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डॉ बृजेन्द्र कुमार अग्निहोत्री के बारे में

,जन्म: 02 जनवरी 1984 को फतेहपुर (उ.प्र.) के रेंय गांव में। पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग (मेघालय) से हिंदी साहित्य में पीएच.डी. उपाधि।हिन्दी साहित्य, अर्थशास्त्र, ग्रामीण विकास व मानवाधिकार में स्नातकोत्तर उपाधियां। विधि में स्नातक उपाधि। मार्गदर्शन, आपदा-प्रबंधन, पारिवारिक शिक्षा व एचआईवी/एड्स तथा गाँधी अध्ययन जैसे विषयों में डिप्लोमा/प्रमाणपत्र कार्यक्रम। कहानी, कविता, समसामयिक लेखन मात्र 14 वर्ष की अल्पायु से। राष्ट्रीय स्तर के शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन-प्रकाशन। आलोचनात्मक कृति 'प्रयाग की साहित्यिक पत्रकारिता' और तीन काव्य संग्रह ‘यादें’, ‘पूजाग्नि’ और ‘ख़्वाहिशें’ प्रकाशित। दिसंबर, 2008 से हिंदी त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका ‘मधुराक्षर’ का संपादन। विभिन्न साहित्यिक, सामाजिक संस्थाओं से सम्बद्धता। राष्ट्रीय व प्रादेशिक स्तर की एक दर्जन से अधिक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानोपाधियां। लंबे समय तक केंद्रीय हिंदी संस्थान, क्षेत्रीय केंद्र : शिलांग के साथ संबद्ध होकर पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु ‘नवीकरण कार्यक्रमों’ का संयोजन एवं अध्यापन। संप्रति: हिंदी विभाग, सिक्किम विश्वविद्यालय (केंद्रीय विश्वविद्यालय), गंगटोक, सिक्किम में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में अतिथि अध्यापन।,जन्म: 02 जनवरी 1984 को फतेहपुर (उ.प्र.) के रेंय गांव में। पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग (मेघालय) से हिंदी साहित्य में पीएच.डी. उपाधि।हिन्दी साहित्य, अर्थशास्त्र, ग्रामीण विकास व मानवाधिकार में स्नातकोत्तर उपाधियां। विधि में स्नातक उपाधि। मार्गदर्शन, आपदा-प्रबंधन, पारिवारिक शिक्षा व एचआईवी/एड्स तथा गाँधी अध्ययन जैसे विषयों में डिप्लोमा/प्रमाणपत्र कार्यक्रम। कहानी, कविता, समसामयिक लेखन मात्र 14 वर्ष की अल्पायु से। राष्ट्रीय स्तर के शताधिक पत्र-पत्रि

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डॉ बृजेन्द्र कुमार अग्निहोत्री की पुस्तकें

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डॉ बृजेन्द्र कुमार अग्निहोत्री के लेख

नूतन बनाम पुरातन

10 सितम्बर 2018
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नूतन को पुरातन से हमेशा शिकायत रही है, आज भी है। इसके बावजूद कि पुरातन से ही नूतन का उद्भव हुआ है। मजेदार बात यह है कि नूतन को यह बात पता है, इसके बावजूद भी..। बात अगर केवल शिकायत तक सीमित रहती तो भी ठीक था, बात अब दोषारोपण तक पहुंच चुकी है। दोषारोपण इसलिए क्योंक

अपनी परेशानी

10 सितम्बर 2018
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जब था छोटागाँव में, घर मेंसबका प्यारा, सबका दुलाराथोडा सा कष्ट मिलने परमाँ के कंधे पररखकर अपना सिरसरहोकर दुनिया से बेखबरबहा देता, अपने सारे अश्कमाँ के हाथ की थपकियाँदेती सांत्वनासाहस व झपकियाँसमय ने, परिस्थितियों नेउम्र से पहले बड़ा कर दियाअब जब भीजरूरत महसूस करतासांत्वना, आश्वासन कीमाँ के पास जाता

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