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रणबीर सिंह कुशवाह के बारे में

चेयरमैन एंड मैनेजिंग डायरेक्टर इन्फोटेक स्टैंडर्ड्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड

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रणबीर सिंह कुशवाह की पुस्तकें

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रणबीर सिंह कुशवाह के लेख

सफर

9 सितम्बर 2016
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चल पड़ सफर पे, कोई तेरे साथ हो न हो हंस दे तू खुल के, कोई हसीं बात हो न होख्वाबों में हर रोज, मिलते रहना उससे तुम क्या जाने हकीकत में, मुलाकात हो न होजिससे भी मिलो खुल के, हँस के मिलो तुम न जाने कल को फिर यही, जज्बात हो न हो चंद रोज ''राज'' सुकून से दिन गुजार लो रौ

'' तुम्हारी याद ''

6 जुलाई 2016
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बहुत याद आती हो तुम गए पहर जब धूप पेड़ों की छत से डालियों की खिड़कियों तक उतरती है वो फर्श पर लिख जाती है कई-कई तरीकों से नाम तुम्हारा और एक दर्द सी एक याद सी बहुत सताती हो तुम शाम जब बादलों से आसमान घिरा होता है पंछी घर लौट रहे होते है मेरे ख्याल भी बिना तुम से मिले अनखुले खत से लौट आते हैं !!!

" चाँद "

10 अक्टूबर 2015
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चारो तरफ़ अँधेरा, सब कहते अँधेरी रात हैबात है कुछ और मगर, सब कहते यही बात है "राज" की एक बात तुम्हे, मै बतलाने आया हूँ चाँद से बेखबर उसकी, चांदनी से मिल आया हूँ लिपट गई थी चांदनी मुझसे, भूल कर बात सबइसीलिए तो छाई थी, देखो अँधेरी रात तबनासमझ चांदनी की तुम्हे, दास्तान सुनाने आया हूँ चाँद से बेखबर उसकी

" ज़िन्दगी "

10 अक्टूबर 2015
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हर बात कुछ याद दिलाती है हर याद कुछ मुस्कान लाती है कौन नहीं चाहता खुशियों को,पास रखना अपने पर कहाँ वो हर पल साथ रह पाती है समय का आभाव भी बहुत है ज़िन्दगी में भूल गए अच्छे पलों को पैसे की बंदगी में पर साथ तो अतीत का भी चाहिए बहुत ही कम समय और शब्द कम है, ज़िन्दगी में !!!

!! पापा !!

21 सितम्बर 2015
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पापा ! आप समझ रहें है ना ???पापा ! जब मैं छोटा था,आप उतनी बाते नहीं करते थे,जितनी “माँ” करती थी।पापा !कभी-कभी जब जिद्द करता था,रोता था, चुप नहीं कराते थे,“माँ” दौड़ी चली आती थी।पापा !आप हर छोटी-बड़ी बात पर,लम्बा भाषण दिया करते थेऔर “माँ”गोद में उठाकर चूम लिया करती थी।पापा !मुझे लगता था,“माँ” ने म

" हिन्दी "

18 सितम्बर 2015
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तुलसी, कबीर, मीरा ने इसमें ही लिखा है,कवि सूर के सागर की गागर है ये हिन्दी।वागेश्वरी का माथे पर वरदहस्त है,निश्चय ही वंदनीय मां-सम है ये हिंदी।अंग्रेजी से भी इसका कोई बैर नहीं है,उसको भी अपनेपन से लुभाती है ये हिन्दी।यूं तो देश में कई भाषाएं और हैं, पर राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी।

" प्यारी माँ "

7 सितम्बर 2015
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प्यारी माँ मुझ को तुम्हारी दुआ चाहिए तुम्हारे आंचल की ठंडी-ठंडी हवा चाहिए प्यारी माँ मुझ को तुम्हारी दुआ चाहिए लोरी गा-गा के मुझ को सुलाती हो तुम मुस्कुरा कर सवेरे- सवेरे जगाती हो तुम मुझ को इस के सिवाय और क्या चाहिए प्यारी माँ मुझ को तुम्हारी दुआ चाहिए तुम्हारे आंचल की ठंडी-ठंडी हवा चाहिए तुम्हारी

" मेरी माँ "

22 अगस्त 2015
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हंसती होगी , रोती होगी , हंसती होगी माँ रात को घर के किस कमरे में जलती होगी माँ बाप का मरना मेरे लिए जब इतना भारी है उसके बिना तो रोज ही जीती मरती होगी माँ पानी का नलका खोला तो आंसू बह निकलेगहरे कुंएं से पानी कैसे भरती होगी माँ मेरी खातिर अब भी चाँद बनाती होगी नाजब भी तवे पर घर की रोटी पकाती होगी मा

" वक़्त "

19 अगस्त 2015
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वक़्त -ए -सफर करीब है, बिस्तर समेट लूँ बिखरा हुआ हयात का ये दफ्तर समेट लूँ फिर जाने हम मिलें ना मिलें ज़रा रुकें मै दिल के आईने में ये मंज़र समेट लूं गैरों ने जो सुलूक किए उनका क्या गिलाफेंकें हैं, दोस्तों ने जो "पत्थर" समेट लूंकल जाने कैसे होंगे, कहाँ होंगे, घर के लोग आँखों में एक बार, भरा - पूरा घर

" जिंदगी एक सबक "

23 जुलाई 2015
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सुन्दर कविता जिसके अर्थ काफी गहरे हैं मैंने हर रोज जमाने को रंग बदलते देखा है, उम्र के साथ जिंदगी को ढंग बदलते देखा है !! वो जो चलते थे तो शेर के चलने का होता था गुमान उनको भी पाँव उठाने के लिए सहारे को तरसते देखा है !! जिनकी नजरों की चमक देख असीम साहस वाले भी सहम जाते थे लोग, उन्ह

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