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डाॅ भूपेन्द्र हरदेनिया के बारे में

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डाॅ भूपेन्द्र हरदेनिया की पुस्तकें

डाॅ भूपेन्द्र हरदेनिया के लेख

एक दिन पिता के लिए

21 जून 2020
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प्रकृति के समानत्याग की प्रतिमूर्ति कोसागर सी भावमय अतल गहराई कोअंबर सी ऊँची प्रेरणाओं कोअसंख्य प्रोत्साहनों कोशीतल बयार से फैले अहसासों कोवटवृक्ष सी घनी छाँव कोधरती के समान भार वहन करने कीअसीम शक्ति उसके विस्तार को सृष्टि के साक्षात ईश्वर कोएक बिन्दु में समेटने जैसा निरर्थक प्रयास हैपितृ दिवस|इस शब

मुरैना जिले की लोक देवियॉं-मत, मान्यता और परम्परा

20 जून 2020
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संक्षेपिका-मानव की सांस्कृतिक क्षमता का रहस्य उसकी जैविक रचना में निहित है। जब किसी संस्कृति के आधारभूत मूल्य किसी समाज के बहुसंख्यक वर्ग को प्रेरित करना बन्द कर देते हैं, तो क्रमश: संस्कृति का अवसान हो जाता है, लेकिन अगर ये मूल्य एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संवाहित होते रहते हैं, तो संस्कृति वैयक्तिक

मोदी युगीन लोकधर्मिता की स्पष्ट बयॉंवाजी ‘मोदी युग‘- प्रो. संजय द्विवेदी की पुस्तक मोदी युग की समीक्षा

19 जून 2020
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अभी हाल ही में प्रकाशित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति श्री संजय द्विवेदी की एक पुस्तक ‘मोदी युग‘ काफी चर्चा में है। सौभाग्य से यह पुस्तक मुझे भी प्राप्त हुई। इस पुस्तक का अवलोकन करते समय संजय जी के आलेखों से जब मैं रू-ब-रू हुआ  तो मुझे लगा कि इस पुस्तक को ल

आत्मचेतस् से सम्पृक्त लोकचेतनावादी कविता संग्रह (ऑंख ये धन्य है-नरेन्द्र मोदी, अनुवाद अंजना संधीर) -डॉ0 भूपेन्द्र हरदेनिया

19 जून 2020
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आचार्य भरत का कथन है-सा कविता सा बनिता यस्याः श्रवनेने स्पर्शनेन च।कवि हृदयं पति हृदयं सरलं-तरलं सत्वरं भवति।।अर्थात् एक सुन्दर और श्रेष्ठ कविता वही है जो अपने श्रोता, पाठक, सहृदय का उसी प्रकार साधारणीकरण कर दे जिस प्रकार एक सुन्दर स्त्री अपने पति के हृदय को आल्हादित कर उसका सरलीकरण कर देती है, उसे

जनपदीय भारत में अन्त्यजीय संवेदना का धर्मशास्त्र(डॉ. देवेन्द्र दीपक के कविता संग्रह ‘मेरी इतनी-सी बात सुनो की समीक्षा)समीक्षक-डॉ. भूपेन्द्र हरदेनिया

19 जून 2020
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आज के साहित्यिक परिवेश में दलित चिंतन एक विमर्श के साथ एक गम्भीर मुद्दा भी है|  विषय उन दलितों का जिन्हें आज हम पंचम वर्ण या अन्त्यज भी कहते हैं। ‘चातुर्वण्यं मया सृष्टं‘ कहते हुए गीता में भी कृष्ण ने बताया था कि संसार में उनके द्वारा सिर्फ चार वर्णाें का ही सृजन हुआ है, लेकिन समाज के उच्च वर्ग की स

जिंदगी एक झूला है

19 जून 2020
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ज़िंदगी एक झूला है साहबअगर पीछे जाए तो डरो मतवह आगे भी आयेगावह जितना पीछे जायेगाउतना ही आगे आयेगाउसी वेग से बस हौसला रखरख यकीं उस ऊपर वाले परऔर करता रह अपना काम सहजता से,वे मोटे दरख़्तउनके पुष्पजोंके मानिंदजो झेल कर झंझावातों को हिलते रहते हैं खुशी सेऔर गिरकर भी उग आते हैंकई बार उसी जमीं पर ,बस जज़्

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