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Rathod mukesh की पुस्तकें

Rathod mukesh के लेख

भूमिका

3 मार्च 2020
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फूलों की बाग में,सुरों की राग में।शिक्षा की किताब में,खुशबू की गुलाब में।जो है भूमिका,वही तेरी मेरे जीवन में है!!मूर्ति की मंदिर में,आस्था की प्रार्थना में।विश्वास की मन में,आत्मा की तन में।जो है भूमिका,वही तेरी मेरे जीवन में है!!सूरज की दिन में,चंदा की रैन में।तारों की गगन में,मेघों की बरसात में।जो

सफलता

10 फरवरी 2020
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सफलता..उपहार है श्रम का..स्वेद के कण-कण का..सफलता..परमानंद है..मान है सम्मान है..सफलता..श्रेय है लगन का..वटवृक्ष सी शीतल छाँव है..परिमाप है श्रेष्ठता का..सफलता..बल है संघर्ष का..मार्ग है उत्कर्ष का...है क्षण यही हर्ष का..स्वरचित :- राठौड़ मुकेश

सफलता

10 फरवरी 2020
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सफलता..उपहार है श्रम का..स्वेद के कण-कण का..सफलता..परमानंद है..मान है सम्मान है..सफलता..श्रेय है लगन का..वटवृक्ष सी शीतल छाँव है..परिमाप है श्रेष्ठता का..सफलता..बल है संघर्ष का..मार्ग है उत्कर्ष का...है क्षण यही हर्ष का..स्वरचित :- राठौड़ मुकेश

अंतिम दिन

25 जनवरी 2020
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सफर का पयाम होगा,अंतिम वो विराम होगा।श्वांस भी होगी मद्धिम,जब महाप्रयाण होगा।वो दिन आखिरी होगा.....!!!लिखती कलम शब्द जो,वो पृष्ठ भी अंतिम होगा।भाव,कल्पना मर्म सब,सदृश्य जब प्रतीत होगा।वो दिन आखिरी होगा.....!!!देह थामेगी निष्क्रियता,होगी धड़कन निस्तारित।दृश्य सब होंगे गमगीन,द्रुतयान होगा संचालित।वो दि

नव प्रभात

19 जनवरी 2020
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भौर के दामन में...शबनम के मोती झरते..नवप्रभाती रश्मिक तंतु..दूबकण तक ऊर्जित करते...भरते नवल एहसास..प्रकृति के कण-कण में...शुभ्र वर्ण धारित ये...भरते उमंग अंतर्मन में..लहलहाती धरा ये..पहन हरित वसन को...पर्वत,कानन,खग,विहग..संजोए जैसे सजन को..सकुचाती,इठलाती..प्रकृति निज सौंदर्य पर...जैसे कोयल इठलाती..न

रात अलबेली

10 जनवरी 2020
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स्वप्न सहेली,ये रात अलबेली।सँग तारों के,करती अठखेली।शबनम जैसे,मोती बरसाती।भोर होते जो,लगते पहेली।स्याह कभी,कभी चाँदनी।खिले गगन ताल,बनकर कुमुदिनी।नवयौवना सी,नटखट चंचल।मृगनयनी सी,सहज सुंदर।हरती क्लांत हर तन के,करती शांत ज्वार मन के।ये रात अलबेली,स्वप्न सहेली।स्वरचित :- राठौड़ मुकेश

जीवन यात्रा

8 जनवरी 2020
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ललचाती,सकुचाती,सीखाती,भरमाती,इठलाती,अंततः,सुस्ताती चीर निंद्रा!!जीवन यात्रा।अंदाज अलग,भागमभाग,चैन औ सुकूं की,अंततः,नींद उड़ाती!!जीवन यात्रा।अनुभव बांटे,भविष्य को बांचती,वर्तमान भुलाती,अंततः,मन भटकाती!!जीवन यात्रा।कहकहे लगाती कभी,मन कचोटती कभी,हंसाती कभी, रुलाती,अंततः,मिट्टी मिश्रित होती!!जीवन यात्रा।

मृत्यु

7 जनवरी 2020
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वज्रपात सी घात लगी है..साँसों के इस बंधन को..मृत्यु खड़ी बाँट जोह रही...बेबस तन आलिंगन को..खिले नयन यम दर्श को..अधरों पर बिखरी मुस्कान..लेकर गठरी कर्मों की..तन छोड़ रहा ये पहचान..कुंठित,कुत्सित तन ये..हो जाएगा पल में खाक..गंगा दर्शन को तरसेगा..बंद मटकी में बन राख..हृदय विदिर्ण हो उठेगा..देखकर सब ये हा

अर्थ.....

5 जनवरी 2020
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सारे अर्थ,निरर्थक हो गए।निकाले जो,तुमने मेरे इरादों के।खेल गया स्वार्थ,अपना खेल पहले ही।लगा दी बोली,भरे बाजार में,मेरे नादान जज्बातों की।बांधे रखी थी अब तक,डोर जो एक विश्वास की,पलभर में ही टूट गई,हर छड़ी वो आस की।खड़े रहे हम मौन,उन वीरान सड़कों पर।लहरा जाते समंदर,इन निर्दोष पलकों पर।समझ लिया होता गर,अर

रश्मि

5 जनवरी 2020
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नैराश्य को भेदती..नवप्रभाती रश्मि..विराम देती.. चिर चिंतन को..खिलाती सरोज आशा केमन सरोवर में..बन उत्साह..करती नव संचार..निराश मन में..करती शांत..उद्वेलित मन को..नवप्रभाती रश्मि..रत्नमणि सी दमकती..बूंद भी शबनमी..पाकर सँग..नवप्रभाती रश्मि का..क्षण भर ही सही..जी लेती हसीं जिंदगी..कली-कली मुस्काती..खिलख

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