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तारकेश के लेख

राम नाम महिमा अमित,अपार तूने ही फैलायी। शिव रूप छोड़,हनुमान बन भक्ति सबको सिखायी।।

13 अगस्त 2016
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बजरंगबली भला तेरी महिमा कहो किसने न जग गायी।शरण आया जो तेरी हर मुश्किलों से निजात पायी।।राम नाम महिमा अमित,अपार तूने ही फैलायी।शिव रूप छोड़,हनुमान बन भक्ति सबको सिखायी।।अष्ट-सिद्धि,नव-निधि प्राप्त कर  जग हित लगायी।हर घडी राम-राम बस यही एक अलख जगायी।।समस्त कामना से दूर तूने बस राम उर लौ लगायी।याद दिला

संत प्रवर तुलसीदास - श्रद्धा सुमन

10 अगस्त 2016
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वेद,पुराण,उपनिषद जैसे सब ग्रंथों का सार। शिव-मानस सदा रहा है,इनका शुभ आगार।।जगद्गुरु ने उसी तत्व का,लेकर फिर आधार। रचा राम का निर्मल विस्तृत चरित अपार।।शिवशंकर के वरद हस्त का पाकर आशीर्वाद। किया श्रवण "तुलसी" ने उर में रामकथा संवाद।।भाव समाधि में किया फिर,झूम-झूम कर गान। रामचरितमानस से उपजा,जन-जन का

मोर दास कहाइ नर आसा। करइ तौ कहहु काह बिस्वासा।।७/४५/३

8 अगस्त 2016
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मोर दास कहाइ नर आसा। करइ तौ कहहु काह बिस्वासा।।७/४५/३---------------------------------------------------------------श्रीरामचरितमानस के उत्तरकांड में श्रीरामजी अपनी प्रजा के सम्मुख जो अपने विचार रख रहे हैं उनमें यह एक चौपाई बड़ी मार्मिक और गूढ़ है। प्रायः हम अपने आप को रामभक्त मान इतराते हैं और यह भी म

ढाई आखर प्रेम का

4 अगस्त 2016
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आओ चलो अब हम मरने चलें,जीवन में अपने कुछ करने चलें।

29 जुलाई 2016
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आओ चलो अब हम मरने चलें,जीवन में अपने कुछ करने चलें। हर तरफ भ्रष्टाचार का बोलबाला ,हर घडी घटनाओं का अम्बर काला। बलात्कार,खून,रंजिश,डकैती ;दुश्मन ही नहीं अब भाइयों में भी होती। नेताओं में ईमान था भला कहाँ;कहो पहले भी कब सहज-सुलभ रहा। अब तो वो नंगई में उतारू हो रहे;सत्ता की खातिर सारे कुकर्म कर रहे। यह

साईं कृपा का सच्चा विशिष्ट अनुभव एक भक्त के साथ (काव्य रूप में )

29 जुलाई 2016
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साईं कृपा का सच्चा विशिष्ट अनुभव एक भक्त के साथ (काव्य रूप में )मेरे एक आत्मीय को हुए इस लंबे अनुभव को संक्षिप्त में काव्य रूप में मैंने बस लिखा है।एक विशेष बात उसके साथ ये भी है की वो ध्यान करता तो साई का है पर उसे दर्शन यदा -कदा महाराज (नींबकरोली जी) का होताहै। सूर्योदय से बहुत सबेरे उठा आज में जब

मोबाइल दोहे (हास्य-व्यंग)

27 जुलाई 2016
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 मोबाइल का प्रचलन बढ़ा,जबसे चारों ओरसुबह-शाम बस बातों में,रहता सबका जोर।बैटरी ख़त्म को हो होती,प्राण कंठ को आते  मिल जाए खाली सॉकेट,चेहरे हैं खिल जाते।कहना ना कहना सब,जोर-जोर चिल्लानामोटरसायकल,कार चलाते भाता बड़ा बतियाना।अब जब से स्मार्टफोन,घर-घर है जा पहुंचाफेसबुक,ट्विटर ही लगता,सबको अपना बच्चा।सुबह-स

घन घमंड नव गरजत घोरा

27 जुलाई 2016
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- मुण्डक उपनिषद से (कविता के रूप में संछिप्त )

21 जुलाई 2016
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गुरुवर अत्यंत विनत भाव से पूछता हूँ एक प्रश्न आपसे ज्ञान कौन सा है कहिये मुझसेसमस्त विश्व जान लूँ जिससे।  ओम ,परम पूज्यनीय आप हमारे   करते हैं प्रार्थना मिल हम सारे कान सुने हमारे जो शुभ हो देखें नेत्र वही जो शुभ हो यज्ञादि कर्म हमारे शुभ हों  दक्ष बनें,अंग-प्रत्यंग पुष्ट होंजीवन अवधि योग पूर्ण होदे

बलिहारी गुरु के चरणारविन्द की

20 जुलाई 2016
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बलिहारी गुरु के चरणारविन्द की 

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