वक्त है एक परिंदा उड़ा जा रहा
हम भिड़े ही रही जिंदगी की दौड़ में
मैं भी पागल ही था जो वक्त के मोह में
वक्त को वापस बुलाता रहा
वक्त भी निर्मोही की तरह
दूर मुझसे सदा ही जाता रहा।
एक दिन मैं वक्त को मुठ्ठियों में लिया
कैद करता रहा झूठे दिलासे की तरह
वक्त तो है परिंदा मुझको चलाता रहा
मैं भी पागल था इसको मनाता रहा।
रास्ते में थी तमाम दुश्वारियाँ मेरे
मैं नीद को अपनी भागता रहा।
वक्त था बेरहम ,वक्त था कभी नम
मैं इसे अपनी किस्मत समझाता रहा।
रोके न रुके बस फिसलता ही रहा
वक्त तो बर्फ की तरह बस पिघलता रहा।
मैं चुप न रह सका मैं उफ भी न कर सका
वक्त मुझको उम्र भर बस चिढ़ाता रहा।
भूख प्यास थी बस रोटी की आस थी
वक्त मुझको उम्र भर बस दौड़ता रहा।
कब आगे निकल गया वक्त जिंदगी से मेरा
मैं खाली अश्क आँखों से बहाता रहा।
छोड़ आया मैं पीछे बहुत कुछ मगर
वक्त आगे ही आगे निकलता रहा।
जिंदगी अजब कशमकश में रही
वक्त मुझसे दूर बस जाता रहा ।
कल्याणी तिवारी✍️