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रश्मि शुक्ला की पुस्तकें

RASHMISHUKLAPILIBHIT

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जानते हैं तुम हमे मानते हो अपना, फिर भी कल रात देखा मैंने एक सपना, हम खड़े थे बीच मजधार में, <p st

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RASHMISHUKLAPILIBHIT

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<p style="text-align: left;"><strong>जानते हैं तुम हमे मानते हो अपना, </strong></p><p style="text-align: left;"><strong>फिर भी कल रात देखा मैंने एक सपना, </strong></p><p style="text-align: left;"><strong>हम खड़े थे बीच मजधार में, </strong></p><p st

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RASHMIVIKAS

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बन क्यों नहीं जाता हर कोई गीता कुरान की तरह, क्यों लड़ता है इंसान आज हैवान की तरह, क्यों प्यार में ताकत न रही झगड़ो को मिटाने की, क्यों हर जगह लगने लगी है शमसान की तरह, क्यों सम्मान करना भूल गए हैं सारे, अपनी ही बेटी को फेक देते हैं सामान की तरह,

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बन क्यों नहीं जाता हर कोई गीता कुरान की तरह, क्यों लड़ता है इंसान आज हैवान की तरह, क्यों प्यार में ताकत न रही झगड़ो को मिटाने की, क्यों हर जगह लगने लगी है शमसान की तरह, क्यों सम्मान करना भूल गए हैं सारे, अपनी ही बेटी को फेक देते हैं सामान की तरह,

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रश्मि शुक्ला के लेख

आज मन फिर हुआ है कंवारा प्रिये

13 मई 2017
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आज मन फिर हुआ है कंवारा प्रिये,आज मौसम भी लगता है प्यारा प्रिये,तेरी चाहत में बहका है मन ये मेरा,तेरी यादों में दहका है दिल ये मेरा,तेरी यादों से बचकर कहाँ जाउ मैं,तेरी तस्वीर से दिल को बहलाऊ मैं,आके रंग दो तुम्ही मन हमारा प्रिये,आज मौसम भी

कहीं तो महफूज रखो

8 मई 2017
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कहीं तो महफूज रखो मुझे अपने घराने में,कहीं उम्र न बीत जाए खुद को बचाने में,एक तो वैसे ही बदनाम हैं हम तेरी चाहत में,कहीं पकड़े न जाये तेरे साथ आने जाने में,घोसला बना कर तुमने तो खो दिया हौसला,मैं कैसे बसाऊ आशियाना तेरे बिना ज़माने में,बेदाम ह

जीते तो हम आज भी हैं

4 मई 2017
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जीते तो हम आज भी हैं तेरे बिना मगर कोई कमी सी खलती है,सारे जहाँ की दौलत है फिर भी कोई दुआ इस दिल में पलती है,दूर रह लू तुझसे मगर ये तुझे देखे बिना न सोने की आदत कहाँ बदलती है,सुकून मेरे बिना पाना सीख लिया है तूने मगर मुझसे ये जिंदगी कहां सं

बेवफाई वफ़ा में बदलेगी जरूर

22 अप्रैल 2017
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बेवफाई वफ़ा में बदलेगी जरूर एक बार उन्हें मेरे करीब आने तो दो,वो खुद ही संभालेंगे मुझे एक बार मुझे टूट कर बिखर जाने तो दो,इतनी नाजुक नहीं है हमारे इस अनमोल रिश्ते की डोर जनाब,एक बार उनको मेरे लिए अपनी नजरे झुकाने तो दो,वो ही आएंगे लेने हमेशा

हमारा हिंदुस्तान

21 अप्रैल 2017
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आज देखा माता की चौकी को एक मुस्लिम दे रहा था सहारा,वो अपना मजहब भूल कर सिर्फ पैसे था कमा रहा,फ़िक्र न थी उसको किसी भी लड़ाई दंगे की जनाब,वो तो बड़ी ख़ुशी से माता के कदमो में था फूलो को बिछा रहा,माता की चौकी के पीछे ही चल रहा था एक जनाजा भी,रोक

उनकी आजमाइश

18 अप्रैल 2017
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वक़्त की आजमाइश में वो खुद की नुमाइश कर बैठे,जिसको पाने की हम दिन रात तमन्ना किये हुए थे,वो उसी आफताब को पाने की ख्वाहिश कर बैठे,बहुत समझाया उनको ज़माने की नियत का कायदा,मगर वो उस जहाँ की ही फरमाइश कर बैठे,जिसको कभी न देखने की हम कसम खाये बैठ

तुम्ही बता दो

13 अप्रैल 2017
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कितना और कब तक तुम्हे आजमाऊ तुम्ही बता दो,हमेशा तो झुकाया है सर तुम्हारी ही खिदमत में,क्या खुद भी टूट कर बिखर जाऊ तुम्ही बता दो,इत्मिनान कब होगा तुम्हे मेरी बातो पे मेरे हमदम,क्या सदा के लिए खामोश हो जाऊ तुम्ही बता दो,आफताब सी लगने लगी है म

हमारा अंदाज

9 अप्रैल 2017
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हम कोई बड़ा आसमां नहीं जो तुम हमे छूने को भी मोहताज़ हो,बस खुद को थोड़ा बदल कर देखो,हम कोई तेज़ धूप का झुलझुलाता सावन नहीं जो तुम्हे तपन का एहसास हो,बस मेरे लिए थोड़ा सा मचल कर देखो,हम कोई मुकदमा नहीं किसी गहरे गुनाह का जो तुम्हे हमपे न विश्वास

मेरा गुमान

4 अप्रैल 2017
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छिन गया वो इख़्तियार मुझसे जिसपे कभी हुआ करता था गुमान,गवारा न था मुझे तुझसे दूर रहना पलक झुकने से उठने तक भी,मगर आज चुराते क्यों हो नजरें मुझसे ऐसे जैसे मैं हूं कोई अंजान,बस इतनी सी इक्तला दे दो मुझे की तुम मुस्कुराते हो अब भी क्या,क्योंकि

जीने का सलीका

2 अप्रैल 2017
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ए मेरे मालिक एक ऐसा भी आइना बना दे,जिसमे सूरत के साथ इंसान की सीरत भी दिखा दे,ऐसे तो हर तरफ ही अपनों का मेला है,मगर हक़ीक़त में आज अपनों के बीच ही इंसान अकेला है,ए मेरे मालिक कोई ऐसा भी तरीका बना दे,जो इंसान को जीने का सलीका सिखा दे,हर कोई सी

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