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8. एक पहाड़ी युवक की प्रेमकथा

10 अगस्त 2023

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       उसका चेहरा श्यामवर्ण है, लेकिन जब वह आती है; तो उसे लगता है कि वह गौरवर्ण हुआ जा रहा है। उसकी आंखें छोटे आकार की हैं, लेकिन जब वह आती है; तो उसे लगता है कि उसकी आंखें बड़ी होती जा रहीं हैं। ऋतु चाहे कोई सी भी हो, लेकिन जब वह आती है, तो उसे लगता है कि बसंत ही है। जाना यदि हिंदी की सबसे खौफनाक क्रिया है, तो उसके लिए आना हिंदी की सबसे सुखद क्रिया है। 
       वह चाहता है कि बस वह आती रहे हर इतवार को बजाणी धुरा के जंगलों में। वह अकेली आये या फिर अपनी सहेलियों के साथ या किसी और के साथ। उसे फर्क नहीं पड़ता। उसके आने का उद्देश्य क्या है, इस बात से भी उसे फर्क नहीं पड़ता। वह पालतू पशु चराने के लिए आये या फिर हरी घास काटने के लिए..किसी भी कारण से आये। बस आये। और.. और वह टकटकी लगाये देखता रहे उसे किसी बांज या बुरांश के रूख (पेड़) की ओट से या फिर किसी चपटे पत्थर की ओट से। बस इतना ही चाहता है वह।

       पिछले दो महीनों में कुल आठ बार आई वह। एक इतवार छोड़कर बाकी सभी इतवार उसके एकदम हरे- भरे बीते। उस इतवार वह सूर्य देवता के ढलने तक टकटकी लगाए देखता रहा था, पथरीली उबड़- खाबड़ पगडंडी की ओर.. लेकिन वह नहीं आई। उसने अपने पालतू पशुओं को घर का रास्ता दिखा दिया और अपना वहीं एक ऊंचे पत्थर पर बैठकर न्यौली गीत गाने लगा-

केमू गाड़ी चली रैछ, सुवा शहर-शहर। 
नै तैंले बाटुली लाये, नैं दिये खबर।। 

( हे प्रिये ! केमू की गाड़ी इस शहर से उस शहर दौड़ रही है, लेकिन तूने न तो याद किया और न ही कोई खबर दी। ) 

       जब अंधेरा होने लगा तो, वह एक निराश मन और सैकड़ों शंकाएं लिए अपने घर वापस लौट आया। वापसी में उसने देखा कि उसका एक बैल रतिया चन्नू काका के खेत में उज्याड़ ( दूसरे का खेत चरना ) चला गया है। वह भागा- भागा आया और उसे भेकुवा ( एक वृक्ष) के सिपके (पतले डंडे) से इतना पीटा कि उसके पीठ पर पांच- छै लाल-काले घाव हो गये। 

       घर पहुंचने पर जब ईजा ( माँ ) ने बैल के पीठ में घाव देखे तो उसे खूब खरी- खोटी सुनाई- "अपने बैल को कोई ऐसे मारता है रे नालायक ! तेरे दगड़ुवों ( दोस्तों ) ने तेरा नाम काला मशान (काला भूत) ठीक ही रखा है। जैसी शकल वैसी अकल।" उसने ईजा से कुछ नहीं कहा और चुपचाप कमरे में जाकर खाट पर पेट के बल लेट गया। 

         उसे ऐसा लगा कि जैसे उसकी जिंदगी में दुखों के सिवा और कुछ नहीं है। उफ्फ ! अब अगले इतवार तक कैसे रहेगा वह ! कालेज में भी उसका मन लगने से रहा ! जब हिंदी वाले मासाब कविता पढ़ा रहे होते थे, तो वह शायरी लिखने लगता था। जब ड्राइंग वाली मैडम ड्राइंग बनाने को कहती तो, वह उस लड़की का चित्र बनाने लगता था। कालेज में, घर पर, हर जगह खाते समय, सोते समय, यहाँ- वहाँ... वह बस उसके ही खयालों में डूबा रहता। 

      किसी तरह एक हफ्ता बीता और अगले इतवार को वह आई और उस लड़के के लिए एक बार फिर उस लड़की का 'आना' हिंदी की सबसे सुखद क्रिया बन गई। 

                                           ***

        उस लड़के का असली नाम था किसन, लेकिन घर से लेकर बाहर तक के सभी लोग उसे मशान कहकर ही पुकारते थे, क्योंकि वह मशान भूत की तरह ही दिखने में काला था। वह गाँव के पास के इंटर कॉलेज में ग्यारहवीं का छात्र था। दसवीं में एक बार वह फेल भी हो चुका था, लेकिन अगले बरस जैसे-तैसे सेकंड डिवीजन पास हो ही गया। 

        किसन न तो पढ़ाई में अच्छा था और न तो शकल- सूरत में ही। यही कारण था कि वह दगड़ुवों के बीच में उपहास का पात्र बने रहता था। हाँ, घर के कामों में उसका मन जरूर लगता था। बौज्यू ( पिता ) के साथ खेत में जाकर हल जोतना हो या दीदी के साथ मांङे ( घासयुक्त जमीन ) में जाकर घास काटना हो या फिर ईजा के साथ रात को चूल्हे में मडुवे की रोटियाँ बेलना हो, प्रत्येक काम वह बड़ी ही संजीदगी से करता। 

       इन कामों के अलावा उसका एक और विशेष काम था, वह था हर छुट्टी के दिन जानवरों को चराने धुरा- जंगल ले जाना। इसी विशेष काम को करते- करते वह दो माह पूर्व अपना हृदय बजाणी के जंगलों में ही लावारिस छोड़ आया था। 
         पिछले इतवार को जब किसन मवेशी ( पालतू पशु ) चराने जंगल गया, तो उसने पाया कि वहाँ चोटियों पर बुरांश के फूल मुस्कुराने लगे थे। बांज के मुलायम पत्तों में सफेद धूल जमने लगी थी। काफल के पेड़ों से दाने बाहर झांकने लगे थे। जमीन पर प्योली के फूलों की लड़ियाँ बिछी हुईं थीं। कोयल के गीतों से पूरा जंगल गूंजने लगा था। आहा ! यही तो बसंत है।

       क्या आदमी के जीवन में हमेशा बसंत नहीं हो सकता ? हो सकता है। बिल्कुल हो सकता है। उसके जीवन में तो बसंत है। तब से, जब से उसने उस रूपसी ( सुंदरी ) को देखा, तब से उसके जीवन में बसंत है। आहा ! बसंत.. किसन को लगा कि वह उस जंगल का राजा है और वह रूपसी उसकी रानी..! 

        हाँ... वही रूपसी जो अभी अपनी दातुली की धार से घास काट रही थी और बीच-बीच में अपनी संङियों ( सखियों ) से बतियाती भी जा रही थी। 

        आहा ! कितनी कोमल है उसकी आवाज बिल्कुल नौनी ( मक्खन ) की तरह। आहा ! कितनी निर्मल है उसकी हंसी एकदम नौले के छल-छल बगते (बहते) पानी के धार जैसी। आहा ! कितना प्यारा और गोरा- चिट्ठा है उसका चेहरा ! एकदम धौली गाय के दूध जैसा। उसकी आंखें, एकदम नैनीताल की छीड़ (ताल ) जैसी गहरी। आहा, उसकी नाक तो देखो ! जैसे बर्मा सुनार के द्वारा तराशी हुई हो। उसके होंठ तो देखो, एकदम कलूं ( पहाड़ी मटर ) के फूल जैसे लाल-लाल। उसके बाल तो और भी कमाल के हैं, एकदम निंगालू के जैसे लंबे और घने। आहा ! उसकी पूरी देह ही कितनी तराशी हुई है, जैसे बदलू मिस्त्री का चिना हुआ मकान या फिर बया पक्षी का बुना हुआ घोल ( घोंसला )...! 

       किसन को खयालों में खोये हुए यह ध्यान ही नहीं रहा कि उन घसियारिनों ने उसे देख लिया है और वे उससे कुछ कह रही हैं। 
"ऐ पागल ! क्या देख रहा है ! इधर आ !" एक घसियारिन लड़की ने पुकारा। 
"मैं.. मैं..!" किसन हड़बड़ाकर रह गया। 
"हाँ, तू ! और कौन ?" दूसरी घसियारिन लड़की ने कहा। 
        
       उसके इतना कहते ही वह बाहर से शरमाते- लजाते किंतु भीतर से खुशी में उतावला होता हुआ उनके समीप आया। 
"जी।" उसने सिर झुकाकर इस अंदाज में कहा कि जैसे उसके जैसा सीधा- सादा शरीफजादा दुनिया में कोई और होगा ही नहीं। 
"देख तो बसंती, कैसा सीधा बन रहा है।" उनमें से एक लाल सूट वाली लड़की ने गोरी- चिट्ठी लड़की से कहा।
     
       बसंती नाम सुनते ही किसन की बांछें खिल गईं- "अच्छा तो बसंती नाम है इसका ! तभी तो मैं कहूँ क्यों इसके जंगल में आते ही मुझे बसंत जैसा चिताइता ( महसूस होता) है। इसी को कहते हैं यथा नाम तथा गुण। बसंती.. आहा ! कितना प्यारा नाम है। अच्छा, जब ये मुझसे नाम पूछेगी तो मैं क्या बताऊंगा... ऊं... ऊं... हाँ ये ठीक रहेगा।" उसने अपना नया नाम सोच लिया था। 

      "ऐ.. सुन ! क्या नाम है तेरा ?" उसी लड़की ने घास को डोक्के ( निंगाल से बना घास रखने का बर्तन ) में डालते हुए पूछा। 

"म.. म.. मेरा.. बसंत !" उसने अपना कल्पित नाम सामने रख दिया। 
"ही.. ही.. ही.. !" तीनों संङियों की खिलखिलाहट हवा में बिखर गई। 
"सच बता.. मजाक तो नहीं कर रा ?" हरे सूट वाली लड़की ने कहा।
"ना तो ! यही नाम है मेरा।" किसन ने दृढ़ता से कहा। 
"अच्छा, ये बता तू बसंती को क्यों घूरता है ?" लाल सूट वाली लड़की ने सवाल किया। 

      किसन को इस अप्रत्याशित प्रश्न की उम्मीद नहीं थी। प्रश्न सुनकर वह सकपका गया- "अं.... अं... !" 
"क्या अं... अं....? शकल है भूत मशान जैसी और घूर रहा है हमारी अप्सरा जैसी सहेली को।" लाल सूट वाली लड़की ने उसे बुरी तरह झिड़क दिया। 
"जाने दे ना नीरू ! क्यों बेचारे को जलील कर रही है।" बसंती ने नीरू से कहा। 

     आहा ! कितने अच्छे भाव हैं ! यकीनन यह लड़की नहीं, देवी है देवी ! किसन भावनाओं में गोते लगा रहा था। 
"क्यों रहने दे ! ये लड़के होते ही ऐसे हैं।" उसी लाल सूट वाली लड़की ने कहा। 
"अब से नहीं घूरेगा ये। क्यों रे मशान अब भी घूरेगा ?" हरे सूट वाली लड़की ने कहा। 
"ना, बिल्कुल नहीं।" किसन ने कनअंखियों से बसंती की ओर देखकर जवाब दिया। 
"अगर घूरेगा तो ?" हरी सूट वाली ने पूछा। 
"तो बसंती मुझे जो सजा देना चाहे, दे सकती है।" 
"ओ इजा ! तू तो बड़ा समार्ट निकला रे !" लाल सूट वाली चहक पड़ी। 
"तो क्या ?" किसन ने जानना चाहा। 
"चल ठीक है। अगर अगली बार तू बसंती को घूरेगा तो सजा के रूप में अपनी काली पठिया ( मेमना ) बसंती को देगा।" हरी सूट वाली ने कहा। 
"मंजूर है।" किसन के मुंह से निकला। 
"चल जा अब। अपनी बात याद रखना।" यह कहकर हरे सूट वाली लड़की ने बसंती के कान में कुछ कहा। उधर किसन ने एक उड़ती नजर बसंती की ओर डाली और तेजी से आगे बढ़ गया। 

      उसके जानवर अब भी चरने में मशगूल थे। वह एक बांज के रूख के नीचे बैठ गया। उसके मन में सैकड़ों खयाल उमड़ने- घुमड़ने लगे थे। 
                                         ***

         उस रात किसन को नींद नहीं आई। सोचता रहा कि अगर बसंती को काली पठिया देने की नौबत आई तो वह घरवालों को क्या जवाब देगा। अंत में एक बहाने पर आकर उसका मन अडिग हो गया और वह बहाना था बाघ का पठिया को खा जाना। 

       सुबह के दस बज रहे थे। सर- सर- सर- सर बसंती हवा चल रही थी। दूर हिमालय की चोटियों पर पड़ती सूर्य देवता की किरणें अठखेलियाँ खेलती जान पड़ती थीं। कोयल की कुहू-कुहू के साथ-साथ घुघुती के घूर- घूर की ध्वनि वातावरण में मिश्री घोल रही थी। किसन आज पहाड़ के ढलान पर ही जानवर चराने लगा था, क्योंकि उसे डर था कि अगर वह चोटी पर गया तो, बसंती को निहारे बगैर उसे चैन नहीं आयेगा। वह एक संकरे रास्ते के किनारे बैठा हुआ, अपनी माँ कउली के साथ घास चरती नन्हीं काली पठिया को देख रहा था। आहा ! कितनी प्यारी पठिया है ! अच्छा हुआ कि मेरी तरह कोई इसे काली चुड़ैल कहकर नहीं पुकारता। 

       "काली आ..ली ली !" उसने जेब से रोटी के टुकड़े निकालते हुए काली को बुलाया। 
     नाम सुनते ही काली मैं- मैं- मैं- मैं करती.. फुदकती... उसके पास आई और उसके हाथ में रखे रोटी के टुकड़े खाने लगी। जब टुकड़े खतम हो गये तो, वह उसके हाथ को ही चाटने लगी। वैसे तो किसन को बकरी का हाथ चाटना बिल्कुल पसन्द नहीं था। ऐसा करने पर वह उन्हें मारकर भगा देता था, लेकिन आज उसे काली का ऐसा करना अच्छा लग रहा था। उसने कुछ पलों बाद काली को गोद में उठाया और उसकी पीठ सहलाने लगा। 

             उसी समय उसके कानों में किसी के खिलखिलाने की ध्वनि गूंजी। जब तलक उसका ध्यान उस खिलखिलाहट पर टिकता काली पठिया उसके हाथों से छूटकर अपनी माँ के पास जा पहुंची। किसन ने चोटी की तरफ अपना ध्यान केंद्रित किया- जरूर ये खिलखिलाहट उन तीनों घसियारिन संङियों की है। बसंती का खूबसूरत चेहरा उसके सामने नाच उठा। 

       क्यों न एक बार उस रूपसी के दर्शन कर लूं ! ना- ना.. अगर उन्होंने देख लिया तो ! देखेंगी कैसे, मैं तो हिसालू- किरमड़ की झाड़ियों के पीछे छिपकर उसे निहारूंगा। अगर देख लेंगी तो, वहाँ से नौ दो ग्यारह हो जाऊंगा। कौन-सा ये लड़कियाँ मेरा पीछा जो क्या कर पाने वाली ठैरी। अगर कर लिया तो ? इससे अच्छा तो मैं भागूँगा ही नहीं। वहीं झाड़ियों में हिसालू- किरमड़ तोड़ने लगूंगा। कहूंगा..मैं हिसालू- किरमड़ खा रहा था। हाँ ये सही रहेगा ! एक थैली भी साथ ले चलता हूँ। ऐसा सोचकर वह दबे पांव पहाड़ की चोटी पर चढ़ने लगा।

       चोटी पर पहुंचने के बाद किसन ने खुद को एक काफल के पेड़ के पीछे छिपा लिया। उसका अनुमान एकदम सही था, वे घसियारिनें बसंती और उसकी संङियां ही थीं। उसने इधर- उधर नजरें दौड़ाईं, लेकिन उसे हिसालू- किरमड़ की झाड़ियाँ कहीं नजर नहीं आईं। ओफ्फ ! अब क्या करे वह ! अच्छा इसी काफल के पेड़ के पीछे दुबका रहने में क्या हर्ज है। अगर पकड़ में आऊंगा तो नौ दो ग्यारह हो जाऊंगा। ऐसा सोचकर वह बसंती को निहारने लगा। 

      अहा ! बला की रूपसी है मेरी बसंती ! मैं इसे साइकिल पर बिठाकर शहर के सिनेमा हॉल में पिचकर (पिक्चर) दिखाने ले जाऊंगा तो, सारे दगड़ू साले जल-भुन मरेंगे। कहेंगे साले ने लड़की नहीं हीरोइन पटाई है हीरोइन। और अपनी किस्मत को कोसेंगे। बिचारे दगड़ू ! फिर हम भवानी फोटू स्टूडियो वाले के यहाँ फोटू खींचवायेंगे। वो मुझसे दूर खड़ी होगी और मैं कहूंगा मेरे आंङ (शरीर) में घिङारू के कांटे जो क्या लगे हैं ! थोड़ा पास आ जाओ। मेरे कंधे पर हाथ रखो..तब वह नदिया के पार पिचकर की हीरोइन 'गुंजा' सी शरमाते- लजाते मेरे कंधे पर हाथ रखेगी। आहा.....किसन रोमांचित हो उठा।

       जब..जब... मेरी इससे शादी हो जायेगी तो, मैं इसे राधा कहूंगा। राधा- किसन ! किसन- राधा ! आहा.. क्या जोड़ी है ! जब हमारे बच्चे होंगे तो, हम बच्चों समेत ग्वाले आयेंगे और यहाँ बच्चों के साथ दिनभर लुक्का- छिप्पी खेलेंगे... किसन के मन में अनगिनत खयाली पुलाव पकने लगे थे। 

      उसी समय एक मधुर आवाज ने उसकी स्वप्न- चेतना को भंग किया- "कहा था ना बसंती को मत घूरना। तू फिर से उसे घूर रहा है।" नीले सूट वाली घसियारिन ने कहा। 
      किसन को जैसे सांप सूंघ गया। उसके मुंह से कोई जवाब न निकला। कहे तो क्या कहे ! उसे इस नीले सूट वाली लड़की पर बड़ा गुस्सा आ रहा था। यह नीले सूट वाली वही लड़की थी, जो उस दिन लाल सूट पहनकर आई थी। 
"ला अब काली पठिया मुझे दे दे।" उसी लड़की ने कहा। 
"ना.. नहीं दूंगा।" किसन ने इनकार किया। 
तब तक अन्य दो लड़कियाँ भी आ गईं।

"देख तो बसंती, ये काली पठिया नहीं दे रहा है।" 
नीले सूट वाली लड़की ने शिकायती लहजे में कहा। 
"ऐ.. क्यों नहीं दे रहा रे। भूल गया क्या अपनी जबान ?" बसंती, जो पीला सूट पहने हुए थी, वह किसन के सामने आ खड़ी हुई।

"ना..नहीं भूला हूँ !"
"तो दे क्यों नहीं रहा फिर ?" बसंती ने फिर पूछा। 
"तू कहे तो काली पठिया क्या सारे मवेशी (जानवर) दे दूंगा, लेकिन इसे नहीं दूंगा।"
"अच्छा, मुझे क्यों देगा और इसे क्यों नहीं देगा ?"
"नहीं दूंगा इसे बस। तू ले जा।"
"क्यों फिर इसे क्यों नहीं देगा ?"
"नहीं दूंगा तो नहीं दूंगा बस, तू ले जा...जा।"
"अच्छा, ये बता मुझे क्यों देगा ?" बसंती जिद पर अड़ी रही। 
"क्योंकि मैं तुम्हारा गुनेहगार हूँ।"
"अच्छा ! किस बात का ?"
"प्यार करने का !"
"पागल ! मुझसे प्यार करेगा। शकल भी देखी है कभी आरसी (आइने) में ? भूत मशान कहीं का।" बसंती ने मुंह बनाया और चलती बनी। 
        दोनों घसियारिनें ही-ही-ही-ही कर खिलखिलाने लगीं।

"ठीक है। मैं भूत मशान ही ठैरा। पठिया तो लेती जा।" किसन उसे जाते देखकर बोला। 
"नहीं चाहिए तेरी पठिया। जैसा तू वैसी तेरी पठिया। अब से घूरेगा तो ददा (बड़े भाई) को शिकायत बोल दूंगी। वही लेगा तेरी खबर।" बसंती दोनों संङियों के साथ आगे बढ़ चुकी थी। 

       किसन ठगा-सा खड़ा था। वह एकटक उन्हें देखता रहा। इस आश में कि क्या पता बसंती एक बार पलटकर देख ले, लेकिन उसने मुड़कर एक बार भी पीछे नहीं देखा। किसन को अब पक्का यकीन हो गया कि बसंती सचमुच नाराज होकर चली गई है। 
                                        ***
    
       इंटर कॉलेज में इंटरवल हो रहा था। चारों ओर लड़के- लड़कियों का शोरगुल सुनाई दे रहा था। एक स्थान पर लड़के मुर्गाझपट खेल रहे थे, तो एक स्थान पर गुल्ली डंडा चल रहा था। इधर रास्ते पर कुछ लड़के अंठी (कंचे) खेल रहे थे। उधर कुछ लड़के चीड़ के पेड़ों के आसपास दौड़ रहे थे। शायद वे पकड़म- पकड़ाई खेल रहे थे। 

       कालेज की एक दुमंजिला बिल्डिंग के पीछे लड़कियों का समूह बैठकर गप्पें मार रहा था। उसी समूह में से दो लड़कियाँ बीच- बीच में बिल्डिंग की खिड़कियों पर उड़ती नजर डाल रही थीं। बिल्डिंग के एक कमरे की खिड़कियों से दो लड़के उन लड़कियों की ओर तांकझांक करते दिख रहे थे। उन्हें देखकर अन्य लड़कियां उन दो लड़कियों से कुछ कहतीं और अगले ही पलों में हंसी का फव्वारा फूटकर पूरे वातावरण को भिगा देता था। 

        कालेज की सबसे पुरानी बिल्डिंग से बीस कदम दूर एक सुनसान जगह थी। वहाँ पर मोरपंख का एक हरा- भरा पेड़ था। उस पेड़ के नीचे चार लड़के बैठे थे। उनमें से एक के हाथ में कापी और कलम थी। ऐसा लग रहा था, जैसे वे किसी गंभीर विषय पर विचार विमर्श कर रहे हैं। 
       "फटाफट बता यार फिर इंटरवल बंद हो जायेगा तो ?" कापी और कलम पकड़े लड़के ने शंका प्रकट की। 

       "ठीक है। सबसे ऊपर लिख ! जय छुरमल देवता !" चश्मा पहने पढ़ाकू टाइप के लड़के ने बताया। 
       कापी पकड़े लड़के ने कापी खोली और लिखना शुरू किया। 

       "अब लिख..., आशिक हूँ आपका, लाल सूट वाली का मत समझना। आपको अपने ईजा- बौज्यू की कसम, लेटर जरूर पढ़ना।" चश्मा पहने लड़के ने शायराना अंदाज में कहा।

        "वाह ! खाली थोड़े ना तू फस्ट आने वाला ठैरा यार। कमाल का शायर है तू ! बाप कसम, मैं प्रधानमंत्री होता तो तुझे भारत रत्न दिलवा देता। आशिक हूँ आपका.. लाल सूट वाली का मत समझना...वाह !" चश्मिश लड़के के बगल में बैठे एक नेता टाइप लड़के ने दाद दी। जब तक दाद पूरी होती, लिखने वाला लड़का शायरी को कापी में उतार चुका था। 

       "आगे लिख... तू ठैरी बसंती हवा। मैं मरीज ठैरा हार्ट का। तू ठैरी मेरी दवा। देखा तुझे जब पहली बार। 
हुआ मुझे अनाधुन प्यार। अब तेरे लिए अंधेरे में भी उजाले कर दूं। काली पठिया तो क्या बूढ़ा बल्द (बैल) भी तेरे हवाले कर दूं। बस एक बार तू हाँ कर दे, तो मैं ढुंङ-पाथर (पत्थर) को सोना बना दूंगा। क्रीम- पाउडर चुपड़- चुपड़कर काले मुख को गोरा बना दूंगा।.... लिख लिया रे बड़े बाबू ?" चश्मिश ने पूछा। 

      "हाँ दादी... गोरा बना दूंगा।" लिखने वाले लड़के ने पंक्तियाँ पूरी करते हुए जवाब दिया। 

       उसी समय टन-टन-टन की ध्वनि सुनाई दी। 
"इंटरवल बंद हो गया यार। मासाब मारेंगे तो नहीं ?" चौथे लड़के ने शंका जताई। यह चौथा लड़का कोई और नहीं बल्कि किसन था। 

     "अरे मशान ! शाहजादा सलीमवा भी बनना चाहता है और डरता भी है। गाना नहीं सुना का 'मुगले आजम' का- जब प्यार किया तो डरना क्या ! चल पढ़ाकू भैया आगे लिखाओ..." नेता टाइप लड़के ने ऐसा कहकर पिच्च से गुटखा थूका। 

     "अब बीच में एक दिल बना और एक तीर खींच। एक तरफ लिख बी और दूसरी तरफ भी लिख बी।" चश्मिश ने बताया। 

     "अरे पढ़ाकू महाराज। ये एक तरफ बी, दूसरी तरफ बी क्या लिखा रहे हो भाई ? सीधे बीबी क्यों नहीं लिखा मारते ?" नेता टाइप लड़के ने सवाल किया। 
    "अरे गोबर भैया, ये अंग्रेजी का बी है। एक बी का मतलब है बसंती और दूसरे का मतलब है बसंत !" चश्मिश ने बात स्पष्ट की। 
     "अबे ये बसंत कौन है भाया ? इस हिसाब से तो यहाँ पर के ( K) होना चाहिए ?" गोबर ने बात तो ठीक ही कही थी। 

       "अरे गोबर भैया, ये मशान भैया भाभी को अपना नाम बसंत बता दिये हैं। इसलिए बी (B) लिखना पड़ रहा ठैरा।" चश्मिश ने जवाब दिया। 
      "अच्छा ! तो ये वाली बात ठैरी ! ठीक है आगे लिखा फिर..!" गोबर ने कहा। 

       "दिल के नीचे लिख.... ये दिल नहीं मेरी जान है... अगर मिलना चाहो तो आ जाना गांधी बाजार.. 
वहाँ मेरे चाचा की दुकान है... शाम सात बजे, करेंगे गांधी बजार में मजे... आई लव यू...तेरे दिल का राजा... तेरा मजनू... मशान.. बी (B)।" चश्मिश ने लेटर खतम किया। 
      पत्र लिखने वाले ने भी पत्र लिखकर मोड़ा और किसन के हाथ में थमा दिया। 

     "अरे मशान भैया, एक चीज रह गई। लाओ लेटर यहाँ लाओ जरा।" गोबर ने लेटर मांगा। 
      किसन ने लेटर गोबर के हाथ में थमा दिया और गोबर ने लेटर को होठों पर लगाकर उसका एक चुंबन लिया और बोला- "बस, यही चीज रह गई थी। अब इस लेटर में गोबर भैया का प्यार भी समा गया है। अब देख लेटर पढ़ते ही बसंती भाभी दौड़कर आयेगी और तुझे शोले फिलम का धर्मेंदर बना लेगी।"

      चश्मिश और बड़े बाबू ने ठहाका लगाया, लेकिन किसन को गोबर का यह व्यवहार बड़ा बुरा लगा लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। लेटर पकड़ा और हल्का सा-मुस्कुरा दिया- "लेकिन मैं इसे दूंगा किसे ?"

       "अरे बताया ना ! छुट्टी के टैम रेखा को दे देना। उसी के पड़ोस में रहती है। दे देगी बसंती को।.. अब चलो फटाफट नहीं तो वो जालिम रावण हमारा भूत भगा देगा...।" बड़े बाबू उपाधि धारक लड़के के ऐसा कहते ही सभी तेजी से कालेज की ओर दौड़ पड़े।
                                       ***

       मंगलवार का दिन था और किसन को पूरा यकीन था कि आज उनके जीवन में कुछ मंगल होगा। उसे बड़े बाबू की हैंडराइटिंग और चश्मिश की बुद्धि पर उतना ही यकीन था, जितना एक किसान को जलवायु और मौसम पर होता है। वह लेटर का जवाब पाने के लिए इतना बेताब था कि इंटरवल में छुट्टी लेकर सीधे गांधी बाजार जाने की योजना बना चुका था, लेकिन उसकी योजना तब धरी- की- धरी रह गई जब रेखा ने कालेज आते ही अपनी हिंदी की किताब उसके हाथ में धर दी। 

        किताब खोलते ही उसके भीतर उसे एक कागज का मोड़ा हुआ पुर्जा मिला। किसन ने पुर्जे को झट जेब के हवाले किया और लघुशंका करने का बहाना बना चुपके से कालेज की पुस्तकालय वाली बिल्डिंग के पीछे जाकर पुर्जे को पढ़ने लगा-

     "मेरे प्यारे मशान ! तेरे वियोग में छटपटा रहे मेरे परान (प्राण)। वैसे मुझे नहीं लाना था बजार से समान। इसलिए नहीं आ रही तेरे चच्चा की दुकान। अब कुछ दिन घर पर कपड़े सिलूंगी। इतवार को जरूर तुझसे जंगल में मिलूंगी। आई.....तेरे दिल की ... तेरी... चुड़ैल... बी (B)।"

     लेटर के अंतिम शब्द उसे कुछ अजीब-से लगे। वह उन पर विचार करता तब तक उसे गोबर की आवाज सुनाई दी- "अबे मशानवा लघुशंका कर रहा है या दीर्घशंका ! आता क्यों नहीं है बे ? प्रार्थना का टैम (समय) हो रहा है।" 
       "आ गया दादी आ गया !" ऐसा कहकर उसने पुर्जे को कई हिस्सों में फाड़ा और उन्हें वहीं फैंककर पेंट की जिप ऊपर खींचता हुआ आया।

       उसने मन में निश्चय कर लिया था कि वह इस लेटर की बात अपने किसी दगड़ू ( दोस्त ) को नहीं बतायेगा। गोबर, चश्मिश और बड़े बाबू जब पूछेंगे, तो उनसे कह देगा कि बसंती का कोई जवाब नहीं आया और बिना किसी को खबर लगे उसकी मुहब्बत की ट्रेन पटरी पर दौड़ने लगेगी। 
         
      उस दिन रात भर किसन को नींद नहीं आई। सावन के मेघों की तरह उसके मन में अनेक खयाल उमड़ने- घुमड़ने लगे। काश, अगर उसने लेटर नहीं फाड़ा होता तो वह उस लेटर को अभी सीने से लगाकर सोता ! पहले प्यार का पहला लेटर भी कोई फाड़ता है ! मैं भी सचमुच कितना मंदबुद्धि हूँ ! ईजा ठीक ही तो कहती है ! मशान जैसी बुद्धि हो गई है मेरी ! अच्छा अब जो हुआ सो हुआ, लेकिन बसंती ने लिखा था कि इतवार को जरूर मिलूंगी मतलब बसंती मुझसे उस दिन नाराज नहीं हुई थी। नाराज होने का नाटक कर रही थी। 

       यार ये लड़कियाँ भी ना..नाटक करने में माहिर होती हैं, लेकिन किशन के सामने किसी का नाटक चला है ! नहीं, बसंती को पटाने में चश्मिश का भी बड़ा रौल है। साले ने कविता स्टाइल में लेटर नहीं लिखवाया होता तो, शायद ही बसंती का जवाब आता ! लेटर जिसने भी लिखा, लिखवाया हो। अपना तो काम बन गया। अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता। अब किसी तरह इतवार जल्दी आ जाता तो मजा आ जाता, बाय गाड !

        विचार आते भी- जाते भी, लेकिन किसन को नींद नहीं आई। उसने लाइट आन की और बिछे गद्दे के नीचे दायाँ हाथ डाला। अब उसके हाथ में एक किताब थी, जिसका शीर्षक था- "सुंदर लड़की कैसे पटाएं" और इस किताब के लेखक थे- "लब गुरू मुंबई वाले।" किसन को यह किताब गोबर ने दी थी। गोबर का कहना था कि यह किताब उसे बहुत खोज करने के बाद मिली है। आधुनिक युवाओं के लिए यह बाइबिल, कुरान, गीता से किसी भी मामले में कम नहीं है। इस किताब को पढ़ने से प्यार में पंद्रह-सोलह बार असफल प्रेमियों ने भी सफलता पाई है। 

        किसन बड़ी तल्लीनता से बिस्तर पर लेटे- लेटे इस आधुनिक पवित्र ग्रंथ का अध्ययन करने लगा था- "सुंदर लड़की पटाने से पहले ध्यान रखें कि आपकी जेब टाइट रहे। यदि आपकी जेब टाइट न हो तो भी आपको निराश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जेब टाइट होने से भी बड़ा हथियार है प्रशंसा। आप सुंदर लड़की की खूब प्रशंसा करें। फिर देखिए जनाब वह लड़की चंद मिनटों में आपकी बांहों में कैद होगी...!"
                                          ***

        बैलबाटम पैंट और गुलाबी शर्ट पहना हुआ एक युवक गाय- बकरियों के पीछे-पीछे चला जा रहा था। उसके एक हाथ में एक भ्योला का सिपका और दूसरे हाथ में एक कागज था। कागज में उसने कुछ पंक्तियाँ लिखी हुईं थीं, जिन्हें वह बड़बड़ाता हुआ जा रहा था-
"सबसे महंगी बाइक, बाइक से महंगी कार। 
अरी ओ बसंती, मुझे तुझसे हुआ प्यार।
भूपाल के पापा, पापा का बड़ा टब। 
मेरी प्यारी बसंती, मैं करूँ तुझे लब...।"

       कागज में ध्यान होने के कारण उस युवक का एक पैर फिसला और वह धम्म से कीचड़ में जा गिरा। उसकी नई कमीज और पैंट में कीचड़ के धब्बे फैल गये- "धत्त तेरी की ! इसी को कहते हैं सर मुड़ाते ओले पड़ना।" और टाइम होता तो वह अपना गुस्सा बैलों के पीठ में एक-दो सिपके जमाकर जरूर उतारता, लेकिन अभी उस पर प्यार का सुरूर चढ़ा हुआ था। इसीलिए उसके मुंह से एक शायरी निकल पड़ी-
"बसंती तेरे प्यार में, 
बसंत रड़ा (फिसला) कच्यार (कीचड़) में।"

         फिर उसने बड़े ही धैर्य से कीचड़ के धब्बे रूमाल से साफ किये और उसके बाद हुर-हुर-हुर्र करता हुआ आगे बढ़ गया। 

      यह युवक कोई और नहीं बल्कि किसन था, जो ग्वाले जा रहा था। बसंती से मिलने का दिन था। इसीलिए वह नये कपड़े पहनकर आया था। गधेरे को पार करते ही किसन ने पहाड़ पर चढ़ना शुरू किया। कुछ चढ़ाई चढ़ने के उपरांत उसने गाय- बैलों को ढलान पर ही छोड़ दिया और स्वयं तेजी से पहाड़ की चोटी पर जा पहुंचा। चोटी पर पहुंचते ही उसे किसी युवती का मधुर गीत सुनाई दिया-

"जाड़ा काटा निङालू का, टुका में हरिया। 
एक तू छै एक मैं छू, माया में मरिया।"

( निङालू को जड़ से काटा, लेकिन उसका ऊपरी हिस्सा तो हरा ही रहा। ठीक वैसे ही तू और मैं भी दोनों प्रेम में डूबे हुए हैं।) 
           आहा ! यह आवाज तो बसंती की है। कितनी मधुर आवाज में न्यौली (कुमाऊँ का एक लोकगीत) गा रही है। किसन ने आसपास देखा, तो उसे दूर-दूर तक कोई नहीं दिखाई दिया। उसका उतावला हृदय बल्लियों उछलने लगा। 
"तू अकेली आई है ?" वह पूछे बिना न रह पाया। 
"हाँ, तूने जो बुलाया। कैसे न आती।"
"अच्छा किया। वैसे भी तेरी संङियां बड़ी अजीब हैं, लेकिन तू नहीं है। तू तो भौत (बहुत) प्यारी है।"
"सच ?"
"हाँ, और नहीं तो क्या ! तू तो भौत-भौत-भौत प्यारी है।"
"चुप !"
"क्या चुप ! इतनी प्यारी कि तुझे देखते ही मुझे कुछ-कुछ करने का मन करता है।"
         किसन के ऐसा कहते ही हल्की खिक् की आवाज आती है। 

"उधर से कोई हंसा ?" किसन ने पूछा ? 
"ना तो, मुझे तो कोई आवाज नहीं सुनाई दी। अच्छा ये बता कैसा कुछ-कुछ करने का मन करता है ?" बसंती बोली। 
"शरम आ रही है।" किसन ने कहा। 
"मुझसे भी क्या शरमा रहा है। बता ना !" बसंती ने जिद की। 
"वही जो पिचकर में हीरो-हीरोइन पेड़ के पीछे जाकर करते हैं।"
           किसन का इतना कहना था कि झाड़ियों से हंसती हुई दो लड़कियाँ बाहर आ कूदीं। ये बसंती की संङियां थीं। 

"हुस्स.. ये मशान तो बड़ा रोमांटिक निकला रे।" एक संङी बोली। 
"अच्छा हुआ आ गई तुम। वरना इसके इरादे तो मुझे दुर्योधन से कम भले नहीं लग रहे थे।" बसंती ने व्यंग्य किया।
"अब आ गया है तो.. सुन ! बसंती एक फौजी से प्यार करती है। क्या तू बन सकता है फौजी ? फौजी के साथ हमारी संङी ऐश करेगी। तू क्या देगा हमारी संङी को ! तेरी तो शकल भी मशान जैसी है। अगर हमारी संङी से प्यार करता है तो फौजी बनके दिखा। तब सोचेगी तेरे बारे में वो। क्यों संङी ?" दूसरी संङी ने बसंती से पूछा। 

"हाँ, और नहीं तो क्या। जब फौजी बन जायेगा तो बात करना.. तब सोचूंगी। तब तक अपने प्यार को गाय की तरह खूंटे में बांधकर रख। चलो री यहाँ से... और सुन आइंदा से लेटर लिखा ना तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।" ऐसा कहकर तीनों संङियां पैर पटकती हुई चल दीं और किसन बुत बना खड़ा रहा।

       क्या सोचा था और क्या हो गया ! बसंती और उसकी संङियों के व्यंग्य बाण उसके हृदय में नश्तर की तरह चुभ रहे थे। वह छटपटाकर रह गया। उसने मन में निश्चय कर लिया था कि अब वह बसंती से मिलने तभी जायेगा जब वह फौज में भर्ती हो जायेगा। 
                                     ***

        दो साल बीत गए हैं। किसन अब फौज में भर्ती हो चुका है। उसे फौज में भर्ती हुए पूरा एक साल हो गया है। उसकी ड्यूटी कश्मीर के बारामुला सेक्टर में लगी है। उसके घर में उसकी चिट्ठी आई है और उसके ईजा, बौज्यू और दीदी तीनों खुश हैं, क्योंकि चिट्ठी में उसने लिखा है कि वह जल्द ही छुट्टी लेकर घर आयेगा और दीदी का विवाह धूमधाम से करायेगा। 

      उधर बसंती ने शहर के डिग्री कालेज से बीए पास कर लिया था और अब उसके पिता उसके लिए एक योग्य बर की तलाश में थे। बसंती को भी पता चल गया था कि बसंत फौज में भर्ती हो गया है। वह अब जब भी किसन के साथ किए अपने व्यवहार को याद करती है, तो उसे बड़ा पछतावा होता है, हालांकि उसे बसंत का असली नाम अब मालूम पड़ चुका था। 

        बसंती कुछेक बार अपनी संङियों से कह भी चुकी है- "यार, वो किसन जैसा भी था। दिल का बड़ा नेक था। बिचारे को कम-से-कम हमने काला मशान तो नहीं ही कहना चाहिए था। जब वह छुट्टी घर आयेगा तो एक बार जरूर उसके घर जाकर उससे माफी मांग लूंगी।"
      उसकी संङियां भी उसका समर्थन करती हैं और कहती हैं- "बिचारे को हमने खूब खरी-खोटी सुनाई, लेकिन उसने कभी चूं तक नहीं की। हम सब भी तेरे साथ उसके घर चलेंगी।"

      असल में बसंती को अब किसन से लगाव- सा हो गया था। उस दिन तो उसने किसन से पीछा छुड़ाने के लिए संङियों से झूठ-मूठ में कहलवा दिया था कि वह किसी फौजी से प्यार करती है, किंतु ऐसा कुछ था नहीं। वह अब किसन को मन-ही-मन चाहने लगी थी। वो कहते हैं ना कि किसी से नफरत करो, लेकिन उतनी ही जितनी दिल को रास आये, अन्यथा नफरत को प्यार में बदलते देर नहीं लगती। 

       उस दिन आसमान में हल्के- हल्के बादल छाये हुए थे। बसंती अपनी संङियों के साथ गांधी बाजार गई हुई थी। उसने देखा कि फौजियों का समूह 'भारत माता की- जै' के नारे लगाता हुआ चला आ रहा है। कुछ फौजियों ने तिरंगे से ढका एक बगस (बक्सा) जैसा अपने कंधे में रखा हुआ था। उन फौजियों के पीछे-पीछे लोगों का हुजूम भी नारे लगाता हुआ आगे बढ़ रहा था। उसने अंदाजा लगाया और फिर अपने अंदाज को पुख्ता करने के लिए एक व्यक्ति से पूछा- "चचा..ये फौजी क्या ले जा रहे हैं ?"
"बेटी, ये ताबूत है। समीप के गाँव मालीखेत का कोई फौजी आतंकवादियों की गोलाबारी में शहीद हो गया है।" 
        
       मालीखेत नाम सुनकर बसंती का माथा ठनका। कहीं वह किसन तो नहीं ! नहीं, ऐसा नहीं हो सकता ! ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता !! उसने अपनी संङियों से घर चलने के लिए कहा। घर जाकर जब उसने अपने बौज्यू से पूछा, तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। वह सचमुच किसन ही था। 

        किसन की शहीदी के कुछ दिनों बाद मालीखेत गाँव के ग्वालों को गांव- वालों से यह कहते सुना गया- "बजाणी धुरा के जंगलों में एक लड़की रोज घास काटने आती है और वहाँ बैठे किसी का इंतजार करती रहती है। उस लड़की को काली बकरी से बहुत प्यार है। एक काली बकरी को गोद में बिठाये वह घंटों रोती रहती है।"

                              *** समाप्त ***


डॉ० पवनेश ठकुराठी की अन्य किताबें

मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

बिल्कुल सजीव चित्रण किया है सर आपने 👌 आप मुझे भी फालो करके। मेरी कहानी पढ़कर अपनी समीक्षा जरूर दें 🙏

12 अगस्त 2023

10
रचनाएँ
एक फौजी की प्रेम कहानी
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'एक फौजी की प्रेम कहानी' प्रेम कहानी संग्रह है। इस कहानी संग्रह में प्रेम के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का मार्मिक चित्रण हुआ है। इस कहानी संग्रह में कुल 10 प्रेम कहानियाँ हैं। ये प्रेम कहानियाँ क्रमशः हमसाया, नीली साड़ी वाला चांद, एक असफल प्रेमी की प्रेमकथा, काउंटर नंबर-5, चांद, आकाश और सूरजमुखी, एक फौजी की प्रेम कहानी, एक लड़की भीगी-भागी सी, एक पहाड़ी युवक की प्रेमकथा, उम्मीद और एक बिल्ले की प्रेमकथा हैं। शीर्षक कहानी 'एक फौजी की प्रेम कहानी' गाथा द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तर की प्रेम कहानी प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त कर चुकी है। यह एक फौजी के देशप्रेम की कहानी है। इस कहानी संग्रह में एक असफल प्रेमी की प्रेमकथा और एक बिल्ले की प्रेमकथा दो हास्य-व्यंग्य से परिपूर्ण प्रेम कहानियाँ भी संगृहीत हैं। इस संग्रह की कहानियाँ कैसी हैं ? अपने विचार अवश्य व्यक्त कीजिएगा। हार्दिक धन्यवाद।
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1. हमसाया

24 जून 2023
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"तुम ! यहाँ भी।""हाँ, बिल्कुल ! जहाँ तुम, वहाँ मैं।""अच्छा, ऐसा है क्या ?"" बिल्कुल, तुम्हारा हमसाया जो हूँ।""चुप पागल !"और ऐसा कहते ही वह खिल उठी। सूरजमुखी नहीं थी वह और न था वह सूरज...

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2. नीली साड़ी वाला चाँद

24 जून 2023
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जब मैं छोटा बच्चा था तो रात को मां से चांद दिखाने की जिद किया करता था। माँ मना करती तो मैं रोने लगता था। मजबूर होकर माँ को चांद दिखाने मुझे छत पर ले जाना पड़ता था...

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3.एक असफल प्रेमी की प्रेमकथा

24 जून 2023
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आज मैं पूरे बत्तीस साल का हो गया हूँ। साथ-ही- साथ एक अकलमंद और सयाना लौंडा भी। इसलिए आज मैं पूरे होशो-हवास में यह निर्णय ले रहा हूँ कि आज के बाद मैं किसी कुंवारी लड़की की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखूंग।

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4. काउंटर नंबर 5

25 जून 2023
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"आप, आप तो पिछली बार भी आये थे।""जी मैंम।""हां,तभी तो। कुछ याद जैसा आ रहा है।"थोड़ी देर चुप्पी...

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5. चांद, आकाश और सूरजमुखी

3 जुलाई 2023
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वियोग श्रृंगार की मार्मिक प्रेमकथा....

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6. एक फौजी की प्रेम कहानी

7 अगस्त 2023
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मुझे भरोसा है अपने ईष्ट देव पर। वो एक दिन जरूर वापस आयेंगे। कुमाऊँ रेजिमेंट में भर्ती हुए अभी उनको पूरे ढाई साल भी नहीं हुए हैं और आर्मी वाले कहते हैं कि गायब हो गये...

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7. एक लड़की भीगी-भागी सी

9 अगस्त 2023
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हजारों-लाखों बूंदें नहीं भिगा पाईं मुझे, लेकिन उसके पलकों से गिरी एक बूंद ने पूरी तरह भिगा दिया था मुझे....

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8. एक पहाड़ी युवक की प्रेमकथा

10 अगस्त 2023
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उसका चेहरा श्यामवर्ण है, लेकिन जब वह आती है; तो उसे लगता है कि वह गौरवर्ण हुआ जा रहा है। उसकी आंखें छोटे आकार की हैं, लेकिन जब वह आती है; तो उसे लगता है कि उसकी आंखें बड़ी ह

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9. उम्मीद

11 अगस्त 2023
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बरसों से सहेजा ख्वाब,सूखे पत्ते-सा उड़ जायेगा। सोचा नहीं था, इक आंधी के झौंके-से,दो हंसों का जोड़ा बिछुड़ जायेगा...! आह ! इंदु.. तुम भी ना ! ऐसे, ऐसे कौन बिछुड़ता

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10. एक बिल्ले की प्रेमकथा

12 अगस्त 2023
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"म्याऊँ... म्याऊँ.... बिल्लो रानी कहो तो अभी जान दे दूं...."- डब्बू बिल्ला पूसी बिल्ली को मनाने के लिए यह गीत गा रहा था, लेकिन पूसी पर गीत का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था...

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