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मनोज चारण 'कुमार' के बारे में

हिंदी और राजस्थानी भाषा में कहानी, उपन्यास, डायरी, संस्मरण, यात्रा वृत्तांत, नाटक, निबंध और कविता लेखन.

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मनोज चारण 'कुमार' की पुस्तकें

मनोज चारण 'कुमार' के लेख

युद्ध का उन्माद बंद करो

20 सितम्बर 2016
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पिछले तीन दिनों से सब जन एक ही भाषा बोल रहे हैं की पाकिस्तान को मुंह तोड़ जबाब देना चाहिए। मेरा भी ये ही कहना है।परन्तु ये जबाब किस भाषा में हो, कैसा हो ? ये समझ नहीं पा रहा हूँ। कुछ लोग जोश में चिल्ला रहे है कि आर-पार की लड़ाई हो जानी चाहिए, कुछ म्यांमार जैसे ऑपरेशन की बात कर रहे है। सब के सब रक्ष

हिन्दी

14 सितम्बर 2016
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हिन्दी हिन्द में हुई पराई, लोग अपनाते अंग्रेजी। नित नये बदलते चोले, पूत हो गये रंगरेजी। तुलसी-सूर-मीरां की भाषा, क्रंदन करती दिखती है। कवि चंद के छंदो में भी, अब अग्रेजी बिकती है। मैथिल कोकिल नहीं कूकती, मौन साध कर बैठी है। सौतन बनी परायी भाषा, सिंहासन पर ऐंठी है। प

भारतीय धर्म और दर्शन की घोषयात्रा क शंखनाद थी शिकागो की धर्म-सभा

10 सितम्बर 2016
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भारतीय धर्म और दर्शन की घोषयात्रा का शंखनाद थी शिकागो धर्म-सभा मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण से विदेशी गुलामी से ग्रसित हुए भारतीय राष्ट्र-सूरज पर अंग्रेजी साम्राज्य का यूनियन जैक रूपी राहु ग्रहण लगा रहा था। भारतीय जन मानस में ये बात घर कर चुकी थी कि अंग्रेज़ हमसे शायद श्रेष्ठ हैं। एक तरफ जहां भार

नजरिया अपना-अपना

9 सितम्बर 2016
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जीवन के बारे में, जीवन शैली के बारे में, किसी का भी अपना एक अलग फलसफा हो सकता है, पर इसका मतलब यह तो नहीं कि हम हर किसी के दर्शन को अक्षरस ग्रहण कर लें। आखिर क्यों ? हमें भी सोचने, समझने, तर्क करने और अपने तर्कों को प्रकट करने कि शक्ति प्राप्त है। भगवान ने हमें यह सब इसलिए इनायत किया है कि हम हर उस

समर्पण ! क्यों करें हम ?

7 सितम्बर 2016
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अक्सर हमारा लोगों से मतभेद क्यों हो जाता है ? क्यों हम समय से समझौता नहीं कर सकते ? अपने आपको समयचक्र में समाहित क्यों नहीं कर लेते? आखिर हर जगह, हर वक्त और हर किसी व्यक्ति पर हम अपने फैसले थोंप तो नहीं सकते। तो फिर क्यों हम हर बार यही चाहते हैं कि सामने वाला

सजा नहीं सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए

2 सितम्बर 2016
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हमाम में सब नंगे हैं। कहावत बहुत पुरानी है, शायद इतनी कि उस वक्त जब ये बनी होगी तब तो हमारे पूर्वजों के भी पूर्वज भी पैदा नहीं हुए होंगे। कहावतों की बातें तो होती रहेगी हमेशा लेकिन ये कहावत कुछ अलग ही है। क्रिकेट देखते हुए लोग अक्सर आपस में उलझ जाते हैं दो टीमों को लेकर, दोस्तों में मन-

दोहरी छद्म-धर्मनिरपेक्षता की राजनीति क्यों ?

1 सितम्बर 2016
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आज के अखबारों में एक छोटी लेकिन वास्तव में बहुत बड़ी खबर पढ़ी। खबर थी गोवा की। गोवा जो कि भारत के एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल के रूप में विख्यात है। कुछ कामों के लिए कुख्यात भी है, उन पर हम चर्चा नहीं करेंगे। आज चर्चा कुछ नई बात पर होनी चाहिए। जिस गोवा से मनोहर

स्वप्न वो जो हमें सोने न दे !

31 अगस्त 2016
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अक्सर हम खुली आँखों से भी सपने देखने लगते हैं। आखिर क्यों कहते हैं कि सपने तो सिर्फ नींद में ही आते हैं। अक्सर व्यक्ति देखते-देखते अचानक कहीं ख्यालों में खो जाता है। दरअसल बात कुछ यूं है कि जब अचानक हम भविष्य के प्रश्न पर विचार करने लगते हैं तो वर्तमान में हमारे पास क

कश्मीर से सवाल

31 अगस्त 2016
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तुम रजधानी में आये आकर माता को गाली दी। उस माँ को गाली दे डाली, जिसने तुमको थाली दी। भरी हुई थाली में तुमने छेद किया है बोली से। इससे बेहतर हत्या कर देते बंदूक की गोली से।सीमा पार के आतंकी सीने पे हमने झेले है। कौन बचाये सांपो से बांहो में जो फन फैले हैं। जिनकी बातें जहरीली, सांसो में गरल उफनता

लुप्त हो चुके है भारत के मूल खेल

29 अगस्त 2016
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आज 29 अगस्त है, हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जन्मदिवस। आज के दिन को ज़ोर-शोर से हमारे देश में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। खेल, जो जीवन का एक अभिन्न अंग है। खेल, जो हमारे खून में समाया हुआ है। हमारे तीज-त्योंहार से खेल जुड़े हुए हैं। मुझे अच्छी तरह से याद है कि मेरे ननिहाल में गण

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