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अमित की पुस्तकें

Amitnishchchal

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अमित के लेख

मुझमें, मौन समाहित है

12 अगस्त 2021
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मुझमें, मौन समाहित है✒️जब खुशियों की बारिश होगीनृत्य करेंगे सारेलेकिन,शब्द मिलेंगे तब गाऊँगामुझमें, मौन समाहित है।अंतस् की आवाज़ एक हैएक गगन, धरती का आँगन।एक ईश निर्दिष्ट सभी मेंएक आत्मबल का अंशांकन।।बोध जागरण होगा जिस दिनबुद्ध बनेंगे सारेलेकिन,चक्षु खुलेंगे तब आऊँगामुझमें, तिमिर समाहित है।वंद्य चरण

जीवन की अबुझ पहेली

15 दिसम्बर 2020
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जीवन की अबुझ पहेली✒️जीवन की अबुझ पहेलीहल करने में खोया हूँ,प्रतिक्षण शत-सहस जनम कीपीड़ा ख़ुद ही बोया हूँ।हर साँस व्यथा की गाथाधूमिल स्वप्नों की थाती,अपने ही सुख की शूलीअंतर में धँसती जाती।बोझिल जीवन की रातेंदिन की निर्मम सी पीड़ा,निष्ठुर विकराल वेदनासंसृति परचम की बीड़ा।संधान किये पुष्पों केमैं तुमको पु

लहरों जैसे बह जाना

20 नवम्बर 2019
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लहरों जैसे बह जाना✒️मुझको भी सिखला दो सरिता, लहरों जैसे बह जानाबहते - बहते अनुरागरहित, रत्नाकर में रह जाना।बड़े पराये लगते हैंस्पर्श अँधेरी रातों मेंघुटनयुक्त आभासित होलहराती सी बातों मेंजब तरंग की बलखातीशोभित, शील उमंगों कोक्रूर किनारे छूते हैंकोमल, श्वेत तमंगों कोबंद करो अब और दिखावे, तटबंधों का ढह

लहरों जैसे बह जाना

20 नवम्बर 2019
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लहरों जैसे बह जाना ✒️मुझको भी सिखला दो सरिता, लहरों जैसे बह जानाबहते - बहते अनुरागरहित, रत्नाकर में रह जाना।बड़े पराये लगते हैंस्पर्श अँधेरी रातों मेंघुटनयुक्त आभासित होलहराती सी बातों मेंजब तरंग की बलखातीशोभित, शील उमंगों कोक्रूर किनारे छूते हैंकोमल, श्वेत तमंगों कोबंद करो अब और दिखावे, तटबं

अंधकार में रहने का मैं अभ्यासी हूँ

29 अक्टूबर 2019
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अंधकार में रहने का मैं अभ्यासी हूँ✒️अंधकार में रहने का मैं अभ्यासी हूँमुझे उजालों से भी नफ़रत कभी नहीं थी,सबकी चाह दिखावे तक ही सिमट चुकी थीमुझे जलाने वालों की भी कमी नहीं थी।एक प्रहर में जलकर कांति बिखेरी मैंनेऔर दूसरे वक्त तृषित हो मुरझाया था,अंतकाल में देहतुल्य जल गयी वर्तिकालौ को अपने अंतस में

चाँद की दीवानगी

6 अक्टूबर 2019
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चाँद की दीवानगी-१✒️छिप गई है चाँदनी भी, रात के आगोश में यूँओ सितारों! भान है क्या, चाँद की दीवानगी का?मस्त अपनी ही लगन में, मस्तियों का वह मुसाफ़िरओस की संदिग्ध चादर, ओढ़कर पथ पर बढ़ा है।बादलों के गुप्तचर हैं, राह में जालें बिछाए,चाँद, टेढ़ा है ज़रा सा, और थोड़ा नकचढ़ा है।है रचा इतिहास जिसने, द्वैध संबंधों

कविताओं की नक्काशी से

24 जुलाई 2019
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कविताओं की नक्काशी से✒️कर बैठा प्रेम दुबारा मैं, कविताओं की नक्काशी सेचिड़ियों की आहट में लिपटी, फूलों की मधुर उबासी से।संयम से बात बनी किसकी,किसकी नीयत स्वच्छंद हुई?दुनियादारी में डूब मराचर्चा उसकी भी चंद हुई।कौतुक दिखलाने आया है, बस एक मदारी काशी सेचिड़ियों की आहट में लिपटी, फूलों की मधुर उबासी से।ज

कंदराओं में पनपती सभ्यताओं

24 जून 2019
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कंदराओं में पनपती सभ्यताओं✒️हैं सुखी संपन्न जग में जीवगण, फिर काव्य की संवेदनाएँ कौन हैं?कंदराओं में पनपती सभ्यताओं, क्या तुम्हारी भावनायें मौन हैं?आयु पूरी हो चुकी है आदमी की,साँस, या अब भी ज़रा बाकी रही है?मर चुकी इंसानियत का ढेर है यह,या दलीलें बाँचनी बाकी रही हैं?हैं मगन इस सृष्टि के वासी सभी गर,

लेखनी! उत्सर्ग कर अब

25 मई 2019
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लेखनी! उत्सर्ग कर अब✒️लेखनी! उत्सर्ग कर अब, शांति को कब तक धरेगी?जब अघी भी वंद्य होगा, हाथ को मलती फिरेगी।साथ है इंसान का गर, हैं समर्पित वंदनायें;और कलुषित के हनन को, स्वागतम, अभ्यर्थनायें।लेखनी! संग्राम कर अब, यूँ भला कब तक गलेगी?हों निरंकुश मूढ़ सारे, जब उनींदी साधन

हश्र

17 मार्च 2019
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हश्र✒️ओस के नन्हें कणों ने व्यंग्य साधा पत्तियों पर,हम जगत को चुटकियों में गर्द बनकर जीत लेंगे;तुम सँभालो कीच में रोपे हुवे जड़ के किनारे,हम युगों तक धुंध बनकर अंधता की भीख देंगे।रात भर छाये रहे मद में भरे जल बिंदु सारे,गर्व करते रात बीती आँख में उन्माद प्यारे।और रजनी को सुहाती थी नहीं कोई कहानी,ज्ञा

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