़ता बुलबुला है,मिला तो क्या मिला है,खामखा का सिलसिला है,सोचिये तो, नाहक ही.

परबतिया का विकास माडल

12 अगस्त 2021
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परबतियाअपनीसासकेसाथबिहारसेकुछसालपहलेपलायनकरदेहरादूनआयीऔरअपनीसासकीतरहहीघरोंमेंबर्तन-चौकाकरतीहै।परबतियाकेकुनबेमें,जिसेविकासकेमानकोंकेहिसाबसे‘हाउसहोल्ड’ कहाजाताहै,उसकेसास-ससुरकेअलावाउसकापतिऔरउसकेअपनेएवंसासकेबच्चेहैं।इस‘हाउसहोल्ड’ कीमासिकआयहैतीसहजाररुपये।जीहां,आपनेसहीपढ़ा,तीसहजाररुपये!आप कहेंगे,लेखक-पत्र

न सिला, न गिला---

11 अगस्त 2021
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उम्र सेपूछिये, लम्हों का सिला,खुद सेपूछिये, दूसरों का गिला,जूते जानते हैं, कौन कितना चला,दौलत वही, जो ऐनजेब से निकला... दूर तलक जोकाफिला निकला,गंुजाईश कोहमसफर भी मिला,मीर नहीं मैं, न गालिब सेमिला,जो बसर हुई, वही कहके निकला... यही कौम है, ऐसे ही चले है काफिला,बदनसीबी

महबूबा

11 अगस्त 2021
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दुःख सीहसीन तोकोई दिलरुबा हीनहीं,हर लम्हा रहे जोजेहन मेंअसल महबूबा भीवही,लाख चाहूं किनिकल जाएजिंदगी सेमेरी,बेशर्म लिपटी हैकलेजे सेकि जाती हीनहीं,कहती है, कमबख्तबिफर केअजब नाज से,दुःख हूं, रिश्ता नहीं,मौत तकपीछा छोड़ूंगी नहीं,मै हीलोरी, गज़ल भी मैं,फातिहा पढ़ूंगी मैं ही.

तर्जे-बयां के फरोगे-हुस्न की खुशबू का लुत्फ...

21 अक्टूबर 2017
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तर्जे-बयां, यानि किसी चीज के बारे में कहने-सुनाने का तरीका... इस तर्जे-बयां का हमारी जिंदगी में और उसके खुशनुमेंपन में बेहद संजीदा रोल है... हम हालांकि आज की तेज जिंदगी में इस तर्जे-बयां की खूबसूरती की खुशबू से लगातार महरूम होते जा रहे हैं... चलिए, थोड़ी बातचीत इसी तर्

इस शतक को शून्य कर दो...!

19 अक्टूबर 2017
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शून्य से सौ बनानासफलता पर इतरानाकाबिलियत का अपनेबेसाख्ता जश्न मनाना...जो कोई पूछ दे अगरसूरमां हो बहुत तुम गरबस ये करके दिखा दोचक्रव्यूह में घुसे शान सेजरा निकल कर दिखा दोये जो शतक लगाया हैउसे फिर से शून्य बना दो...इतना चले हैं हम सबकि रास्ते चिढ़ गयें हैंइतने हासिल किये मुकम्मलमंजिलें बेनूर हो चली है

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