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अमिराज कुमार आनन्द के बारे में

मुझे कविता और ग़ज़ल लिखना बेहद अच्छा लगता है। मैं "हिंदी भाषा साहित्य परिषद् " खगड़िया से जुड़ा हुआ हूँ।

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अमिराज कुमार आनन्द की पुस्तकें

अमिराज कुमार आनन्द के लेख

मेरा गाँव

26 फरवरी 2017
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छोड़ आया वो शहर जहाँ आत्मा बस्ती थी।लिपटे पुराने चादरों में ख्वाहिशें पलती थीं।टूटी सड़क पे चलते, न दर्द थे न आह थे।बस हर कोई समझते, खुद को बादशाह थे।जिसके मिज़ाज़ थे भरे आशिक़ी के शौक सेछोड़ के घर-बार सारा आते गाँधी-चौक पे।लड़कर-मिले, मिलकर-लड़े एक अपनी आन मेंखेल कम झगड़े बड़े, बस होते थे मैदान में।होली-दिवा

शरद ऋतु

4 दिसम्बर 2016
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घनी सी ओस हर कली पे, बुझ गई अब प्यास है।नरम से घास कह रहे हैं, पाँव की तलाश है।झुकी कमर निकल पड़े, सुबह की धूप के तले।जवान हाथ-पैर सब, रजाई में ही बस मले।उठो भई, अब तुम भी क्यों शरद ऋतु गँवा रहे।बिन रजाई ओढ़े ही, सब पक्षी चहचहा रहे।ज़मीं से आसमा तलक की, बुझ चुकी सब प्यास है।मना ले तू दिल को "आनन्द" जो

ग़ज़ल

10 जून 2016
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इस जमीं के लोगों की बग़ावत कम नहीं होती।महज एक-दो ही अक्षर से जहालत कम नहीं होती।अजी! एक दोस्त को एक दोस्त से गहरी शिकायत है।शिकायत रह ही जाती है शिकायत कम नहीं होती।तुझे मुझसे अदावत है मुझे तुझसे अदावत गरअदावत ही अदावत से मुहब्बत कम नहीं होती।Is zami ke logon ki bagaavat kam nahi hoti.Mahaz ek-do hi

vinti

12 मई 2016
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Ai baadal tu varsha ban ja.Tujhpe tiki hai aas abhiTu sab sanson ki saans abhiTu hi ab ushma bujhaayegaHriday se pyaas bhulayegaTu hai yahaan to yahin than ja.Ai baadal tu varsha ban ja

Hamdard

30 अप्रैल 2016
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Chal uske sath jo sath tere chal sake.Tere bina ghamgin ho dard se machal sake. Tooti huyi chhani ko jo mahal tera samajh gya. Wahi tere badan pe lage zakhma par pighal sake.

ऐ दोस्त इस दुनिया में थोड़ा नाम करले तू

6 फरवरी 2015
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न कर सका जो कोई वैसा काम करले तू।      ऐ दोस्त इस दुनिया में थोड़ा नाम करले तू।     आदमी आते हैं और जाते हैं इस कदर।    इस नामुराद दुनिया की चिंता नहीं मगर।        है दीप जो वीरों का वो ताउम्र न बुझे।       कहना पड़े न नामुराद दुनिया को मुझे।       बनाले ऐसी हस्ती ऐसा दाम करले तू।       ऐ दोस्त इस दुन

न कर सका जो कोई वैसा काम करले तू। ऐ दोस्त इस दुनिया में थोड़ा नाम करले तू। आदमी आते हैं और जाते हैं इस कदर। इस नामुराद दुनिया की चिंता नहीं मगर। है दीप जो वीरों का वो ताउम्र न बुझे। कहना पड़े न नामुराद दुनिया को मुझे। बनाले ऐसी हस्ती ऐसा दाम करले तू। ऐ दोस्त इस दुनिया में थोडा नाम करले तू।

6 फरवरी 2015
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राज़ दुनिया का दिखाना चाहता हूँ। चेहरे से चिलमन हटाना चाहता हूँ। बहुत कर चुके हम मज़ाहिब की लड़ाई। प्यार दिलों में अब बसाना चाहता हूँ।

6 फरवरी 2015
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भुखले पेट रोज मरै छै

6 फरवरी 2015
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समिति आरो वार्ड कमिश्नर।भुखले पेट रोज मरै छै। पर मुखिया के गोदाम में सब गेहूँ-चावल सरै छै। गरीबन सब के खून पीके।  बोलेरो ई रंगबाबै छै। कोन कसाई मुखिया बन्लै।  शरम नै तनियो आवै छै।   मारै छै ई लात पेट पर।   ऊपर से गालियो पढ़ै छै। समिति आरो वार्ड कमिशनर।   भुखले पेट रोज मरै छै।

मुखिया

6 फरवरी 2015
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समिति आरो वार्ड कमिश्नर। भुखले पेट रोज मरै छै। पर मुखिया के गोदाम में सब गेहूँ-चावल सरै छै। गरीबन सब के खून पीके। बोलेरो ई रंगबाबै छै। कोन कसाई मुखिया बन्लै। शरम नै तनियो आवै छै। मारै छै ई लात पेट पर। ऊपर से गालियो पढ़ै छै। समिति आरो वार्ड कमिशनर। भुखले पेट रोज मरै छै।

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