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आयेशा मेहता के लेख

मेरी डायरी

25 जून 2019
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क्या लिखा होता है मेरी डायरी में यही कुछ नज्में कुछ शायरी कुछ गजलें और कुछ आधी अधूरी सी कविताएँ और इन्ही कविताओं में कुछ रोता बिलखता ,कुछ टुटा फूटा कुछ ख्यालों में खोया ,और कुछ खुद में ही बातें करता हुआ शब्द कुछ पन्नों पर स्याही पि

तस्वीर

21 जून 2019
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एक तस्वीर है मेरी आँखों में , मैं नहीं जानती यह तस्वीर किसका है ,शायद ये किसी जनम का एक ख्याली सच है ,जो हमेशा मेरी तस्वुर में बहता है ,मैं खुद में रहूँ या न रहूँ ,मगर यह तस्वीर मुझमें हमेशा रहता है ,यह तस्वीर भी बेरंग है ,बिलकुल म

ये आसमान मेरा गला सुख रहा है

20 जून 2019
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तप-तप कर यह जल रही है , देखो तेरी धरा मर रही है ,ऐ आसमा मेरा गला सुख रहा है ,तेरी बेरुखी से मेरा दिल दुःख रहा है ,मैं प्यासी हूँ , जग प्यासा है ,देखो इस धरा का कण कण प्यासा है ,विकल पंछी चोंच खोलकर तुम्हारी तरफ देख रहा है ,है तुम्

रोज आते थे मेरे छत पर सैकड़ों कबूतर

6 मई 2019
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रोज आते थे मेरे छत पर सैकड़ों कबूतर , आस-पास के ही किसी छत से उड़कर ,आल्हा -ताला की कसम मेरे इरादे में कोई बेईमानी नहीं थी ,मैं कोई शिकारी नहीं एक जमीन्दार की लड़की थी ,एक काल से दूसरा काल बिता ,कई अनेक वर्षों तक सबको भरपेट दाना मिला ,ब

कितनी बाबरी सी लड़की है वो

3 मई 2019
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कितनी बाबली सी लड़की है वो , उसके दरवज्जे का चिराग हवा बुझा कर चली जाती है ,और वह जुगनू को सीसे में कैद कर देती है ,फूलों का रंग तितलियाँ चुरा ले जाती है ,और वह भँवरे से लड़ बैठती है ,आखिर कौन उसको समझाए

जन्मदिन शेर

2 मई 2019
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एक गुजीदा गुलाब भेजूँ आपको या पूरा गुलिस्ता ही भेंट कर दूँ आपको , शेर लिखूँ आपके लिए या ग़ज़ल में ही शामिल कर दूँ आपको ,रवि हैं आप , हमेशा आफ़ताब की तरह चमकते रहे जहान में ,अँधेरे वक्त में भी पूनम का साथ हो, मेरे खुदा से यही दुआ है आपको ा

सांसों का बोझ

30 अप्रैल 2019
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वक़्त जितना सीखा रही है ,उतनी तो मेरी साँसें भी नहीं है देह का अंग-अंग टुटा पड़ा है ,रूह फिर भी जिस्म में समाया हुआ है ,मेरे साँसों पर अगर मेरी मर्जी होती ,तो कबका मैं इसका गला घोंट देती ,मगर जीने की रस्म है जो मुझे निभाना पर रहा है ,मेरा मीत जो है गीत

पर्वत और रेत

28 अप्रैल 2019
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एक भीड़ चल रही थी पर्वत की ओर , अपना काफिला सजा मंजिल की ओर ,ये बदकिस्मती थी मेरी या खुशनसीबी ,उसी भीड़ में मेरी काया भी चल रही थी ,कितना ऊँचा ललाट था उस पर्वत का ,एक कम्पन सा उठा मेरे फूलते साँस में ,पाँव थककर वहीं ठिठक सा गया ,तभ

बालिका यौन शोषण

26 अप्रैल 2019
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वो कौन है जो हम में इतनी आक्रोश भरता है ? हमारी मासूमियत को नोच कर खुद को मर्द कहता है ??? ये महज कुछ शब्दों की पंक्तियाँ नहीं है ा इन पंक्तिओं में हमारे देश की लाखों लड़किओं का दर्द छिपा हुआ है जो बचपन में कभी न

समंदर के उस पार

31 मार्च 2019
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ये वही जगह है जहाँ पहली दफा मैं उससे मिली थी , हर शाम की तरह उस शाम भी मैं अपनी तन्हाई यहाँ काटने आई थी ,मुझे समंदर से बातें करने की आदत थी ,और मैं अपनी हर एक बात लहरों को बताया करती थी ,अचानक मुझे ऐसा लगा जैसे समंदर के उस पा

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