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उत्तम दिनोदिया के बारे में

दोस्तों, जिन्दगी की भागदौड़ ने बंजारा बना दिया है। वक्त किसी के साथ ज्यादा समय रूकने नहीं देता और दिल किसी को छोड़ना नहीं चाहता। बस इन्हीं उलझे हुए लम्हात को कुछ अनकहे शब्दों से सुलझाने की कोशिश कर रहा हूं और मैं "उत्तम दिनोदिया" आपसे, मेरे इन अनकहे शब्द के सफर में साथ चाहता हूं..

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उत्तम दिनोदिया की पुस्तकें

उत्तम दिनोदिया के लेख

सिंधु सरस्वती की सभ्यता

2 जनवरी 2017
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सभ्यताएं जन्म लेती हैं उत्कर्ष पर आती हैं और फिर विलुप्त हो जाती हैं कुछ सिल्ला, माया, एस्ट्राकोंस, नोक, सैंजिंगडुई की सभ्यता मानिन्द तेज गुजरती रेलगाड़ी की तरह, पर्याप्त गुंज के साथ धङधङा कर गुजर जाती हैं तो कुछ रोम, यूनान, चीन, मैसोपोटामिया, मिस्रऔर सिन्धु घाटी की सभ्यताओं की तरह, चुपचाप हजारों वर

तीन तलाक

18 अक्टूबर 2016
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मेरे इस्कूल जाते वक्त  तीन तीन घंटे, तेरा मेरे दिदार का तकल्लुफदिखते ही मेरे, तेरे चेहरे पर रंगत आ जाना मेरे बुर्कानशीं होकर आने परवो तेरी मुस्कान का बेवा हो जानामेरे इस्कूल ना जाने कि सूरते हाल मेंतेरा गली में साइकिल की घंटियां बजाना सुनकरखो गई थी मैं, और तेरी जुस्तजू मेंदे दिया था मैंने मेरे अपनों

शहीद का परिवार

27 जुलाई 2016
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तन्हाई की परछाई को अकेलेपन की सियाही कोयादों की पुरवाई को और बीत चूकी छमाही कोचलो आज लिखा जाए.....आंखों के बह गये काजल कोखामोश हो चूकी पायल कोबरस चूके उस बादल कोमन मयुर पपिहे घायल कोचलो आज लिखा जाए.....बेजान हुई इक नथनी कोवक्त काल प्रवाह महाठगनी कोधधक खो चूकी अग्नि कोकंही शुन्य ताकती सजनी कोचलो आज ल

आहिस्ते-आहिस्ते

14 जुलाई 2016
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तैयार की जाती है औरतें इसी तरह रोज छेदी जाती है उनके सब्र की सिल हथौड़ी से चोट होती है उनके विश्वास पर और छैनी करती है तार – तार उनके आत्मसम्मान को कि तब तैयार होती है औरत पूरी तरह से चाहे जैसे रखो रहेगी पहले थोड़ा विरोध थोडा दर्द जरुर निकलेगा आहिस्ते – आहिस्ते सब गायब और पुनश्च दी जाती है धार क्रूर

औरत

1 जुलाई 2016
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हर किसी को चाहिये सुसंस्कृत नारी जो बस उसके के ही गीत गायेगी खुद के लक्षण हों चाहे शक्ति कपूर जैसे पर बीबी सपनों में, सीता जैसी आयेगीरूप लावण्य से भरी होनी चाहिये जवानी भी पूरी खरी होनी चाहिए सामने बोलना मंजूर ना होगा हरदम नौकरी भी करती हो तो छा जायेगीघर के काम में दक्षता होना तो लाजिमी है जो उसे दब

इक मां का दर्द

20 जून 2016
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स्वप्न आता है इक रात सोयी हुई मां को पुत्री, स्वयं मां आदिशक्ति तेरे घर आयेगी एक चिरकाल से स्वर्ग में विचरित अप्सरा जल्द ही तेरी पावन कोख में स्थान पायेगीअचानक चौंककर घबरा उठती है वो अबलाअश्रु नींदों में भी, गालों पर ढलक आते हैं हाथ जोङ, मांगती है पूत्रजन्म की भिक्षा कहती है मां, दया करो ये मार

"हमारा सनातन विज्ञान"

16 जून 2016
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आज सुबह बेटा बोलापापा, मैं बङा होकर अमेरिका जाऊंगा मैंनें होकर हतप्रभ पूछा, क्यों बेटा, अमेरिका क्यों, हिन्दुस्तान में क्या नहीं है, बेटा बोला, पिताजी,हमारे पास विज्ञान की विरासत नहीं हैंज्ञान को दें न्याय, वो अदालत नहीं हैंहमनें आखिर दुनिया को दिया क्या है" ये ताना क्या हमपर जलालत नहीं है......सुनक

जिंदगी और मौत

12 जून 2016
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खुदा के घर आई खुशियां हुआ प्रादुर्भाव, प्यारी सी कन्या का नाम रखा, "जिंदगी" जहां भी जाती, अपने दोस्त उमंग, तरंग, आशा, विश्वास सदा साथ ले जाती वक्त प्रवाह में हंसती मुस्काती चिङती झुंझलाती जा पहुंची यौवन को घर वालों ने ढूंढा रिश्ता हर दिल की ख्वाहिश, मन्नतों का बेटा उल्लास...... हां, पक्का सा तो

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