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kalpana bhatt के बारे में

कविता एवं लघुकथा लिखती हूँ

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kalpana bhatt की पुस्तकें

kalpana bhatt के लेख

लघुकथा की रचना प्रक्रीया

7 दिसम्बर 2018
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विषय आधारित लघुकथाएँ इनदिनों सोशल मीडिया में एक प्रचलन आम हो चला है, विविध ग्रुपस में विषय दिए जाते हैं, या कोई चित्र जिसपर एक निश्चित समय के भीतर एक लघुकथा लिखने को कहा जाता है, कई ग्रुप तो प्रत्येक माह के पहली तारीख को १० विषय दे देते हैं और एक माह के भीतर १० लघुकथाओं को लिखने के लिए प्रेरित किया

लघुकथा में कालदोष और काल खण्ड में भेद

11 अक्टूबर 2018
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डॉ सतीशराज पुष्करणा जी ने अपने लघुकथा संग्रह 'बदलती हवा के साथ' अयन प्रकाशन , नयी दिल्ली में अपने पाठकों के लिए दो बातें में विस्तार से काल दोष और काल खण्ड की चर्चा की है। उनके लिखित को यहाँ साझा कर रही हूँ, "कुछ लोग लघुकथा में 'कालदोष' की चर्चा अक्सर घटना के माध्यम आये अंतराल को लेकर करते रहे हैं।

Arms and waves

5 जुलाई 2018
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Churn them in your arms As the curd milk Butter, the extract Very healthy to sayThe relations need your strength Your force of churning May change the thoughts But not in excess you do so Tell me, is it that the relationsCome to you to know themselvesMerged in you And you with your full strength Cru

तूफ़ान

4 जुलाई 2018
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तुम्हारी लेहरो से करनी हैं बातेंसुनो न रुक जाओ कुछ देर यूँहीपर नहीं यह सही न होगाबहा ले जायेगी यह दुनिया सारीहो गहरे तुम समुद्र जो है जाने कितना कुछ समाये हुए है अंदर कुछ यहाँ भी दिल में पर तुम सी लहरें नही होती है करो न बातें जैसे मैं करती हूँ किनारे बैठी तुमको देखती हूँअनगिनित प्रश्नों के उत्तर मि

घमण्ड

25 मई 2018
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काली और सुनहरी कलम अपने डिब्बे से बाहर आ चुकी थी। पास की दवात की शीशी रही हुई थी। कलम ने शीशी को देखा और इठला कर बोली,"देखो मैं कितनी सुन्दर हूँ, मेरा आकार,मेरा रंग-रूप... और तुम... तुम्हारा न तो कोई ढंग का आकार है और न ही तुम मेरी जैसी खूबसूरत ही हो!"दवात ने मानो अनसुनी कर दिया था। वह कुछ न बोली।पर

खो गयी हूँ।

30 अप्रैल 2018
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आँखों में खोकर देखाख्यालों में खोकर देखाअम्बर में देखा धरा पर देखासूर्य में देखा चाँद में देखा समन्दर की गहराई न मिली कहीं ओर सिवाय उनकी गहरी आँखों में सो डूब गयी हूँ न अब तुम पुकारो मुझकोकि खो गई हूँ।खो गयी हूँअपने ही ख्यालों मेंउनकी बाँहों में उनके साथ बिताये पलों में क्यों पुकारते हो तुमयूँही अपन

काले बादलों से रौशनी

23 अप्रैल 2018
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सड़क पर बहुत भीड़ थी। बहुत सारी गाड़ियों से चर्र चर्र आवाज़े आ रही थी। लग रहा था कुछ अन्होनी हुई हो। पर क्या! जो हुआ था वो तो चक्रव्यू से घिरा हुआ था। एक लड़की सड़क पर बदहवास सी , फ़टे हुए कपड़ों में , लहूलुहान हालत में थी। उसकी हालत देखकर किसीने कहा ," देखो तो लग रहा है जैसे यह बालात्कार का शिकार हुई है।"

खूबसूरत थी वह

24 दिसम्बर 2017
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खूबसूरत थी वह सर से पैर तक नहाई हुई थी दूध से ,उबटन से देखते रहते थे लोग आने जाने वाले कसकते थे पाने को उसको घूमते रहते थे आसपास यूँही ।खूबसूरत हसीन चेहरा ऊपर से कमसीन जवानी गहरी आँखे ,चाल मतवाली मीठी गोली सी बोली यका यक सूख गयी वहसूखी टहनी सी टूट गयी वहपिघल गयी थी वह प्यार में निगल लिया उसको समन्द

ग़ज़ल (2)

25 सितम्बर 2017
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आओगे जब भी तुम मेरे ख्वाबों में उन लम्हों को रख लूंगी मैं यादों में और नहीं कुछ चाहूँ तुमसे मेरी जां दम टूटे मेरा बस तेरी बाँहों में फूलों जैसा जीवन मेरा गुलशन में यह सच है घिरा हुआ है काँटों में तुमको मैं रूदाद सुनाऊँ क्या अपनी मेरा हर लम्हा बीता है आ

एकांकी जीवन

11 अगस्त 2017
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विमल अपने कमरे में इधर से उधर और उधर से इधर घूम रहा था । गर्मी ने तो जैसे मार ही दिया है मन ही मन बुदबुदाया । इस गर्मी ने तो कहीं का नहीं छोड़ा । कल ही तो ' गीतांजलि ' पढ़कर खत्म करी , सोचा था कल लाइब्रेरी जाकर कोई दूसरी किताब ले आऊंगा , पर ये गर्मी जाने कब का बेर ले रही है । और ऊपर से लाइट को भी अभी

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