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प्राणेन्द्र नाथ मिश्रा के बारे में

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प्राणेन्द्र नाथ मिश्रा की पुस्तकें

प्राणेन्द्र नाथ मिश्रा के लेख

वर्ष की अंतिम बेला

31 दिसम्बर 2019
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अंतिम संध्या, अंतिम बेला,अंतिम किरणों का अन्त्य गीत,अंतिम पल का यह अंतर्मनअंतिम पुकार देता, हे मीत !अंतिम धारा, अंतिम प्रवाहअंतिम कलरव, अंतिम है कूकअंतिम बंधन में बाँध रखोधडकन की अंतिम ह्रदय-हूक.अंतिम है दृश्य-पटल, यह नाट्यअंतिम दर्शक, अंतिम समूह,अंतिम का अंत न कर देनाअंकित कर लो यह छवि दुरूह.अंतिम

सुतहीन करो इस धरती को

30 नवम्बर 2019
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सुतहीन करो इस धरती को.. दग्ध देह, धर्षित शरीर,जलता चमड़ा, वह मूक चीख,मानव कितना कायर है रे !पुरुषत्व, नपुंसक का प्रतीक..जो पुरुष नृशंस हुआ कामीअब शब्द नहीं उसका निदान,अब तर्क-वितर्क नहीं कोईहे भीड़ ! हरो सत्वर वो प्राण...अब नष्ट करो वह पापात्माजो मानव को ना पहचाने,अधिका

पानी

17 नवम्बर 2019
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पानी:- नमी ज़िंदगी में नहीं अब रही है,बहुत खुश्क, बेदम, हवा बह रही है,“अगर प्यार करता है बच्चों से अपने बचा ले तू पानी”, फिजा कह रही है..नहीं काम आयेगा रुपया या पैसा,गला कर इन्हें तू न पी पायेगा,बदन में हुयी गर कमी पानी की तोऐ मरदूद ! जीवन न जी पायेगा..न बर्बाद कर पानी की बूंद कोई,न नदियों को बदहाल

हिन्दी दिवस के अवसर पर

14 सितम्बर 2019
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हिंदी दिवस के अवसर पर :-"ह" से "ह्रदय" ह्रदय से "हिंदी", हिंदी दिल में रखता हूँ,"नुक्ता"लेता हूँ "उर्दू" से, हिन्दी उर्दू कहता हूँ..शब्द हो अंग्रेज़ी या अरबी, या कि फारसी, तुर्की हो,वाक्य बना कर हिन्दी में, हिन्दी धारा में बहता हूँ..हिंदी-ह्रदय विशाल बहुत है, हर भाषा के शब्द समेटे,शुरू कहीं से करूं

निगाहें ढूँढ़ लेती हैं

13 अगस्त 2019
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--निगाहें ढूँढ़ लेती हैं हमारे दिल की बदनीयत , निगाहें ढूढ़ लेती हैं,जो ढूँढों रूह को मन से, निगाहें ढूढ़ लेती हैं.भरी महफ़िल हो कितनी भी, हों कितने भी हँसी चेहरेमगर बेबाक शम्मां को , निगाहें ढूँढ़ लेती हैं. ..कोई भी उम्र ढक सकती नहीं, माजी की तस्वीरेंतहों में झुर्रियों के भी, निगाहें ढूँढ़ लेती हैं

शहादत की रूह

5 अगस्त 2019
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सुबह की ग़ज़ल --शाम के नाम आज़ाद होने के बाद से भारत के शहीदों की शहादत सबसे अधिक कश्मीर से जुड़े इलाकों में हुयी है. उन शहीदों की रूहें आज तक घूम घूम कर पूरे भारत के लोगों से गुहार कर रही हैं कि तिरंगे का केसरिया रंग कश्मीर के केसर से मिलाओ. शहीदों की यादें सब को छू कर गुज़रती हैं...बड़ी सुनसान राहें हैं

तुम्हारी आँखें--

30 जुलाई 2019
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तुम्हारी आँखें-- (यदि दान करो तो !)किसी ने देखा माधुर्य तुम्हारी आँखों में, कोई बोला झरनों का स्रोत तुम्हारी आँखों में..कोई अपलक निहारता रहा अनंत आकाशतुम्हारी आँखों में,कोई खोजता रहा सम्पूर्ण प्रकाश तुम्हारी आँखों में...कोई बिसरा गया तुम्हारी आँखों में कोई भरमा गया तुम्हारी आँखों में...किसी के लिए

कारगिल शहीद के माँ कीअंतर्वेदना

26 जुलाई 2019
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कारगिल शहीद के माँ की अंतर्वेदना :-यह कविता एक शहीद के माँ का, टीवी में साक्षात्कार देख कर १९९९ में लिखा था ...२० वर्ष बाद आप के साथ साझा कर रहा हूँ:हुआ होगा धमाका,निकली होंगी चिनगारियाँ बर्फ की चट्टानों पर फिसले होंगे पैर बिंधा होगा शरीर गोलियों की बौछार से ...अभी भ

एक ग़ज़ल --बेवफाई

24 जुलाई 2019
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एक ग़ज़ल: बेवफाई मैंने भी इक गुनाह, यहाँ आज कर लिया,बाहों में भर के उनको, तुम्हे याद कर लिया..फिर से हुयी है दस्तक, कहीं पर ख़याल की,जाकर के दिल ने दूर से, फिर दर्द भर लिया..माजी की खाहिशें हैं, ये भूलती नहीं,गुज़रा हुआ था वक़्त, गले फिर से मिल लिया...शायद खड़े थे तुम वहां

दुर्गा ! तेरे रूप अनेक. .

18 जुलाई 2019
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दुर्गा! तेरे रूप अनेक - माँ दुर्गा, भिक्षा लेकर केलौटी माटी के प्रांगण में,आधे से ज़्यादा शेष हुएचावल उसके, ऋण-शोधन में…बाक़ी जो बचे हुए उससेकैसे पूरा होगा, गणेश !कार्तिकेय भूख से बिलख रहागांजा पीकर बैठे महेश…इतने अभाव की सीमा मेंलक्ष्मी, सरस्वती भी पलती है,दुर्गा आँसू

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