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एस. कमलवंशी की पुस्तकें

मेरी कलम - मेरा कलाम

मेरी कलम - मेरा कलाम

"मेरी कलम - मेरा कलाम" एस. कमलवंशी द्वारा रचित कविताओं का संग्रह है।

3 पाठक
17 रचनाएँ

निःशुल्क

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एस. कमलवंशी के लेख

मोरे पिया की चिट्ठी आई है

11 अगस्त 2022
1
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हट री सखी, न कुछ बोल अभी, सुन तो सही वह टेर भली, कर जोड़ तोसे विनती करूँ, तोहे तनिक देर की मनाही है, तू ठहर यहीं, कहीं जा नहीं, झटपट मैं फिर आ रही यहीं, न चली जाए वह डाक कहीं, मोरे पिया की चिट्ठी आ

यादों का पागलखाना

19 जनवरी 2019
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जब भी तेरी वफाओं का वह ज़माना याद आता है,सच कहूं तो तेरी यादों का पागलखाना याद आता है।कसमों की जंजीर जहां पर, वादों से बनी दीवारें हैंझूठ किया है खंज़र से तेरे नाम की उन पर दरारें है।टूट चुका सपनों का बिस्तर, अफ़सोसों की चादर हैतकियों को गीला करती अश्क़ों की जहां फुहारें हैं।जलती शमा में कैद वहां, परवान

मोरे पिया बड़े हरजाई रे!

8 जुलाई 2017
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ओ री सखी तोहे कैसे बताऊँ, मोरे पिया बड़े हरजाई रे,रात लगी मोहे सर्दी, बेदर्दी सो गए ओढ़ रजाई रे।झटकी रजाई, चुटकी बजाई, सुध-बुध तक न आई रे!पकड़ी कलाई, हृदय लगाई, पर खड़ी-खड़ी तरसाई रे!अंगुली दबाई, अंगुली घुमाई, हलचल फिरहुँ न आई रे!टस से मस

मैं मटमैला माटी सा

4 जून 2017
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मैं मटमैला माटी सा , माटी की मेरी काया,माटी से माटी बना, माटी में ही समाया।समय आया, आकाश समेटे घाटी-माटी पिघलाया,अगन, पवन, पानी में घोलकर, तन यह मेरा बनाया।।जनम हुआ माटी से मेरा, माटी पर ही लिटाया,माटी चखी, माटी ही सखी, माटी में ही नहा

दर्पण

26 मई 2017
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बोले टूटकर बिखरा दर्पण, कितना किया कितनों को अर्पण, बेरंगों में रंग बिखेरा, जीवन अपना किया समर्पण। देखा जैसा, उसको वैसा, उसका रूप दिखाया, रूप-कुरूप हैं छैल-छवीले, सबको मैंने सिखाया, घर आया, दीवा

मित्र का चित्र

20 मई 2017
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सुरमई आँखों को सजाएँ, काज़ल की दो लकीरें,मैंने इनमें बनती देखी कितनी ही तसवीरें,तसवीरों के रंग अनेकों, भांति-भांति मुस्काएं,कुछ सजने लगी दीवारों पर, कुछ बनने लगी तक़दीरें।कुछ में फैला रंग केसरिया, कुछ में उढ़ती चटक चुनरिया,कुछ के रंग सफ़ेद सुहाने, कुछ में नागिन लचक कमरिया

काश, मेरी भी माँ होती!

14 मई 2017
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काश, मेरी भी माँ होती! मैं उसे अपनी माँ बुलाता।प्रेम जताता, प्यार लुटाता,चरण दबाता, हृदय लगाता,जब कहती मुझे बेटा अपना, जीवन शायद सफल हो जाता, काश, मेरी भी माँ होती! मैं उसे अपनी माँ बुलाता।मैं अनाथ बिन माँ के भटका, किसको अपनी मात् बताता,जब डर लगता इस दुनियाँ का, किस

अब इतना दम कहाँ!

2 मई 2017
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दुख गए हैं कंधे मेरे, अपनों का बोझ उठाते, फिर सपनों का बोझ उठाऊं, अब इतना दम कहाँ ! कण कण जोड़कर घरोंदा ये बनाया मैंने, तन-मन मरोड़कर इसको सजाया मैंने। रुक गया, मैं झुक गया, बहनों का बोझ उठाते,

ऐ मेरे दिल की दीवारों

1 मई 2017
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ऐ मेरे दिल की दीवारों, रूप अनूप तुम्हारा करूँ!सजनी के हैं रूप अनेकों, कौन सा रूप तुम्हारा करूँ?क्या श्वेत करूँ, करे शीतल मनवा, उथल पुथल चितचोर बड़ा है,करूँ चाँदनी रजत लेपकर, पूनम का जैसे चाँद खड़ा है।करूँ

दास्तान-ए-कलम (मेरी कलम आज रोई थी)

28 अप्रैल 2017
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मेरी कलम आज फिर रोई थी,तकदीर को कोसती हुई, मंजर-ए-मज़ार सोचती हुई,दफ़न किये दिल में राज़, ख़यालों को नोंचती हुई।जगा दिया उस रूह को जो एक अरसे से सोई थी,मेरे अल्फाज़ मेरी जुबां हैं, मेरी कलम आज रोई थी।।पलकों की इस दवात में अश्कों की स्याही लेकर,वीरान दिल में कैद मेरी यादों

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