shabd-logo

यादों का बरगद

30 दिसम्बर 2023

20 बार देखा गया 20

वो एक बहुत ही पुराना बरगद का पेड़ था जिसके बगल से होकर रेलवे लाइन गुजरती है। उससे सटा हुआ रास्ता कच्चा व कीचड़ भरा होने के कारण आदमियों की भीड़ से दूर रहता है। जब से बारहवीं पास करके विद्यालय छोड़ा तब से उधर कम ही जाना होता है। प्रायः नहीं के बराबर। आज अचानक किसी काम से उस रास्ते पर जाना हुआ। विद्यालय के पास पहुंचते ही एक गहरा धक्का जैसा लगा। मेरी नजरें उस बरगद के पेड़ के ऊपर थीं जो अब खाली स्थान मे तब्दील हो चुका था। मेरा उस पेड़ से अनजाना सा लगाव था क्योंकि वो उन पलों का गवाह था जो समस्या रहित थे और अब गुजर चुके थे। तब उसकी छांव में बैठना.बहुत अच्छा लगता था। उसकी कटी हुई लकड़ियों के ढेर के पास जाकर खड़ा हो गया। वो स्थान अब भी कोलाहल शून्य था। हां रेल की पटरियों के नीचे लगने वाले कंक्रीट के खंभे दूर तक बिछे हुए नजर आ रहे थे। जिससे साफ प्रतीत होता था कि वो रेल लाइन अब दोहरी होने वाली है। उसका विस्तार होने वाला है। दिमाग कुछ सहज हुआ।
मेरे मन में अकस्मात एक प्रश्न कौंधा। आखिर क्यों काटा गया होगा उस पेड़ को। उससे तो किसी को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए थी। वो तो एक जड़ जीव था। इसका उत्तर भी तुरंत मिल गया। रेल लाइन का विस्तार करने के लिए खाली जगह की आवश्यकता थी। वो पेड़ उसके रास्ते में बाधा उत्पन्न कर रहा था। शायद इसीलिए उसको निर्ममता पूर्वक काट कर रख दिया गया। एक झुरझुरी सी उठी मन में। पिछले कुछ सालों से मैं महसूस कर रहा था अब सब कुछ धीरे धीरे परिवर्तित होने लगा है। घड़ी के सुईयों की रफ्तार तो अब भी वहीं पुरातनी है मगर जिंदगी के रफ्तार ने अवश्य गति पकड़ी है। एक प्रतिस्पर्धा सी होने लगी है लोगों के मध्य। समय ने थोड़ा सा करवट लिया है। जिसकी चपेट मे सारा संसार आ रहा है। एकाएक ही मनुष्य के आवश्यकताओं में द्रव्य ने प्रधान रूप धारण कर लिया है और ये प्रतिस्पर्धा उसी द्रव्य के संग्रह के लिए ही हो रही है। लोग तेजी से द्रव्य संग्रह के लिए प्रयास करने लगे हैं। इसका सीधा असर जिंदगी के अन्य पहलुओं पर प्रतिकूल पड़ रहा है।
मनुष्य के अंदर की वह चीज जो सही मायनों में मनुष्य को मनुष्य बनाती है अब लुप्त हो रही है। कहीं धीरे धीरे कहीं तेजी से। सहृदयता, सहानुभूति, मदद, सहायता जैसी स्वाभाविक भावनाएं अब केवल शब्द बन कर रह गई हैं। इन सब परिवर्तनों का दोषी किसे ठहराया जाय। इसका दोष सिर्फ उसी प्रतिस्पर्धा का है। उसने हमसे सब कुछ छिन लिया और मशीन के रूप में तैयार करके खड़ा कर दिया। भागने के लिए, दौड़ने के लिए। ताकि कोई भी पीछे न रह जाय।  इस विकास के रास्ते मे जो चीजें बाधा पैदा कर रही हैं उन्हें जड़ से काटकर हटा दिया जा रहा है। उनका नामोनिशान मिटा दिया जा रहा है। जिसका गवाह है.ये लकड़ियों का ढेर जो इस वक्त मेरे सामने है।
रेलगाड़ी की आवाज ने मेरा ध्यान भंग किया। कोई सवारी गाड़ी आ रही है। जब रेलगाड़ी पास से गुजरने लगी तो मैंने उन यात्रियों की तरफ गौर से देखा। गाड़ी सवारियों से भरी हुई है। दरवाजे से खिड़कियों से लोग झांक रहे हैं। कुछ उदास और गमगीन चेहरे हैं जो प्रगति की दौड़ में शामिल होने के लिए परदेश को जा रहे हैं। घर, गांव, परिवार सब कुछ छोड़कर । अकेले ही एक सूना संसार लिए हुए। कुछ चेहरे खुशनुमा और प्रसन्न भी हैं जो इस दौड़ मे शामिल होने के पश्चात कुछ दिनों के विश्राम के लिए परदेश से घर को आ रहे हैं। बाकी चेहरे सपाट हैं। उनमें न कहीं दूर जाने का गम है न कहीं से घर आने की खुशी। गाड़ी के चले जाने के बाद वातावरण फिर सन्नाटे मे घिर गया।
अरे हां, कुछ याद आया अचानक। जो याद आकर मन के अंतराल मे छिपे विस्तृत अचेतन संसार के किसी हिस्से को झकझोर गया, कुरेद गया। मैं स्वयं भी तो परदेशी बना था। कुछ समय के लिए । फिर शुरुआती दौर की लंबी रातों के पश्चात पांच वर्षों के दिन कैसे गुजर गए पता ही न चला। तब मेरा चेहरा भी उन्हीं चेहरों मे शामिल था जो अभी मेरे सामने से गुजरे थे। इस पेड़ के पास पहुंचते ही मन दुखी हो जाता था। लगता था अब सब कुछ.पीछे छूट जायेगा। उस बरगद से विदा लेकर फिर मैं भी उसी दौड़ का हिस्सा बनने को चल पड़ता। एक अनजान दुनिया की तरफ। पर्वतों के उन अंचलों मे निवास के दौरान वहां भी उसी प्रतिस्पर्धा को अपना पांव पसारते हुए देखा। जैसे वो एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ मुझसे कह रही हो की देखो तुम सोचते थे कि पहाड़ों की शांत वादियों मे मैं अपना जहर नहीं  घोल पाऊंगी। उन्हें अपने अस्तित्व मे नहीं मिला पाऊंगी। पर आज मैंने सब कुछ उलट पलट दिया है। उसका कहना भी सत प्रतिशत सही था। मैदानी इलाकों की चकाचौंध से बचने तथा मन की संपूर्ण विश्रांति को पाने के लिए ही तो लोग इन पहाड़ों की शरण मे आते हैं। लेकिन अब पहाड़ भी अपनी उस विश्रांति को खोने लगे हैं। वो चकाचौंध वो भागदौड़ वहां भी कायम होने लगी है।

हार्न की आवाज ने फिर से मेरी सोचों पर ब्रेक लगा दिया। इस बार मालगाड़ी है। सवारी रहित, भावनाशून्य परंतु उन भावना रहित डिब्बों मे भी वहीं रफ्तार है। वहीं सनक। अपनी मंजिल को जल्दी से जल्दी पा लेने की। मेरे विचारों ने अब दूसरा रूप धारण करना शुरू किया। अगर उस बरगद को काट ही दिया तो इसमें गलत क्या है। सर्वरूपी विकास के लिए किसी न किसी नजरिए से ये जरूरी भी है। जिन वस्तुओं से विकास के रास्ते में बाधा पड़ती हो उन्हें हटा या मिटा देने मे कोई हानि नहीं है। उनके मिट जाने मे ही लाभ है। नहीं तो हम विकसित और सभ्य कैसे कहलायेंगे। सब ठीक होने के बावजूद भी प्रश्नों का एक अंबार फिर से सामने आ पड़ा।
क्या तब सजीव भी इसी श्रेणी मे आयेंगे। उदाहरणार्थ जानवर या मनुष्य। तब तो जिनकी रफ्तार धीमी है या जिनके जीवित रहने से बाधा है उन्हें खत्म कर देना पड़ेगा। शायद ऐसा होना शुरू भी हो गया है।

ओह, मेरा ध्यान घड़ी की ओर गया। पूरे तीन घंटे व्यतीत हो चुके हैं मुझे यहां खड़े। स्थान अब भी शांत और जनशून्य है। हल्की हल्की धूप खिली है। अपनी साइकिल की पैडल को मारकर मैंने उसे चाल पकड़ाई और घर की तरफ चल पड़ा। मेरे सोचने विचारने से क्या होने वाला था। अब तो वो बरगद कट चुका था।

रोशन


Pawan Kumar Pathak "Roshan" की अन्य किताबें

मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

बहुत सुंदर लिखा है आपने सर 👌 मेरी कहानी प्रतिउतर पर अपनी समीक्षा जरूर दें 🙏🙏

31 दिसम्बर 2023

Pawan Kumar Pathak "Roshan"

Pawan Kumar Pathak "Roshan"

31 दिसम्बर 2023

सादर अभिवादन । समीक्षा के लिए हृदय से धन्यवाद ।।

5
रचनाएँ
Pawan Kumar Pathak "Roshan" की डायरी
0.0
इस किताब में मेरे द्वारा लिखी गई कुछ कहानियों कविताओं का संग्रह है । आपके आशीर्वाद की कामना करते हैं ।।।
1

परदेशिया

30 दिसम्बर 2023
1
1
2

अबकी बार देखा... कुछ झुकी और अभिशप्त खामोश सी निगाहें, जिनमें थीं मजबूरियां साथ साथ कातर विवशता.. जिन्हें समझा था बेवफा बस भरते रहें आहें........ अबकी बार देखा वो गलियां अब सूनी

2

यादों का बरगद

30 दिसम्बर 2023
1
1
2

वो एक बहुत ही पुराना बरगद का पेड़ था जिसके बगल से होकर रेलवे लाइन गुजरती है। उससे सटा हुआ रास्ता कच्चा व कीचड़ भरा होने के कारण आदमियों की भीड़ से दूर रहता है। जब से बारहवीं पास करके विद्यालय छोड़ा तब से

3

कविता और शायरी संग्रह

31 दिसम्बर 2023
0
0
0

थोड़ा ठहर जा ऐ वक्त,, कुछ जख्मों के निसान. थोड़ा दिल का अरमान अभी बाकी है....... ठहर गए थे लमहे यूंही चंद फिजाओं के लिए मुकम्मल इश्क का तो सारा मुकाम अभीं बाकी है......।।।।।।।।। रोशन त

4

महक

31 दिसम्बर 2023
0
0
0

अब सिर्फ पन्द्रह मिनट शेष रह गया था रेलगाड़ी के आने में अतः मैं अपना सामान संभालता हुआ स्टेशन की तरफ चल पड़ा। जनवरी का महीना होने के कारण शीत ऋतु अपने समग्र यौवन के साथ प्रकृति में संलग्न होकर हर एक वस्

5

ये कैसी मौत

2 फरवरी 2024
0
0
0

मौत, एक ऐसा नाम जिसे सुनकर देंह कांप उठे । वो विधि का अटल विधान है। कुछ मौतें ऐसी होती हैं जिसे देखकर लोग भगवान से यहीं दुआ करते हैं कि इस प्रकार की मृत्यु किसी की न हो। इसी तरह की एक मौत मेरी आंखों क

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए