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sarita prasad के लेख
राम राज्य
राम राज्यराम राज्यऐ काश अपने देश मेंऐसा साम्राज्य होताजैसे राम राज्य होतासुख शान्ति व्याप्त होतीजनता यहाँ खुश होतीसुशासन सुव्यवस्था सेहर समस्या का अंत होतान बेरोजगारी होतीन ही भ्रष्टाचार होताजब जनता सुखी होतीतो न लूट मार होताआदर्श राज पाट काजनता पर असर होतासबकुछ व्यवस्थित होताविकास सही होतान नारी अप
जीत
जीतखेल कर धुंवाधारजड़ कर चौके छक्केपहुँचा दिया जीत के मुकाम पररह गए सभी हक्के –बक्केचल यूँ ही चला चलबनकर प्रतिस्पर्धी देश काकरता रह सीना चौरातू अपने भारत देश कान पिछड़ेगा कभी भारत हमाराभले ही लड़खड़ा जाए कभीगिरकर संभलना सीखा है इसनेहर बिषम परिस्थितियों मेजीत का परचम लाहड़ाता रहेगामान देश का बढ़ाता रहेगास
होली
त्योहार होली का खुशियों का फुहार लाता हैअगर मिला हो इसमे अपनों का प्यारतभी परिपूर्ण यह त्योहार होता हैरंग लाल हरा पीला और नीलामिलकर इस दिन एक हो जाते हैं वैर भाव छोड़कर जन - जनएकता के डोर में बंध जाते हैंमीठे पकवानों सी मिठासहर दिलों में घुल जाता हैमन से वैरी भाव मिटाकरप्यार के रंग में रंग जाता हैइस
बढ़ता मनोबल
बढ़ता मनोबलबढ़ रहा है हौसला अबदिन-ब-दिन आतंकवादियों काबनाकर हमारी सेना को निशानारुख कर रहे हैं उनके घरों काहो रहा है छलनी सीनाइन हरकतों से जवानों काऐसी हरकत परास्त कर रहाहिम्मत भी हमारे जवानों काकैसे करेंगें यह सामनाइन आतंकी गतिविधियों काकैसे डटेंगे यह सीमा परसाहस और बुलंदी के संगगिरि हुई इरादों से अप
हमारी नयी पुस्तक – “सफर के हमसफर”
पद्मावती
या देशहित न होया एक संगठन हित न होगर भारतीय संस्कृति के विरुद्ध होतो उसका तिरस्कार करना ही बेहतरगर विरोधाभास के विपरीत होसामंजस्य बिठा रास्ता निकालना ही बेहतरदेश में न अराजकता फैलेआपस में न तनाव होशांति व्यवस्था बाधित न होऐसी व्यवस्था करना ही बेहतरजिससे हमारे संस्कृति का मान रहेएक संगठन का सम्मान रह
गणतंत्र दिवस
आज धरती पर छाई हरियालीआज अम्बर भी हुआ केसरियासबके दिलों में श्वेत बसा है दिवस सुहाना है आयाआज गणतंत्र दिवस है आयादेशभक्ति की हवा चली हैसबका मन है रंगायाआज गणतंत्र दिवस है आयाभारत माँ आज चहक उठी हैश्वेत केसरिया हरित रंगो मेंरंगा देख अपने सपूतों कोमाँ का मन है हर्षायाआज गणतंत्र दिवस है आयाआओ राष्ट्र
गणतंत्र दिवस
http://saritpravahkriti.blogspot.in/2018/01/blog-post_25.html?m=1
बर्फीली सर्दी
बर्फीली सर्दीकहीं बर्फ की चादर बिछ गईठंडी - ठंडी हवा चलीकहीं बर्फ की चादर बिछ गईठंडी - ठंडी हवा चलीअस्त - व्यस्त हुआ जनजीवनसर्दी गलन की कहर बढ़ीमजा आ गया शैलानियों कोमौज - मस्ती की दौर चलीशहर - शहर से भ्रमण को आएसफ़ेद चादर से ढकी धराबच्चों ने खेले गोले बनाकरकूद भाग हुड़दंग मचाकरमनोरम कर दिया वन उपवनकि
न्याय व्यवस्था
न्याय व्यवस्था ये कैसी न्याय व्यवस्था हैजहाँ दुराचारी बेलगाम घूम रहे हैंदुष्प्रवृतियों की बेइन्तहाँ हो गई हैअसुरक्षा जहाँ घर कर गई हैजहाँ आतताई दिन दहाड़ेगोली बारी कर रहे हैंये कैसी न्याय व्यवस्था हैमनचले खुलेआम मनमानी कर रहे हैंन कोई रोक है न कोई टोक है ...जहाँ हर नारी असुरक्षित हैजहाँ प्रत्येक स्त्