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विधाता

23 दिसम्बर 2016

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https://laxmirangam.blogspot.in/2016/11/blog-post_36.html


विधाता


क्यों बदनाम करो तुम उसको,

उसने पूरी दुनियां रच दी है.

हम सबको जीवनदान दिया

हाड़ माँस से भर - भर कर.


हमने तो उनको मढ़ ही दिया

जैसा चाहा गढ़ भी दिया,

उसने तो शिकायत की ही नहीं

इस पर तो हिदायत दी ही नहीं।


हमने तो उनको

पत्थर में भी गढ़ कर रक्खा..

उसने तो केवल रक्खा है पत्थर

कुछ इंसानों के सीने में

दिल की जगह,

इंसानों को नहीं गढ़ा ना

पत्थर में।


सीने में पत्थर होने से

बस भावनाएं - भावुकता

कम ही होती हैं ना,

मर तो नहीं जाती।।


मैने देखा है मैंने जाना है,

पत्थर दिलों को भी

पिघलते हुए

पाषाणों से झरने झरते हुए

चट्टानों से फव्वारे फूटते हुए।।


क्यों बदनाम करो तुम उसको,

उसने तो दुनियां रच दी है.

हम सबको जीवनदान दिया

हाड़ माँस से भर भर कर.

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