राजीव गुप्ता
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यदि मैं अपने ही शब्दों में कहूँ तो, मैं वोह शीशा हूँ जिसके टुकड़े हुए आये दिन फिर भी हर बार जिसने जुड़ने की हिम्मत की है नहीं कोई और ज़िम्मेदार मेरी इस हालत का खता है मेरी यारों मैंने मोहब्बत की है