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अमित के बारे में

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अमित की पुस्तकें

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अमित के लेख

तू कौन है, मैं कौन हूँ!

1 जून 2016
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ओ ज़िन्दगी इस दिल तले, सवाल हैं कई अनकहेजवाब तेरे पास हैं, पर वक़्त कि दरकार हैएक लम्हा भी मिले, तुझसे मैं ये पूछ्लूं तू कौन है, मैं कौन हूँ!तू कौन है, मैं कौन हूँ!कोई क्या सिखाएगा, कोई क्या बताएगाक्या किताबों का लिखा , कोई साथ लेकर जायेगाएक कदम जो तू चले, तेरे साथ मैं चलूँतू कौन है, मैं कौन हूँ!तू

सदा फूलता फलता भगवन आपका ये परिवार रहे

11 मई 2016
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सदा फूलता फलता भगवन आपका ये परिवार रहे आपस में हो प्यार सभी का , और आप से  प्यार रहे ! कर मिथ्या अभिमान न मन से, जीवो का अपमान करे ! सभी जनो की तन-मन - धन से ,सेवा और सम्मान् करे !! प्रभु आपकी आज्ञा माने ,सबसे प्रेम का व्यव्हार करे !                       सदा फूलता  फ

क्या बौद्ध धर्म दलितों की पीड़ा हर पाएगा?

20 अप्रैल 2016
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बाबासाहब भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि मैं हिंदू जन्मा अवश्य हूं, इसमें मेरा कोई नियंत्रण नहीं था, किंतु मैं हिंदू रहकर मरूंगा नहीं. उनके कहे इस वाक्य का असर दलितों पर आज भी कायम है. सैकड़ों सालों से जाति के जंजीर में बंधे दलित, मुक्ति की चाह में हिंदू धर्म को त्याग कर अंबेडकर की तर

कविता : सबकी एक ही पहचान होती

3 जनवरी 2016
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काश!मैं भारत का सम्राट होतातोभारत का नाम इण्डिया नहींभारत ही होता।जो हठ से इसे इण्डिया कहताउसे मैं भारत से बाहर करता। भेज देता वापसचार देशों के आयातित संविधानउनके अपने-अपने देशों मेंलिखकर यह टीपकि अशोक नहीं लाये थेबाहर से कोई संविधानअब और नहीं सहेंगे यह वैचारिक अपमान।हम फिर सेअपना संविधान बना सकते ह

∗मान लोगे तो हार होगी, ठान लोगे तो जीत होगी∗

14 दिसम्बर 2015
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“जिन्होंने कभी कुछ किया ही नहीं, वो भी डर-डर के डराने के उपदेशक बन चुके थे.”एक बार कुछ वैज्ञानिको  ने एक बड़ा ही रोचक प्रयोग किया..उन्होंने 5 बंदरों को एक बड़े से गुफा  में बंद कर दिया और बीचों -बीच एक सीढ़ी लगा दी जिसके ऊपर केले लटक रहे थे..जैसा की आशा  थी , जैसे ही एक बन्दर की नज़र केलों पर पड़ी वो उन्

मन पर संयम रखने का अचूक उपाय

14 दिसम्बर 2015
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कन्फ्यूशियस बहुत बड़े साधक थे। एक बार एक साधक ने उनसे पूछा, मैं मन पर संयम कैसे रख सकता हूं ? तब कन्फ्यूशियस बोले, मैं तुम्हें एक छोटा सा सूत्र देता हूं। क्या तुम कानों से सुनते हो ?साधक ने कहा, हां मैं तो कानों से ही सुनता हूं। कन्फ्यूशियस ने असहमति जताई और कहा कि मैं नहीं मान सकता कि तुम कानों से

∗मान लोगे तो हार होगी, ठान लोगे तो जीत होगी∗

13 दिसम्बर 2015
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“जिन्होंने कभी कुछ किया ही नहीं, वो भी डर-डर के डराने के उपदेशक बन चुके थे.”एक बार कुछ वैज्ञानिको  ने एक बड़ा ही रोचक प्रयोग किया..उन्होंने 5 बंदरों को एक बड़े से गुफा  में बंद कर दिया और बीचों -बीच एक सीढ़ी लगा दी जिसके ऊपर केले लटक रहे थे..जैसा की आशा  थी , जैसे ही एक बन्दर की नज़र केलों पर पड़ी वो उन्

धर्म है /प्रेरणात्मक कविता

26 नवम्बर 2015
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जिन मुश्किलों में मुस्कुराना हो मना,उन मुश्किलों में मुस्कुराना धर्म है।जिस वक़्त जीना गैर मुमकिन सा लगे,उस वक़्त जीना फर्ज है इंसान का,लाजिम लहर के साथ है तब खेलना,जब हो समुन्द्र पे नशा तूफ़ान काजिस वायु का दीपक बुझना ध्येय होउस वायु में दीपक जलाना धर्म है।हो नहीं मंजिल कहीं जिस राह कीउस राह चलना च

तीन पेड़ो की कथा

17 नवम्बर 2015
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यह एक बहुत पुरानी बात है| किसी नगर के समीप एक जंगल तीन वृक्ष थे| वे तीनों अपने सुख-दुःख और सपनों के बारे में एक दूसरे से बातें किया करते थे| एक दिन पहले वृक्ष ने कहा – “मैं खजाना रखने वाला बड़ा सा बक्सा बनना चाहता हूँ| मेरे भीतर हीरे-जवाहरात और दुनिया की सबसे कीमती निधियां भरी जाएँ. मुझे बड़े हुनर औ

जब मिलेगी रोशनी मुझसे मिलेगी

5 नवम्बर 2015
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इस सदन में मैं अकेला ही दिया हूँ; मत बुझाओ!जब मिलेगी, रोशनी मुझसे मिलेगी!पाँव तो मेरे थकन ने छील डाले अब विचारों के सहारे चल रहा हूँ आँसूओं से जन्म दे-देकर हँसी को एक मंदिर के दिए-सा जल रहा हूँ;मैं जहाँ धर दूँ कदम वह राजपथ है;मत मिटाओ!पाँव मेरे, देखकर दुनिया चलेगी!बेबसी मेरे अधर इतने न खोलो जो कि अप

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