ये कैसा इश्क है
ऊंचा कद, छरहरा बदन,तीखे नयन-नक्श, पतले-पतले कमान से तराशे हुए लालिमा लिए हुए ठोंठ, आंखें जैसे मय के प्याले हों,लम्बी सुराहीदार गर्दन, उरोज़ो को कहां तक सम्भाले, साक्षात् कामदेव को निमंत्रण देते हुए, बोलती तो ऐसे लगता जैसे कोयल ने मधुर राग छेड़ा हो कोई, उफ़्फ़्फ़् इतनी बला की खूबसूरती।
मगर किस काम की ?
हां सच में रति को भी मात करें ऐसी खुबसूरती फिर भी कोई लड़का पसंद नहीं करता था, कारण , पक्का रंग या यूं कहें इतना गहरा सांवला कि सांवला भी गोरा लगे उसके सामने, जैसा रंग -रूप नाम भी वैसा काजल।
जब कभी भूले से आइना देख लेती तो खूब कोसती इश्वर को,"हे भगवान् अगर इतना काला रंग देना था तो ये नायाब हुस्न क्यों दिया"?
मां से कहती,"मां मुझे पैदा होते ही मार देती ना, अब तुम्हें इतनी तकलीफ़ तो ना होती, ना बार-बार लड़के मुझे रिजेक्ट करते ना तुम परेशान होती"
मां बेटी को झूठी सांत्वना देते हुए," हुंंअअअअअअ, ये भी कोई लड़के थे, एक भी तुम्हारे लायक नहीं था, मेरी लाडो के लिए तो कोई राजकुमार आएगा, जो पलकों की डोली में बिठा के ले जाएगा"
वो भी जानती थी कि अच्छी उंचे ओहदे की नौकरी और रति को मात करने वाले हुस्न के बावजूद भी ये काला रंग आड़े आता था, 34 की हो गई मगर अभी तक कहीं रिश्ता तय नहीं हो रहा था ।
"बस मां अब अगर किसी से आपने मेरे रिश्ते के लिए बात की तो देखना, नहीं करनी मुझे शादी-वादी" पैर पटकते हुए काजल अपनी सहेली ( साबिया) के घर चली जाती है।
" अरे काजल तुम वो भी इतने गुस्से में, लगता है आज फिर नुमाइश लगी है, यार तुझे कितनी बार कहा कुछ लगाया कर चेहरे पर, कोई उबटन वगैरा, मगर तु माने तब ना"
" लो उधर मां भाषण देती है, इधर तुम शुरू हो गई, बैठने देगी थोड़ी देर चैन से या जाऊं"
"आओ, आओ मेरी जान, तुम्हारा घर है बैठो क्या, रह जाओ दो-तीन दिन"
" ना बाबा ना, मैं तुम्हारे और जीजू के बीच कबाब में हड्डी नहीं बनुंगी, बस चल चाय पिला, थोड़ी गपशप करके चली जाऊंगी, और सुन मेरा ट्रांसफर दिल्ली हो गया है, मैं कल ही दिल्ली जा रही हूं"
"अरे वाह ये तो बड़ी अच्छी ख़बर सुनाई तुमने काजल, अब तो तेरा दिल्ली में दिल किसी ना किसी से लगा ही समझो" और हंसते हुए उसे गले लगा लेती है।
अगले दिन काजल दिल्ली के लिए रवाना होती है, नया आफिस, नए लोग, पहुंचते ही आफिस ज्वाइन किया।
आफिस का पहला दिन, आते ही बाॅस के केबिन की तरफ जाती है और डोर पर नाॅक करती है।
नाॅक...नाॅक...
अन्दर से बाॅस की आवाज़ आती है, " कम इन प्लीज़"
काजल जैसे ही अन्दर जाकर कुछ कहने लगती है, बाॅस ( चक्षु) ने फाइल में ही झूके हुए आदेश दिया, " बाहर शर्मा जी से काम समझ लिजिए, और अपना केबिन भी देख लिजिए, नाऊ प्लीज़ लीव"
काजल चुपचाप बाहर शर्मा जी को ढुंढने चल पड़ी, सोच रही है कितना अकड़ु बाॅस है, और अपना काम शुरू कर देती है।
चक्षु बहुत ही हैंडसम ऊंचा कद-काठ, गोरा रंग, चौड़ा सीना, बलिष्ट भुजाएं उसे देखकर तो कामदेव भी शरमा जाए। दो दिन बाद चक्षु काजल की फाईल देख रहा है तो उसकी तस्वीर देखकर दिल पे हाथ रख कर बुदबुदाया," उफ़्फ़्फ़् क्या क़यामत है ये लड़की, ये तो अप्सरा को भी मात कर दे,आज तक मैंने ऐसी परी नहीं देखी, मेरे सामने आई और मैंने इसे आंख उठाकर देखा भी नही"
चक्षु की अभी तक शादी नहीं हुई थी उसे कोई लड़की पसंद ही नहीं आ रही थी, वो था भी इतना खूबसूरत कि कोई लड़की उसको जंचती ही नहीं थी। आज पहली बार किसी का बिन देखे दीवाना हो गया था, उसने प्रोफ़ाइल में पढ़ लिया था काजल सिंगल हैं, उसकी तो बाछें खिल गई, काजल को देखने के लिए तड़प उठा, दिल उछलकर बाहर आ रहा था,बदन में झनझनाहट,उसके साथ सपने में ही प्यार के हिलोरें लेने लगा, कभी उसकी पेशानी चूमता ,कभी सुर्ख होंठों का अमृत रस अपने होंठों से पीता, कभी उसे सीने से लगाता तो कभी उसके उभरे सीने पर सिर रखकर खुद को उसमें महसूस करता, उसे बाहों में भर प्यार लूटा रहा है, "काजल आई लव यू, रियली लव यू जान, तुम ना मिली तो मैं मर जाऊंगा"
इन्हीं ख्यालों में चक्षु खोया है कि काजल नाॅक कर रही है बार-बार, तभी उसकी तन्द्रा टूटी तो कुर्सी से खड़ा होकर स्वयं ही आफिस का दरवाजा खोलने आता है।
लेकिन ये क्या, कागल को देखते ही उसपर घड़ों पानी पड़ जाता है, बला का हुस्न और आंखों को चुभता, नाम से मेल खाता काजल जैसा ही काला रंग।
मगर दिल कहां मानता है जनाब, अब आ गया तो आ गया।
अब ना उगले बनता है ना निगले, फांस गले में फंस गई, इश्क कर बैठे जनाब काले हुस्न से, रोज़ मन को समझाते, फिर रोज़ वही जद्दोजहद, कि जीना तो काजल संग, मरना तो काजल संग।
आखिर मन को कब तक लालीपाप खिलाते, अड़ गया ज़िद्द पर, जैसे ही काजल सामने आए तो हिलौरें लेने लगे, ऐसा लगे मानो अभी उछलकर सीने से बाहर आ जाएगा, और जाकर काजल के कदमों से लिपटकर प्यार की भीख मांगेगा।
14 फरवरी का दिन आफिस में आज काम बंद बस सिर्फ पार्टी, हर साल आजके दिन किसी ना किसी की लाटरी निकलती अर्थात कोई ना कोई खुलकर सामने आता, अपने इश्क का इज़हार करता और शादी के पवित्र बंधन में बंध जाता, मगर आज अभी तक कोई भी नहीं सामने आया। पार्टी पूरे जोश पे थी, जाम से जाम टकरा रहे थे, धीमा- धीमा रोमांटिक म्यूज़िक बज रहा है, हर कोई अपने प्यार की बाहों में झूल रहा है, चक्षु और काजल ही हैं जो बस अकेले हैं।
अचानक म्यूज़िक बंद हो गया और चक्षु ने एक हाथ में माइक और एक हाथ में गुलाब का फूल लिया और सीधे आकर काजल के कदमों में घुटनों के बल बैठ गए, "काजल, आई लव यू"
"अगर तुम मुझे अपने लायक समझो तो मेरा हाथ थामकर ये रोज़ स्वीकार करो"
काजल सहित सभी आश्चर्यचकित चक्षु को देखें जा रहे हैं।
" काजल और चक्षु का मिलन तो सदियों पुराना है, काजल के बिना चक्षु की चमक फीकी है"
काजल को कुछ समझ नहीं आ रहा ये क्या हो गया, ये कैसा इश्क है, और वो उसमें सराबोर होकर चक्षु को बेताहाशा चूमे जा रही है।
#इश्क_ना_देखे_जात-पात_इश्क_ना_देखे_रंग_रूप#
#इश्क_करने_वाले_धूप_में_देखें_छांव,_छांव_में_देखें_धूप"
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी (यमुनानगर)