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दिनेश गुप्ता 'दिन' के बारे में

मैं दिनेश गुप्ता 'दिन' पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूँ और ३ किताबों का लेखक हूँ : १.) मेरी आँखों में मुहब्बत के मंज़र हैं २.) जो कुछ भी था दरमियाँ ३.) कैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ इसके अलावा मेरी कवितायेँ ३ संयुक्त कविता संग्रहों में प्रकाशित हुई है | १.) बिखरी ओस की बूँदें २.) कदम ढूँढती राहें ३.) शब्दों की चहलकदमी इसके अलावा मेरी कवितायेँ, पुस्तक-समीक्षा, इंटरव्यू और लेख देश के कई प्रमुख अख़बारों और पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं : मेरे बार में और जानने के लिए लोगिन करें :

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दिनेश गुप्ता 'दिन' की पुस्तकें

दिनेश गुप्ता 'दिन' के लेख

आप इस मुल्क में किस उजाले की बात करते हैं

13 मार्च 2018
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आप इस मुल्क में किस उजाले की बात करते हैंयहाँ तो अंधेरे रौशनी से मिल कर के रात करते हैंकोई मजहब नहीं है देश के गद्दारों काआप व्यर्थ में ही जाँत-पाँत करते हैंइस शहर का मौसम भी कुछ अजीब हैबादल भी यहाँ घर देख के बरसात करते हैंबेेजवह ही चिंतित है आप मुल्क के हालात पेयहाँ तो हर रोज सङकों पर जज्बात मरते ह

क्या प्यार करना गुनाह है ? [ समाज की दोहरी मानसिकता और खोखले मापदंड ]

28 मई 2016
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क्या प्यार करना गुनाह है ? [ समाज की दोहरी मानसिकता और खोखले मापदंड ] “क्यूँ ऐसा होता है जब दो परिंदे अपनी उड़ान एक साथ तय करने का फैसला करते हैं तो जमाना उनके पर कतरने पर आमादा हो जाता है ‘ ? क्यूँ ऐसा होता है जब दो जिस्म एक जान होना चाहतें हैं तो जमाना उनकी जान ही लेने पर उतारू हो जाता है ? क्यूँ ऐ

मेरी आँखों में मुहब्बत के मंज़र है

20 फरवरी 2015
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मेरी आँखों में मुहब्बत के जो मंज़र है तुम्हारी ही चाहतों के समंदर है में हर रोज चाहता हूँ कि तुझसे ये कह दूँ मगर लबो तक नहीं आता, जो मेरे दिल के अन्दर है मेरे दिल में तस्वीर हे तेरी, निगाहों में तेरा ही चेहरा है, नशा आँखों में मुहब्बत का, वफ़ा का रंग ये कितना सुनहरा है, दिल की कश्ती कैसे न

दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित इंटरव्यू "एक इंजीनियर का उसकी कविता के लिए जूनून"

1 फरवरी 2015
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http://www.jagran.com/sahitya/interview-an-engineers-passion-for-his-poetry-12000532.html

दीया अंतिम आस का [ एक सिपाही की शहादत के अंतिम क्षण ]

28 जनवरी 2015
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दीया अंतिम आस का, प्याला अंतिम प्यास का वक्त नहीं अब, हास-परिहास-उपहास का कदम बढाकर मंजिल छू लूँ, हाथ उठाकर आसमाँ पहर अंतिम रात का, इंतज़ार प्रभात का बस एक बार उठ जाऊँ, उठकर संभल जाऊँ दोनों हाथ उठाकर, फिर एक बार तिरंगा लहराऊँ दुआ अंतिम रब से, कण अंतिम अहसास का कतरा अंतिम लहू का, क्षण अंतिम

कैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ

28 जनवरी 2015
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शब्द नए चुनकर गीत वही हर बार लिखूँ मैं उन दो आँखों में अपना सारा संसार लिखूँ मैं विरह की वेदना लिखूँ या मिलन की झंकार लिखूँ मैं कैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ मैं…………… उसकी देह का श्रृंगार लिखूँ या अपनी हथेली का अंगार लिखूँ मैं साँसों का थमना लिखूँ या धड़कन की रफ़्तार लिखूँ मैं जिस्

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