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यादों के निशान

30 जुलाई 2017

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कुछ चली कुछ रुकी शायद

मुझसे कुछ कह रही थी

वो यादो की तेज़ हवा

मेरे लिये ही बह रही थी

मैं रोकती भी तो केसे उसे

वो लहर जो दिल में उठी थी

गहरी इतनी की सागर भी समा जाये

तूफ़ान ऐसा कि सब उडा ले जाये

मेरी आंखे जो अश्रू से भरी थी

बारिश के पानी सी तेज बरसी थीं

बस उज़डे गुलिस्तां के निशान बचे

जो तेज आन्धी के संग बहे थे

जो थे कल साथ आज वो हैं कहां

वह यार जो साथ रोये, साथ हंसे थे !!!

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यादों के निशान

30 जुलाई 2017
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कुछ चली कुछ रुकी शायदमुझसे कुछ कह रही थीवो यादो की तेज़ हवामेरे लिये ही बह रही थीमैं रोकती भी तो केसे उसेवो लहर जो दिल में उठी थीगहरी इतनी की सागर भी समा जाये तूफ़ान ऐसा कि सब उडा ले जायेमेरी आंखे जो अश्रू से भरी थी बारिश के पानी सी तेज बरसी थींबस उज़डे गुलिस्तां क

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