*परमात्मा के द्वारा मैथुनी सृष्टि का विस्तार करके इसे गतिशील किया गया | मानव जीवन में बताये गये सोलह संस्कारों में प्रमुख है विवाह संस्कार | विवाह संस्कार सम्पन्न होने के बाद पति - पत्नी एक नया जीवन प्रारम्भ करके सृष्टि में अपना योगदान करते हैं | सनातन धर्ण के सभी संस्कार स्वयं में अद्भुत व दिव्य रहे हैं | जीवन की दिशा - दशा परिवर्तित करने वाले विवाह संस्कार में भी अद्भुत विधान व अनेकों रहस्य छुपे हुए हैं | सर्वप्रथम वर और कन्या के गुणों का मिलान किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी द्वारा भावी दंपत्ति की कुंडलियों से दोनों के गुण और दोषों के अनुसार किये जाते थे | गुण मिलान करते समय वर-वधु के छत्तीस गुण होते हैं | छत्तीस में से कम से कम अठारह गुणों का मिलना जरूरी होता है। ये गुण क्रमश: वर्ण, वश्य, तारा, योनी, गृहमैत्री, गण, भृकुट, नाड़ी है | गुणों का मिलान हो जाने पर सर्वप्रथम वरीक्षा का विधान बताया गया है जिसमें वर का अधिग्रहण किया जाता था | तदुपरान्त वाग्दान अर्थात फलदान (तिलक) कन्या पक्ष के लोग वर के घर जाकर करते थे | कन्या के भाई के द्वारा वर का पूजन करके अपनी बहन के लिए वर का वरण करता था | तिलक एवं फलदान करने के बाद ही उभयपक्ष में अपने कुलचार के अनुसार हल्दी , उबटन , तेल पूजन आदि सम्पन्न होते थे | हमारे शास्त्रों के अनुसार वर का वरण वर के ही घर पर जाकर वर के स्वजनों के बीच उभयपक्ष के गणमान्य लोगों एवं देवताओं को साक्षी मानकर किये जाने का विधान बनाया गया है | परन्तु समय के साथ लोगों ने आधुनिकता में स्वयं को ढालते हुए सनातन विधानों को अपने अनुसार मनाने लगे , जिसका परिणाम भी आज पारिवारिक न्यायालयों में देखने को मिल रहा है |*
*आज के युग में लोगों ने विवाह को भव्यता तो प्रदान कर दी परन्तु सनातन विधानों को दरकिनार कर दिया है | आज वर - कन्या का मेलापक अर्थात गुण मिलान नाम मात्र को ही कराया जा रहा है | एक वर या कन्या के कई नाम गिनाये जाते हैं कि किसी नाम से तो गुण मिल जायं | यदि दुर्भाग्य वश किसी नाम से गुण नहीं मिलते तो वैसे ही विवाह कर दिया जा रहा है | माता - पिता को विचार करना चाहिए कि हमारी सन्तानों के भविष्य के लिए यदि कोई विधान बना है तो उसका पालन अवश्य करना चाहिए | आज लोग आर्थिक खर्च का हवाला देकर फलदान (तिलक ) के विधान को लगभग समाप्त कर चुके हैं | कुछेक कुलों को छोड़कर प्राय: फलदान विवाह में द्वारपूजन के पहले कन्या के ही दरवाजे पर सम्पन्न हो रहे हैं | ऐसा करने वालों से मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" पूछना चाहता हूँ कि जब तक फलदान व वर का वरण नहीं किया जाता है तो विवाह के अन्य विधान (हल्दी , तेलपूजन आदि) किस अधिरार से सम्पन्न किये जाते हैं | बिना आधार के आधेय नहीं हो सकता उसी प्रकार बिना वर का वरण किये विवाह के अन्य कुलाचार कैसे पूर्ण हो सकते हैं | हमारे पूर्वज दूरदृष्टा थे उन्होंने जो भी विधान बनाये थे उनमें अनेकों रहस्य एवं मानव जीवनोपयोगी तथ्य समाहित होते थे परंतु आज के अधिक पढ़े - लिखे मनुष्य उन विधानों से किनारा कर रहे है जिसका परिणाम भी आज समाज में अधिकतर सम्बन्धविच्छेद के रूप में देखने को मिल रहा है | फलदान (तिलक) सदैव वर के दरवाजे पर ही होता आया है और होना भी चाहिए , जिससे कि कन्या के जीवन में कोई विघ्न बाधा न हो | अपनी बिटिया का जीवन सुखद बनाने के लिए प्रत्येक पिता को इस पर विचार अवश्य करना चाहिए |*
*आधुनिक होना ठीक है परन्तु आधुनिकता में अन्धे होकर अपने सनातन विधानों / परम्पराओं में मनमानी करना महज मूर्खता ही है | इससे बचने का प्रयास करते रहना चाहिए |*