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विवेक पटाईत की डायरी

विवेक पटाईत

3 अध्याय
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vivek patait ki dir

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पुस्तक के भाग

1

अभिव्यक्ति

24 मई 2016
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तानाशाह सदैव  सच को दबाने की कोशिश करतें है क्योंकि उहने सदा डर लगता है.....अभिव्यक्ति कान में बोलीछांट दी जीभ उसकी. अभिव्यक्ति शब्दों में पढ़ी जला दी पुस्तकें सारीअभिव्यक्ति चित्रों में दिखी फाड़ दिए चित्र सारे. डर लगता है सदा उन्हें स्वतंत्रता से, सत्य से अभिव्यक्ति से. 

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वापसी का टिकट

28 मई 2016
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शहर जाने के बाद कोई  कभी गाँव  वापस  नहीं लौटता. चिड़िया  आई दाना चुग्गा पानी पीयागाड़ी में बैठी शहर को गयीवापसी का टिकट लेकिन निकलना भूल  गयी. 

3

लघु कविताएँ- स्त्री

16 जुलाई 2016
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(१)लोग कहते हैं, पद्मिनी चिता में कूदी, जलकर मरी ....पद्मिनी  चिता में कूदी वासना की आग में वह  ना  जली. (२)जब वस्त्र नहीं थे, वासना भी नहीं थी.  भोगदासी  बनी नारी जिस क्षण पहने वस्त्र तन पर. (३)भौतिक देह वासनामयी होता है, जो  नष्ट हो जाता है, परन्तु प्रेम  अमर होता है. वासना भी जल गयी देह के साथ सा

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