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विशंभर नाथ त्रिपाठी की डायरी

विशंभर नाथ त्रिपाठी

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vishambhar nath tripathi ki dir

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पुस्तक के भाग

1

तुम नदी बनकर बहो तो...

6 जून 2017
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~~~ गीत ~~~~~~~मैं शिला बन देह पग पग पर बिछा दूँ ,तुम नदी बन कर बहो तो !प्राण के उत्सर्ग का उत्सव मना लूँ , साथ चलने को कहो तो !~~~~साथ चलने से मिलन के स्वप्न निरवंशी न होंगे ।इस पुरातन देह के शत रूप अर्वाचीन होंगे ।जो अभी तक खोजते फिरते रहे संसार में हम ।क्या पता पाएँ किनारा वह इसी मझधार में हम ।~~

2

गीत

6 जून 2017
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मिल गयी मंजिल जमाना जल उठा पाँव के छाले नहीं देखे किसी ने ।हर खुशी अपने कुँआरे पेट में दर्द जो पाले नहीं देखे किसी ने ।।~~~~~वेदना अर्धांगिनी बनकर मेरी सेज पर यौवन लिये सोती रही ।इक अभागिन प्रेमिका सी कामना हाथ मंगल सूत्र ले रोती रही ।~~~~~रात दिन मजबूरियों की आँख सेछलकते प्याले नहीं देखे किसी ने

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