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निशेश अशोक वर्धनheshdubey1989 निशेषदुबिय१९८९ के बारे में

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निशेश अशोक वर्धनheshdubey1989 निशेषदुबिय१९८९ की पुस्तकें

निशेश अशोक वर्धनheshdubey1989 निशेषदुबिय१९८९ के लेख

शांति

18 नवम्बर 2022
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जगती के बहु कष्ट कराल। प्रखर अग्नि सम ये विकराल। चहुँदिशि छाया है आतंक। वसुधा का यह घोर कलंक। नहीं प्रेम की शीतल छाँव। दहक रहा कटुता का भाव। बिलख रहा है यह संसार। छलक रही वेदना अपार। छाया है तमिस्र घन

जागरण

9 जून 2022
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मुझको प्रिय था उज्ज्वल प्रकाश, मुझको भाती थी चकाचौंध। भय भरती थीं नदियाँ गहरी, जग कहता था नाविक अबोध। दुर्गम अरण्य में पंथ खोज, जाना उस पार नहीं सीखा। चट्टानों की दीवार तोड़, जाना उस पार नही

वसंत

31 जनवरी 2022
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खिले हैं फूल उपवन में,सुखद ऋतुराज आया है। बजी है रागिनी मन में,नया उन्माद छाया है। घिरी चहुँओर हरियाली,छटा अद्भुत निराली है। विहँसती है सुखद सुषमा,लदी फूलों से डाली है। खड़ी है खेत में सरसों,घुला सौर

जीवन चलता ही रहता है

25 दिसम्बर 2021
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<p>जीवन चलता ही रहता है</p> <p>-----------------------------------------------</p> <p>यह काल निरन्तर

सुखसिंधु

21 जुलाई 2020
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चाहे लुट जाए धन-धरती,मिट जाए विभव- स्वप्न सारा।चहुँओर जलें अंगार तप्त,या बहे शीत जल की धारा।जग प्रेम करे या घृणा करे,मन दोनों में सुख पाता है।सुखसिंधु यहाँ लहराता है।भवसागर में नित उठती हैं,द्वंद्वों की बहु भ्रामक लहरें।कुछ हर्षित करती हैं मन को,कुछ घाव बनाती हैं गहरे।ये हैं क्षणभंगुर- नाशवान,इनसे झ

साहस और धीरता

18 दिसम्बर 2019
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(साहस और धीरता)16,16 सममात्रिकजो अटल खंभ-सा खड़ा रहे,विपदा के झंझावातों में।मन में साहस की ज्योति लिए,जगता संकट की रातों में।वो ही पाता है लक्ष्य सदा,जीवन को सफल बनाता है।उसने जितने सिद्धांत दिए,जग उसको ही अपनाता है।गिरि के मस्तक पर गिरती ह

सबलोग धरें हिय

30 अगस्त 2018
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सबलोग धरें हिय प्रेमसुधा, सबके हित में सब कर्म करें। सबकी मधुबानि सुहावनि हो, सबके उर से मधुभाव झरें। सबलोग प्रसन्न रहें जग में, बहु कष्ट सहें पर धीर धरें। नित नेह बढ़े हरि के पग में, प्रभु मंगलकोष अपार भरें।

सबलोग धरें हिय

30 अगस्त 2018
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