shabd-logo

sushil acharya के बारे में

work at Katharine pharma

no-certificate
अभी तक कोई सर्टिफिकेट नहीं मिला है|

sushil acharya की पुस्तकें

sushilacharya

sushilacharya

0 पाठक
33 रचनाएँ

निःशुल्क

निःशुल्क

sushil acharya के लेख

लव जेहाद: क्यों, कैसे, नुकसान और बचाव क्यों?

8 मई 2015
0
0

लव जेहाद: क्यों, कैसे, नुकसान और बचाव क्यों?भारत में जब इस्लामी सेनाए हमला करने को तैयार ना होती थी क्यों की आर्य भूमि से इस्लामिक सेनाए जिंदा वापस नहीं जाती थी , उस वक्त भारत के मंदिरों से ज्यादा भारत की औरतो का लालच दे कर जेहादी नेता अपनी सेनाओ को मना पाते थे भारत पर हमला करने के लिए | “औरतो की लूट” नामक एक किताब तक लिखी जा चुकी हैं जिसमे दिल देहला देने वाले आकडे हैं मुसलमानों द्वारा हिंदू स्त्रियों को लूट के सामान की तरह ले जाने के लिए | उन आकडो से तो सिर्फ यही साबित होता हैं के अफगानिस्तान और तुर्की की ९० फ़ीसदी आबादी हिंदू औरतो से ही पैदा हैं | समय बदल गया हैं, आज औरतो को मुस्लमान एक गैर इस्लामिक देश में ऐसे ही उठा के नहीं ले जा सकते बंगलादेश या पाकिस्तान की बात अलग हैं | भारत में या यूरोप में इन्होने अलग तरीके अपना रखे हैं गैर मुस्लमान औरतो से बच्चे पैदा कर के इस्लाम को बढ़ाने के | तो यहाँ शुरू होता हैं लव जेहाद |कैसे?१. मुस्लिम लडको को मौलवियो व अन्य इस्लामिकसंगठन द्वारा हिंदू लडकियो को फ़साने को ना केवल प्रोत्साहित किया जाता हैं अपितु इनामके तौर पर या कहे घर बसाने के नाम पर बड़ी रकम भी रखी जाती हैं | ये रकम जेहाद के नाम पर, जकात के नाम पर, जिज्या के नाम या आपके द्वारा पेट्रोल पर दी हुई रकम से ली जाती हैं |२. कम से कम ४-५ लड़के (ज्यादा भी हो सकते हैं) आपस में मिल के हिंदू लडकियो को चुनते हैं फ़साने के लिए | मुस्लमान हमेशा समूह में रहते हैं अपने कायर स्वाभाव की वजह से इसलिएउन हिंदू लडकियो को बचाना इतना सरल नहीं होता |३. ये लड़के गर्ल्स कालेज के बाहर, कंप्यूटर संसथान के बाहर या अंदर, या कोचिंग संस्थानों के आसपास रहते हैं | कभी-२ लेडिस टेलर की दुकान पर ४-५ लड़के लगे ही रहते हैं| इन्टरनेट पर सोशल नेटवर्क से लेकर याहू चैट रूम तक हर वो जगह जहा इन्हें हिंदू लड़किया मिल सकती हैं वहा ये लगे रहते हैं घात में |४. ज्यादातर मौको पर ये लड़के खुद को हिंदू ही दिखाने का प्रयास करते हैं | अच्छा मोबाइल सेट, कपडे, वा मोटर साइकिल आकर्षण के तौर पर इनका हथियार होते हैं | जिम में घंटो कसरत भी ये लोंग इसी लिए करते हैं ताकि अधिक से अधिक हिंदू लड़किया फसा सके |५. दक्षिण भारत में तो मुल्ला मौलवी इन लडको के लिए पर्सोनालिटी डेवेलोप्मेंट कोर्से चलवा देते हैं | किस तरह बात की जाए लडकियो से

शिव का त्रिशुल, तीसरी आंख और नंदी का रहस्य?

3 अप्रैल 2015
0
0

शिव का त्रिशुल, तीसरी आंख और नंदी का रहस्य? _____________________________________ हमारी परंपरा में भगवान शिव को कई सारी वस्तुओं से सजा हुआ दिखाया जाता है। उनके माथे पर तीसरी आंख, उनका वाहन नंदी, और उनका त्रिशूल इसके उदाहरण हैं। क्या सच में शिव के माथे पर एक और आंख है? और क्या वे हमेशा नंदी और त्रिशूल को अपने साथ रखते हैं? या फिर इन्हें चिन्हों की तरह इस्तेमाल करके हमें कुछ और समझाने की कोशिश की गई है? आइये जानते हैं … तीसरी आंख का मतलब है कि आपका बोध जीवन के द्वैत से परे चला गया है। तब आप जीवन को सिर्फ उस रूप में नहीं देखते जो आपके जीवित रहने के लिए जरूरी है। बल्कि आप जीवन को उस तरह देख पाते हैं, जैसा वह वाकई है। शिव की तीसरी आंख शिव को हमेशा त्रयंबक कहा गया है, क्योंकि उनकी एक तीसरी आंख है। तीसरी आंख का मतलब यह नहीं है कि किसी के माथे में दरार पड़ी और वहां कुछ निकल आया! इसका मतलब सिर्फ यह है कि बोध या अनुभव का एक दूसरा आयाम खुल गया है। दो आंखें सिर्फ भौतिक चीजों को देख सकती हैं। अगर मैं अपना हाथ उन पर रख लूं, तो वे उसके परे नहीं देख पाएंगी। उनकी सीमा यही है। अगर तीसरी आंख खुल जाती है, तो इसका मतलब है कि बोध का एक दूसरा आयाम खुल जाता है जो कि भीतर की ओर देख सकता है। इस बोध से आप जीवन को बिल्कुल अलग ढंग से देख सकते हैं। इसके बाद दुनिया में जितनी चीजों का अनुभव किया जा सकता है, उनका अनुभव हो सकता है। आपके बोध के विकास के लिए सबसे अहम चीज यह है – कि आपकी ऊर्जा को विकसित होना होगा और अपना स्तर ऊंचा करना होगा। योग की सारी प्रक्रिया यही है कि आपकी ऊर्जा को इस तरीके से विकसित किया जाए और सुधारा जाए कि आपका बोध बढ़े और तीसरी आंख खुल जाए। तीसरी आंख दृष्टि की आंख है। दोनों भौतिक आंखें सिर्फ आपकी इंद्रियां हैं। वे मन में तरह-तरह की फालतू बातें भरती हैं क्योंकि आप जो देखते हैं, वह सच नहीं है। आप इस या उस व्यक्ति को देखकर उसके बारे में कुछ अंदाजा लगाते हैं, मगर आप उसके अंदर शिव को नहीं देख पाते। आप चीजों को इस तरह देखते हैं, जो आपके जीवित रहने के लिए जरूरी हैं। कोई दूसरा प्राणी उसे दूसरे तरीके से देखता है, जो उसके जीवित रहने के लिए जरूरी है। इसीलिए हम इस दुनिया को माया कहते हैं। माया का मतलब है कि यह एक तरह का धोखा है। इसका मतलब यह नहीं है कि अस्तित्व एक कल्पना है। बस आप उसे जिस

भारत के बारे मे कुछ रोचक जानकारिया

24 मार्च 2015
0
0

भारत के बारे मे कुछ रोचक जानकारियाँ ============================== =================== सबसे उँची पर्वत चोटी - गॉडविन ऑस्टिन (क2) सबसे ऊंचा बांध - भाखड़ा नांगल बाँध सबसे ऊंचा जलप्रपात - कुंचिकल झरना, कर्नाटक सबसे बड़ा गेटवे - बुलंद दरवाजा, फतेहपुर सीकरी, उत्ताप प्रदेश सर्वोच्च पुरस्कार - भारत रत्न सर्वोच्च वीरता पुरस्कार - परमवीर चक्र सबसे उँचा उंचे युद्ध क्षेत्र - सियाचिन ग्लेशियर सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान - मौसिनराम, मेघालय सबसे ऊंचे हवाई अड्डे - लेह, लद्दाख सबसे ऊंचे झील -चॉलमू झील, सिक्किम सबसे ऊंची मीनार - कुतुब मीनार, दिल्ली सबसे अधिक आबादी घनत्व वाला राज्य - बिहार सबसे अधिक आबादी वाला राज्य - उत्तर प्रदेश सबसे अधिक उँचाई पा स्थित रेडियो स्टेशन - आकाशवाणी का लेह स्टेशन सबसे उँची मूर्ति - जैन संत गोमटेस्वरा, कर्नाटक ताजे पानी की सबसे बड़ी झील - वुलर झील, कश्मीर सबसे बड़ा मंदिर - श्री रंगनाथस्वामी मंदिर, तमिलनाडु सबसे बड़ी मस्जिद - जामा मस्जिद, दिल्ली सबसे बड़ा चर्च - एसई कैथेड्रल, गोवा सबसे बड़ा गुरुद्वारा - स्वर्ण मंदिर, अमृतसर सबसे बड़ा मठ - तवांग मठ, अरुणाचल प्रदेश सबसे बड़ी आबादी वाले शहर - मुंबई, महाराष्ट्र सबसे बड़ी इमारत - राष्ट्रपति भवन, दिल्ली सबसे बड़ा संग्रहालय - राष्ट्रीय संग्रहालय, कोलकाता सबसे बड़ा सभागार - श्री षणमुखानन्दा हॉल, मुंबई सबसे बड़ा सिनेमा थिएटर - थंगम, मदुरै सबसे बड़ा बैराज - फरक्का बैराज गंगा सबसे बड़ा डेल्टा - सुंदरबन डेल्टा, पश्चिम बंगाल सबसे बड़ा गुंबद - गोल गुम्बद, बीजापुर, कर्नाटक सबसे बड़ा चिड़ियाघर - जूलॉजिकल गार्डन, अलीपुर, कोलकाता सबसे बड़ी प्रदर्शनी ग्राउंड - प्रगति मैदान परिसर, नई दिल्ली सबसे बड़ा रेगिस्तान - थार, राजस्थान ..........किसी ने कहा है की ज्ञान बाँटने से बढ़ता है इसलिए ज़रूर शेयर करें........

धनुषकोडी – एक ध्वस्त और उपेक्षित तीर्थस्थल !

21 मार्च 2015
0
0

धनुषकोडी – एक ध्वस्त और उपेक्षित तीर्थस्थल ! धनुषकोडी, भारतके दक्षिण-पूर्वी शेष अग्रभागपर स्थित हिन्दुआेंका यह एक पवित्र तीर्थस्थल है ! यह स्थान पवित्र रामसेतुका उगमस्थान है । ५० वर्षोंसे हिन्दुआेंके इस पवित्र तीर्थस्थलकी अवस्था एक ध्वस्त नगरकी भान्ति हुई है । २२ दिसम्बर १९६४ मेें इस नगरको एक चक्रवातने ध्वस्त किया । तदुपरान्त गत ५० वर्षोंमें इस तीर्थस्थलका पुनरूत्थान करनेकी बात तो दूर, अपितु शासनद्वारा इस नगरको ‘भूतोंका नगर’ घोषित कर उसकी अवमानना की गई । इस घटनाको आज ५० वर्ष पूर्ण हो गए हैं । इस निमित्त बंगाल, आसाम, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यके हिन्दुत्ववादी संगठनोंके नेताआेंके अभ्यासगुटने धनुषकोडीको भेंट दी । इस अभ्यासगुटमें हिन्दू जनजागृति समितिके प्रतिनिधि भी सम्मिलीत हुए थे । इस भेंटमें धनुषकोडीका उजागर हुआ भीषण वास्तव इस लेखमें प्रस्तुत किया है । मीठे पानीका गढ्ढा धनुषकोडीका मीठा पानी, एक प्राकृतिक आश्चर्य ! धनुषकोडीके दक्षिणका हिन्दी महासागर गाढा नीला दिखता है, तो उत्तरका बंगालका उपसागर मैले काले रंगका दिखता है । इन दोनों सागरोंमें १ कि.मी की भी दूरी नहीं है । दोनों सागरोंका पानी नमकीन है । ऐसा होते हुए भी धनुषकोडीमें ३ फूटका गढ्ढा खोदनेपर उसमें मीठा पानी आता है । क्या यह प्रकृतिद्वारा निर्मित चमत्कार नहीं है ? धनुषकोडीका भूगोल तमलिनाडु राज्यके पूर्वी तटपर रामेश्वरम नामक तीर्थस्थल है । रामेश्वरमके दक्षिणकी ओर ११ कि.मी. दूरीपर ‘धनुषकोडी’ नगर है । यहांसे श्रीलंका केवल १८ कि.मी. दूरीपर है ! बंगालके उपसागर (महोदधि) और हिन्दी महासागर (रत्नाकर) के पवित्र संगमपर बसा और ५० गज (अनुमानतः १५० फूट) चौडा धनुषकोडी, बालुसे व्याप्त स्थान है । रामेश्वरम और धनुषकोडीकी धार्मिक महिमा ! उत्तर भारतमें काशीकी जो धार्मिक महिमा है, वही महिमा दक्षिण भारतमें रामेश्वरमकीे है । रामेश्वरम हिन्दुआेंके पवित्र चार धाम यात्रामेंसे एक धाम भी है । पुराणादि धर्मग्रन्थोंनुसार काशी विश्वेश्वरकी यात्रा रामेश्वरमके श्री रामेश्वरके दर्शन बिना पूरी नहीं होती । काशीकी तीर्थयात्रा बंगालके उपसागर (महोदधि) और हिन्दी महासागर (रत्नाकर) के संगमपर स्थित धनुषकोडीमें स्नान करनेपर और तदुपरान्त काशीके गंगाजलसे रामेश्वरको अभिषेक करनेके उपरान्त ही पूरी होती है । धनुषकोडीका इतिहास और रामसेतुकी प्राचीनता !

भारतीय नववर्ष का ऐतिहासिक महत्व :

21 मार्च 2015
0
0

आप सभी मित्रों, शुभचिंतकों और सहयोगियों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ...!!! परम पिता परमेश्वर आप लोगों पर सदैव कृपा बनायें रखें...!!! . भारतीय नववर्ष का ऐतिहासिक महत्व : 1. यह दिन सृष्टि रचना का पहला दिन है। इस दिन से एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 109 वर्ष पूर्व इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने जगत की रचना प्रारंभ की। . 2. विक्रमी संवत का पहला दिन: उसी राजा के नाम पर संवत् प्रारंभ होता था जिसके राज्य में न कोई चोर हो, न अपराधी हो, और न ही कोईभिखारी हो। साथ ही राजा चक्रवर्ती सम्राट भी हो। सम्राट विक्रमादित्य ने 2067 वर्ष पहले इसी दिन राज्य स्थापित किया था। . 3. प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक दिवस : प्रभु राम ने भी इसी दिन को लंका विजय के बाद अयोध्या में राज्याभिषेक के लिये चुना। . 4. नवरात्र स्थापना : शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात्, नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। प्रभु राम के जन्मदिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन उत्सव मनाने का प्रथम दिन। . 5. गुरू अंगददेव प्रगटोत्सव: सिख परंपरा के द्वितीय गुरू का जन्म दिवस। . 6. समाज को श्रेष्ठ (आर्य) मार्ग पर ले जाने हेतु स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को आर्य समाज स्थापना दिवस के रूप में चुना। . 7. संत झूलेलाल जन्म दिवस : सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए..!!! . 8. शालिवाहन संवत्सर का प्रारंभ दिवस : विक्रमादित्य की भांति शालिनवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना। . 9. युगाब्द संवत्सर का प्रथम दिन : 5112 वर्ष पूर्व युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ। . भारतीय नववर्ष का प्राकृतिक महत्व : . 1. वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है। . 2. फसल पकने का प्रारंभ यानिकिसान की मेहनत का फल मिलनेका भी यही समय होता है। . 3. नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता ह

गौहत्या पर प्रतिबन्ध के विरोध में दिए जा रहेकुतर्कों की समीक्षा

16 मार्च 2015
0
0

गौहत्या पर प्रतिबन्ध के विरोध में दिए जा रहेकुतर्कों की समीक्षाहरियाणा सरकारद्वारा गौ हत्या पर पाबन्दी लगाने एवं कठोरसजा देने पर मानो सेक्युलर जमात की नींद ही उड़ गईहै। एक से बढ़कर एक कुतर्क गौ हत्या के समर्थन मेंकुतर्की दे रहे है। इनके कुतर्कों की समीक्षा करने में मुझेबड़ा मजा आया। आप भी पढ़े।कुतर्क नं 1.गौ हत्या पर पाबन्दी से महाराष्ट्र के 1.5 लाखव्यक्ति बेरोजगार हो जायेगे जो मांस व्यापर से जुड़ेहैसमीक्षा- गौ पालन भी अच्छा व्यवसाय हैं। इससेनकेवल गौ का रक्षण होगा अपितु पीने के लिएजनता को लाभकारी दूध भी मिलेगा। येव्यक्ति गौ पालन को अपना व्यवसाय बना सकते हैं।इससे न केवल धार्मिक सौहार्द बढ़ेगा अपितुसभी का कल्याण होगा।कुतर्क नं 2. गौ मांसगरीबों का प्रोटीन हैं। प्रतिबन्ध से उनके स्वास्थ्य परदुष्प्रभाव होगा।समीक्षा- एक किलो गौ मांस 150से 200 रुपये में मिलता हैं जबकि इतने रुपये में 2किलो दाल मिलती हैं। एक किलो गौमांस से केवल 4व्यक्ति एक समय का भोजन कर सकते हैं जबकि 2किलो दाल में कम से कम 16-20 आदमी एक साथभोजन कर सकते हैं। मांस से मिलने वाले प्रोटीन से पेटके कैंसर से लेकर अनेक बीमारियां होने काखतरा हैंजबकि शाकाहारी भोजन प्राकृतिक होनेके कारणस्वास्थ्य के अनुकूल हैं।कुतर्क नं 3. गौ मांस परप्रतिबन्ध अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हैं क्यूंकि यहउनके भोजन का प्रमुख भाग है।समीक्षा- मनुष्यस्वाभाव से मांसाहारी नहीं अपितु शाकाहारी हैं।वह मांस से अधिक गौ का दूध ग्रहण करता है। इसलिएयह कहना की गौ का मांस भोजन का प्रमुख भाग हैंएक कुतर्क है। एक गौ अपने जीवन में दूधद्वारा हज़ारों मनुष्यों की सेवा करती हैंजबकि मनुष्य इतना बड़ा कृतघ्नी हैं की उसे सम्मान देनेके स्थानपर कसाइयों से कटवा डालता है।कुतर्क नं 4.अगर गौ मांस पर प्रतिबन्ध लगाया गया तो बूढ़ी एवंदूध न देनी वाली गौ जमीन पर उगनेवाली सारी घास को खा जाएगी जिससेलोगों को घास भी नसीब न होगी।समीक्षा-गौ घास खाने के साथ साथ गोबर के रूप में प्राकृतिकखाद भी देती हैं जिससे जमीन कीन केवलउर्वरा शक्ति बढ़ती हैं अपितु प्राकृतिक होने केकारण उसका कोई दुष्परिणामनहीं है। प्राकृतिकगोबर की खाद डालने से न केवल धन बचता हैं अपितुउससे जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती हैं। साथ मेंऐसी फसलों में कीड़ा भी कम लगता हैं जिनमेंप्राकृतिक खाद काप्रयोग होता है। इस कारण सेमहंगे कीटनाशकों की भी

धर्मनिरपेक्षता

15 मार्च 2015
0
0

धर्मनिरपेक्षता शब्द के जनक जॉर्ज जेकब हेलीयाक(१८१७-१९०६) का जन्म ससेक्स, इंग्लैंड में हुआ था। वेमूलतः एक व्याख्याता संपादक थे। तब यूरोपका इसाई समाज रूढ़िवादी और दकियानूसी सोचसे बुरी तरह ग्रस्त था।सन १८४२ में जेकब हेलीयाक को ईशनिंदा के आरोप में६ महीने के लिए जेल भेज दिया गया। हेलियाकवेल्स के समाजवाद के संस्थापक सदस्यों में से एकराबर्ट ओवेन (१७७१-१८५८) की विचारधारा से बहुतप्रभावित थे।राबर्ट ओवेन के विचार से-"सभी धर्म एक ही हास्यास्पद कल्पना पर आधारितहैं जो मनुष्य को एक कमजोर, मूर्ख पशु, उग्रता से पूर्णधर्मांध, एक कट्टरवादी और पाखंडी बनाती है।"लेकिन अपने इस धर्म विरोधी सिद्धांत के उलट कुछवर्षों बाद ही ओवेन ने आश्चर्यजनक रूप से हिन्दू योगऔर आध्यात्म की राह पकड़ ली।जेकब हेलीयाक ने अपने गुरू के धर्मनिरपेक्ष विचारको आगे बढ़ाने की ठानी और हवालात से बाहरआकर इसने द मूवमेंट और द रिजनर नामक पत्रनिकालना शुरू किया। इन पत्रों के मूल में था धर्मविरोध ।हेलियाक ने इस पत्र के माध्यम से एक नईव्यवस्था का आह्वान किया जो धर्म को खारिजकरके विज्ञान और तर्कों पर आधारित हो। इसव्यवस्था का नामकरण उसने सेकुलरिज्म किया।जिसे हम भारतीय "धर्मनिरपेक्षता" कहते हैं।इसकी कुछ परिभाषाएं हैं-१. वो जीवन पद्धति जिनका आधार आध्यात्मिकअथवा धार्मिक न हो।२. धार्मिक व्यवस्था से पूर्णतया मुक्त जीवन शैली।३. वो राजनैतिक व्यवस्था जिसमें सभी धर्मो केलोग सामान अधिकार के पात्र हो एवं प्रशासन एवंन्याय व्यवस्था निर्माण में धार्मिकरीती रिवाजों का हस्तक्षेप नहो।४. ऐसी व्यवस्था जो किसी धर्म विशेष परआधारित न हो और प्रशासनिकनीतियों का नियमन किसी धर्म विशेषको ध्यान में रख कर न किया जाए।इस शब्द के इतिहास और परिभाषा से यह बिल्कुलस्पष्ट हो जाता है की इस शब्द का जन्मही धर्मविरोध के लिए हुआ था।अब हम आते हैं अपने भारतीय परिवेश में-इस शब्द की उत्पत्ति ईसाई धर्म केदकियानूसी परम्पराओं के विरोध मे हुई थी। येमेरी समझ के बाहर है की विश्व कल्याण,सर्वधर्मसमभाव प्रत्येक मनुष्यको समानता का अधिकार और पेड़-पौधों तथा कीड़े-मकोड़ों से भी प्रेमकी शिक्षा देने वाले हिन्दू धर्म के देश भारत में येकैसे और क्यों लागू किया गया..!!!इस परिकल्पना को मूर्त रूप देते समय क्या हमारेसंविधान निर्माताओं ने ये नहीं सोचा की, भारतऐसा देश है जहाँ हर १० किलोमीटर परपानी क

String of Pearls .... चीन औरभारत :

15 मार्च 2015
0
0

String of Pearls .... चीन औरभारत :::**********************************************समाचारों में कई बार सुना कि 28 साल बादकोई भारत का प्रधान मंत्री श्री लंका गया, नेपाल मेंकोई भारत का प्रधान मंत्री 17 साल बाद गया,ऑस्ट्रेलिया 28 साल बाद, Seychelles 34 साल बाद,Fiji 33 वर्ष, म्यांमार 25 वर्ष …… इसके नुक्सानक्या हुवे इसके बारे में तथ्य जुटाने के बादपता चला कि जब दिल्ली के लुटियन जोन वालेघोटाले, आरक्षण, लूट-खसोट, जीरो लॉस, दलाली,तुष्टिकरण में व्यस्त थे तब चीन अलग ही काम में व्यस्तथा - वो था String of Pearls (Indian Ocean)Strategy. इसके तहत चीन ने अपने तट से सूडान तक एकऐसी रेखा बना डाली जिससे भारत समुद्र में फंसनेकी तरफ बढ़ चला। मंडेब, मलक्का, होमरूज़ औरलोम्बोक की खाड़ी से होते हुवे श्री लंका,पाकिस्तान, बांग्लादेश,मालदीव्स औरसोमालिया तक ऐसा सामरिक और व्यापारिकरेखा खड़ी कर दिया जिससे भारत को बड़ी चोटदी जा सके। दक्षिणी चीन सागर के हैनान, वुडी औरपरासल द्वीप में अपने मजबूत बेस बाए। दक्षिणी चीनसागर में कब्ज़ा बनाने के बाद ड्रैगन हिन्द महासागरकी तरफ बढ़ा। बांग्ला देश के चित्तगोंग में एकबड़ा नवल यार्ड बनाने के बाद श्री लंका केहम्बनबोटा में 20 अरब डॉलर का कमर्शियल शिपिंगसेंटर बनाया। उसके बाद पाकिस्तान के ग्वादरबंदरगाह को बनाया जिसपे कहने मात्रको पाकिस्तान का कब्ज़ा है लेकिन इस पोर्टका असलसामरिक और व्यापारिक अधिपत्य चीन केपास है। मालदीवस के मराओ एटोल इलाके में युद्धकक्षमता विकसित किया है। 20 अरब डॉलर के सूडानऔर 10 अरब डॉलर की लागत से तंज़ानिया केबंदरगाहों पे anti - piracy के बहाने से अपनी मज़बूतस्थिति बनाई।इस सब के बीच भारत के क्या किया,2007 में भारतीय नव सेना ने एक “Indian MaritimeDoctrine”भारत सरकार को प्रस्तुत किया जिसकेअनुसार भारत को मलक्का और हेरमूज़ की खाड़ी मेंअपनी उपस्थिति बनानी ही पड़ेगी। चीन केमालदीवस में एयर बेस के जवाब में मारीशियस,मेडागास्कर, मोज़ाम्बीक चैनल में उपस्थिति केसाथसित्तवे, म्यांमार में deep water port आदि की जरूरतपे बल दिया। तत्कालीन सरकार ने कुछ कदम उठाए जैसेसित्तवे, म्यांमार में deep water port बनाना 2010 मेंचालू किया, 2011मारीशियस में एक भारतीयटोही विमान पत्तन और रडार स्टेशन लगाने के लिएवहां की सरकार से बात शुरू किया। बड़ी सफलता तबमिली जब अरब सागर में सोमालिया समुद्री लु

कश्यप मुनि की पहाड़ी अर्थातकश्यपमीर यानी कश्मीर

13 मार्च 2015
0
0

कश्यप मुनि की पहाड़ी अर्थातकश्यपमीर यानी कश्मीर हिन्दूराजा सुहादेव (१३०१-१३२२) के समय तक ज्ञान,विज्ञान,कला,संस्कृति,दर्शन,धर्म एवं आध्यात्म का केन्द्रबनी रही। अलबरूनी ने लिखा हैकि किसी भी संदिग्धव्यक्ति को कश्मीर में तब तक प्रवेशनहीं करने दिया जाता था, जब तककी उसका परिचय वहाँ के किसी सामंत सेनहीं होता था।लेकिन सन १३१३ में ईरान से आये शाहमीर नामक एकमुसलमान को सुहादेव ने उदारतापूर्वक अपने दरबार में शरणदी और उसे अंदरकोट का भार सौंप दिया। इस काल मेंकश्मीर शैवमत का केन्द्र माना जाता था।लेकिन �सन १३२२ में मंगोल सरदार दलूचा ने ६०००० सैनिकों केसाथ कश्मीर पर भयंकर आक्रमण कर दिया ।दलूचा ने पुरुषों के क़त्लेआम का हुक़्म जारी करदिया जबकि स्त्रियों और बच्चों को ग़ुलाम बनाकर मध्य एशिया केव्यापारियों को बेच दिया। शहर और गाँव नष्ट करके जला दिए गए औरभारी तबाही मचाई। शांतिप्रिय राजा सुहादेवइसके विरुद्ध कुछ न कर सका और किश्तवाड़ भाग गया।उस समय लद्दाख के बौद्ध राजकुमार रिनचन ने लुटे-पिटेकश्मीर को संभाला। लेकिन उसकी मृत्यु केपश्चात अनेक षडयंत्र रच कर शाहमीर ने शासनकरती उसकी विधवा बहूकोटारानी को उसके अल्पायु बच्चों के साथ कैद करगद्दी हथिया ली और सुल्तानशम्सुद्दीन के नाम से १३३१ ई. में सिंहासन परजा बैठा।सिंहासन पर बैठते ही वो असली रूप में आगया और उसने कश्मीर में सुन्नी मुस्लिमसिद्धांतों का प्रचार प्रारंभ कर दिया।हालांकि कश्मीर की अंतिम हिन्दू शासककोटारानी के समय मेंही कश्मीर में अरब देशों के मुस्लिमव्यापारियों, इस्लामी धर्मगुरूओं और विशेषकरसैय्यदों का आगमन शुरू हो चुका था एवं हिन्दूराज्यकी धर्मनिरपेक्ष नीतियों के कारणवो बड़ी संख्या में वहाँ बस भी चुके थे परंतुशाहमीर के समय में हमदान (तुर्कीस्तान-फारस) से मुस्लिम सईदों की बाढ़ कश्मीर मेंपहुंचने लगी।मौके का फायदा उठाकर सईदअली हमदानी और सईद शाहेहमदानी, इन दो मजहबी नेताओं के साथहजारों इस्लामिक मत प्रसारक सईदभी कश्मीर में घुस आये (1372)। इन्होंनेऔर सैय्यदों को बुलाया। इन लोगों ने धीरे-धीरेसुल्तानों पर प्रभाव जमा लिया और मुस्लिमशासकों की मदद से कश्मीर के गांव-गांव मेंमस्जिदें, खानकाहें, दरगाहें, मदरसे और इसी प्रकार केइस्लामिक केन्द्र खोले। ऊपर से दिखने वाले इन मानवीयप्रयासों के पीछे ही वास्तव मेंकश्मीरी हिन्दुओं के जबरन धर्मान्तरणकी नापाक दास्ता

सन् 1757 की पलासी की लड़ाई– क्या हम जाहिल थ

12 मार्च 2015
0
0

जैसा कि आप सब जानते हैं कि अंग्रेजों को भारत में व्यापार करनेका अधिकार जहाँगीर ने 1618 में दिया था और 1618 सेलेकर 1750 तक भारत के अधिकांश रजवाड़ों को अंग्रेजों ने छल सेकब्जे में ले लिया था | बंगाल उनसे उस समय तक अछूता था | औरउस समय बंगाल का नवाब था सिराजुदौला | बहुतही अच्छा शासक था, बहुत संस्कारवान था | मतलबअच्छे शासक के सभी गुण उसमे मौजूद थे |अंग्रेजों का जो फ़ॉर्मूला था उस आधार पर वो उसके पासभी गए व्यापार की अनुमति मांगने के लिएगए लेकिन सिराजुदौला ने कभी भी उनको येइज़ाज़त नहीं दी क्यों कि उसके नाना नेउसको ये बताया था कि सब पर भरोसा करना लेकिन गोरों परकभी नहीं और ये बातें उसके दिमाग मेंहमेशा रहीं इसलिए उसने अंग्रेजों को बंगाल में व्यापारकी इज़ाज़तकभी नहीं दी | इसके लिएअंग्रेजों ने कई बार बंगाल पर हमला किया लेकिन हमेशा हारे | मैंयहाँ स्पष्ट कर दूँ कि अंग्रेजों नेकभी भी युद्ध करके भारत मेंकिसी राज्य को नहीं जीता था,वो हमेशा छल और साजिस से ये काम करते थे | उस समय का बंगालजो था वो बहुत बड़ा राज्य था उसमे शामिल था आज का प. बंगाल,बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा, बंग्लादेश, पूर्वोत्तर केसातों राज्य और म्यांमार (बर्मा) | हम जो इतिहास पढ़ते हैं उसमेबताया जाता है कि पलासी के युद्ध में अंग्रेजों औरसिराजुदौला के बीच भयंकर लड़ाई हुई और अंग्रेजों नेसिराजुदौला को हराया | लेकिन सच्चाई कुछ और है, मन में हमेशा येसवाल रहा कि आखिर सिराजुदौला जैसा शासक हार कैसे गया ? और येभी सवाल मन में था कि आखिर अंग्रेजों के पास कितनेसिपाही थे ? और सिराजुदौला के पास कितनेसिपाही थे ? भारत में पलासी के युद्ध केऊपर जितनी भी किताबें हैं उनमे सेकिसी में भी इस संख्या के बारे मेंजानकारी नहीं है | इस युद्धकी सारी जानकारी उपलब्ध हैलन्दन के इंडिया हाउस लाइब्ररी में | बहुतबड़ी लाइब्ररी है और वहां भारतकी गुलामी के समय के 20 हज़ार दस्तावेजउपलब्ध है | वहां उपलब्ध दस्तावेज के हिसाब से अंग्रेजों के पासपलासी के युद्ध के समय मात्र 300 -350सिपाही थे और सिराजुदौला के पास 18 हजारसिपाही | किसी भी साधारणआदमी से आप ये प्रश्न कीजियेगा कि एकतरफ 300 -350 सिपाही और दूसरी तरफ18 हजार सिपाही तो युद्ध कौन जीतेगा ?तो जवाब मिलेगा की 18 हजार वाला लेकिनपलासी के युद्ध में 300 -350 सिपाही वालेअंग्रेज जीत गए और 18 हजारसिपाही वाला सिराजुदौला हार गय

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए