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रश्मि प्रभा के बारे में

काव्य-संग्रह : शब्दों का रिश्ता (2010) अनुत्तरित (2011) महाभिनिष्क्रमण से निर्वाण तक (2012) खुद की तलाश (2012) चैतन्य (2013) मेरा आत्मचिंतन (2012) एक पल (2012) मैं से परे मैं के साथ (2015) गुड मॉर्निंग फेसबुक (2016) संपादन : अनमोल संचयन (2010) अनुगूँज (2011) परिक्रमा (2011) एक साँस मेरी (2012) खामोश, खामोशी और हम (2012) बालार्क (2013) एक थी तरु (2014) वटवृक्ष (साहित्यिक त्रैमासिक एवं दैनिक वेब पत्रिका)-2011 से 2012 ************************************************************************************ सम्मान और पुरस्कार : परिकल्पना ब्लॉगोत्सव द्वारा वर्ष 2010 की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री का सम्मान। पत्रिका ‘द संडे इंडियन’ द्वारा तैयार हिंदी की 111 लेखिकाओं की सूची में नाम शामिल। परिकल्पना ब्लॉगर दशक सम्मान - 2003-2012 शमशेर जन्मशती काव्य-सम्मान - 2011 अंतर्राष्ट्रीय हिंदी कविता प्रतियोगिता 2013 भौगोलिक क्षेत्र 5 भारत - प्रथम स्थान प्राप्त,काव्य-संग्रह : शब्दों का रिश्ता (2010) अनुत्तरित (2011) महाभिनिष्क्रमण से निर्वाण तक (2012) खुद की तलाश (2012) चैतन्य (2013) मेरा आत्मचिंतन (2012) एक पल (2012) मैं से परे मैं के साथ (2015) गुड मॉर्निंग फेसबुक (2016) संपादन : अनमोल संचयन (2010) अनुगूँज (2011) परिक्रमा (2011) एक साँस मेरी (2012) खामोश, खामोशी और हम (2012) बालार्क (2013) एक थी तरु (2014) वटवृक्ष (साहित्यिक त्रैमासिक एवं दैनिक वेब पत्रिका)-2011 से 2012 ************************************************************************************ सम्मान और पुरस्कार : परिकल्पना ब्लॉगोत्सव द्वारा वर्ष 2010 की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री का सम्मान। पत्रिका ‘द संडे इंडियन’ द्वारा तैयार हिंदी की 111 लेखिकाओं की सूची में नाम शामिल। परिकल्पना ब्लॉगर दशक सम्मान - 2003-2012 शमशेर जन्मशती काव्य-सम्मान -

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रश्मि प्रभा की पुस्तकें

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पूरीज़िन्दगी,जिसे हम जीते हैं,वह सम्पूर्णता का सारांश है . जीवन-मृत्यु का सिलसिला शाश्वत है,यदिआत्माअमर है तो - अतीत एक सार है हमारे वर्तमान का, भविष्य के सपने का

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43 रचनाएँ

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<p>पूरीज़िन्दगी,जिसे हम जीते हैं,वह सम्पूर्णता का सारांश है . जीवन-मृत्यु का सिलसिला शाश्वत है,यदिआत्माअमर है</p> <p>तो - अतीत एक सार है हमारे वर्तमान का, भविष्य के सपने का <br></p>

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रश्मि प्रभा के लेख

दहशत ही जीने का पर्याय है

17 जुलाई 2017
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किसे धिक्कार रहे ?क्या यह पहला हादसा है ?गन्दी-विकृत फिल्मों को कौन बढ़ावा देता है ?कभी सोचा है इसे बनाना और देखना एक विकृति है विकृति के सिवा कुछ भी नहीं … जब बादल जमा होते हैं तो बारिश होती है जब दर्द जमा होता है तो आँसू और जब विकृति जमा होती है तो हादसे !गौर से देखिये ये सारे मानसिक रोगी हमारे आस-

कौन देगा जवाब ???

21 अप्रैल 2017
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आत्महत्या यानि खुद की हत्या जिसे अंजाम देते हुए कोई भी हिंसक नहीं होता !बड़ी सन्नाटे सी होती है यह हत्या हुम् हुम् सी आवाज़ पंखे को देखती है देखती है अपनी नसों को या माचिस की तीली को … दिमाग -शायद संभवतः नहीं सोच पाता कि हत्या के बाद क्या होगा !यह स्थिति ना ही निर्वाण है ना ही आवेश निरीह भी बिल्कुल नह

अनपढ़ समझदार

20 अप्रैल 2017
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घबराहट और साहस दृढ़ता और शून्यता डबडबाई आँखें और खोने की हँसी … अजीब तालमेल है पर अक्सर किसी ढलान पर मिल जाते हैं !वह मुझे ऐसे ही ढलान पर मिली थी अनपढ़ समझदार अपने वजूद को तलाशती !आतंरिक जड़ें ईश्वरीय होती हैं उसकी भी हैं आँधी तूफ़ान को बेख़ौफ़ झेलना उसकी अनोखी शक्ति है मर्यादापुरुषोत्तम राम की भाँति समंद

परिवर्तन का आह्वान करो .....

7 अप्रैल 2017
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शब्दों की झोपड़ी में तुम्हें देखा था !!!...इतनी बारीकी से तुमने उसे बनाया था कि मुसलाधार बारिश हतप्रभ ...- कोई सुराख नहीं थी निकलने की कमरे में टपकने की !दरवाज़े नहीं थे -पर मजाल थी किसी की कि अन्दर आ जाए एहसासों की हवाएँ भी इजाज़त लिया करती थीं !न तुम सीता थी न उर्मिला न यशोदा न राधा न ध्रुवस्वामिनी

निरर्थक अभिमन्यु बनकर क्या होगा ?

5 अप्रैल 2017
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किसी बात के बीच में ही जब मैं कहती हूँ 'चुप हो जाओ' इसका अर्थ ये नहीं कि तुम गलत हो … इसका अर्थ ये है कि तुम गलत समझे जा रहे हो और कोई ऊँगली उठाए उससे पहले - चुप हो जाओ !प्रश्नों के जाल में उलझकर स्पष्टीकरण में तुम सही नहीं रह पाओगे !लीक से हटकर हर प्रश्न तुम्हें गुमराह करने के लिए ही होते हैं अपनी

सत्य यही है

1 अप्रैल 2017
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मैंने तुमसे कहा -आकाश पाने के ख्वाब देखो सूरज तो मिल ही जायेगा ...'जब कभी किरणें विभक्त हुईंमैंने उनको हथेली में भरकर सूरज बना दिया ... मिलने की अपनी सार्थकता होती है पर क्या नहीं मिला क्यूँ नहीं मिला के हिसाब का फार्मूला बहुत जटिल होता है तुम उसे सुलझाने में न उसे सुलझा सकते हो न पाने की ख़ुशी जी स

तुम्हारे लिए !

30 मार्च 2017
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वह सन्नाटाजो तुम्हारे दिल में नदी की तरह बहता हैउसके पानी से मैं हर दिनअपने एहसासों का घड़ा भरती हूँउस पानी की छुवन सेमिट्टी से एहसास नम होते हैंऔर तेरे चेहरे की सोंधी खुशबूउस घड़े से आती है ...दूर दूर तक खाली तैरतीतुम्हारी पुतलियों कोअक्सर मैंने छुआ है यह सोचकरकि कुछ ना सहीमेरे स्पर्श की लोरी तो तु

उतरो सलीब से

29 मार्च 2017
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समय चूकते तुमने सुनी है समय की हँसी चूकने का दर्द भी भोगा है फिर समय की सलीब पर हर बार क्यूँ रख देते हो खुद को ?तुम अनुभव की खाइयों से गुजर चुके हो जानते हो खाई किसी और ने बनाई वो जो खड़ा था खाई और समतल के बीच डगमगाता हुआ तुम्हें स्पर्श देता हुआ वह गलत नहीं था उसके एक तरफ खाई थी एक तरफ कुआँ फिर भी वह

कुछ वक़्त दो खुद को

27 मार्च 2017
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नियति को सकारात्मक लो या नकारात्मक -मर्ज़ी तुम्हारी !पर कुछ वक़्त दो खुद को तो कारण, उद्देश्य स्पष्ट होंगे …राम वनगमन नहीं होता तो भरत के मन में भी मंथरा ज़हर घोलती सारे रिश्ते दरार में जीते सम्मान की सत्य की कोई गुंजाइश नहीं होती …सीता अपहरण न होता - तो हनुमान नहीं मिलते समुद्र में रास्ता नहीं बनता वि

पात्रों का चयन हमेशा अदभुत

25 मार्च 2017
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वह लड़की साँवली सी बला की खूबसूरत शिवानी की कृष्णकली सी … उसकी हँसी से बचपन की कहानियों जैसे फूल झड़ते आँखों से मोती बरसते 'देवा ओ देवा' .... कहकर वह खाली कमरों में दौड़ लगाया करती थी !हाँ, कमरे की अदृश्य प्रतिध्वनियों से उसकी दोस्ती थी जिन्हें कोई आकार देने से डरती थी छवि मिटने का बेहद डर था उसे नाम

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