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सदा के बारे में

ब्‍लाग जगत पर 2009 से 'सदा' के नाम से कविताओं के माध्‍यम से आप सबके साथ साझा करती हूँ विचार, कवितायें, जो कहते हैं बस अक्‍सर .... मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक - दूसरे को सदा के लिए ...

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सदा की पुस्तकें

सदा के लेख

तपस्‍वी नहीं था कोई मेरा 'मैंं'

26 अगस्त 2016
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‘मैं’ एक स्तंभ भावनाओं का जिसमें भरा है कूट-कूट कर जीवन का अनुभव जर्रे- जर्रे में श्रम का पसीना अविचल औ’ अडिग रहा हर परीस्थिति में मेरा विश्वास फिर भी परखता कोई मेरे ही ‘मैं’ को कसौटियों पर जब लगता छल हो रहा है मेरे ही ‘मैं’ के साथ ! .... तपस्वी नहीं था कोई मेरा ‘मैं’ प

बेटियां होती ....

21 अगस्त 2016
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बेटियां होती दोनों कुल का मान स्वीकारो ये ! .... बिन बेटी के ना भाग्य संवरता जाना ना भूल ! .... बेटी होती है प्लस का एक चिन्ह जो जोड़े सदा ! .... बेटी नहीं है जिन्हें तरसते वो कन्यादान को ! .... बेटियां होती बिंदी रोली कुंकुम पूजा की पात्र ! .... बेटी सावन चूड़ी मेहँदी झूले मिल के कहें !

तुम कहने के पहले सोचती क्‍यूँ नहीं :)

20 अगस्त 2016
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ना शिकायत मुझे तुमसे है, ना ही समय से, ना किसी और सेबस है तो अपने आप से हर बार हार जाती हूँ तुम से तो झगड़ती हूँ मन से रूठकर मौन के एक कोने में डालकर आराम कुर्सीझूलती रहती अपनी ही मैं के साथ !... कभी खल़ल डालने के वास्‍ते आती हैं हिचकियाँ लम्‍बी-लम्‍बी गटगट् कर पी लेत

कलाई राखी सजे !

17 अगस्त 2016
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अक्षत रोलीलगाकर भाई को  बाँधी है राखी !...  पवित्र रिश्‍ता  विश्‍वास का बँधन  कायम रखे ! ...  रेशम डोर  कलाई से बँधे तो  दुआ बनती !  ...  माथे तिलक कलाई राखी सजे  खुश हो भाई ! ...  दुआ की डोर  बाँधे पावन रिश्‍ता  सदा के लिए !

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