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बेटी - कुल का दीपक

20 मई 2017

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लगाकर मेहेंदी हाँथों में, वो पंछी उड़ गई

इस द्वार से उस द्वार तक, वो रोती चली गई

बाप सिसकता रहा, गले से लगाता रहा

माँ को अकेला छोड़, वो पिया के घर चली गई

भाई आज हार सा गया, आँसू बहाने लगा

वो मुसाफ़िर, अपनी मंजिल की ओर चली गई

घर सूना हुआ,आँगन शांत हो गया

उसके पायल की हल-चल अब कहीं और चली गई

खत वो लिखती रही, रोटी पोती रही

किसी साथी की याद में, माँ को वो याद आती रही

अब वो टूट सा गया, रौनक मिट सा गया

किसी नट-खट की याद में, बाप को वो याद आती रही

क्या करे, किससे लड़े, अब वो सोचता है

भाई को बचपन की वो यादें सदा याद आती रही

इनायत लेने अब वो गर्मियों में आती है

ज्यादा तो नहीं, बस एक मेहमान बन रह जाती है

पेहले रिश्ता कुछ अलग था, हर बात बताती थी

उस घर के इज्ज़त के खातिर, अब माँ से बात छुपाती है

हर बार वो आकर खुशियाँ बिखेर देती है

मगर बिदाई के वक्त, हर बार वो बाप का सीना तोड़ देती है

सिखो कुछ साहब, बेटी चिराग होती है

घर में बेटी से बढ़कर कोई चीज़ नहीं होती है..!!

आलोक अग्रवाल की अन्य किताबें

रेणु

रेणु

एक भावपूर्ण सत्य से साक्षात्कार करती ये रचना पढ़कर मन नम हो गया -- हर बेटी के जीवन की यही सच्चाई है -- आलोक जी आपकी रचना बड़ी हृदय स्पर्शी बन पडी है -- बहुत शुभकामना --

21 मई 2017

नृपेंद्र कुमार शर्मा

नृपेंद्र कुमार शर्मा

सच बेटियां अनमोल होती हैं , बहुत भावुक कर गई आपकी रचना।

21 मई 2017

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माँ की याद

19 मई 2017
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इस अंजान से शहर में माँ तेरी याद आती तो है...लड़ने के लिए लोग कम नहीं मगर बेहना तेरी याद आती तो है...कितनी भी कर लूँ कोशिश मैं भूलने कि मगर...माँ, मुझे घर की याद आती तो है..... सात समंदर पार भेजकर क्यूँ मुझे निराश किया...ना जाने मैंने ऐसा भी है क्या अपराध किया...गुसत

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बेटी - कुल का दीपक

20 मई 2017
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लगाकर मेहेंदी हाँथों में, वो पंछी उड़ गईइस द्वार से उस द्वार तक, वो रोती चली गई बाप सिसकता रहा, गले से लगाता रहा माँ को अकेला छोड़, वो पिया के घर चली गई भाई आज हार सा गया, आँसू बहाने लगा वो मुसाफ़िर, अपनी मंजिल की ओर चली गई घर सूना हुआ,आँगन शांत हो गया उसके पायल

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वो आखरी साँझ

22 मई 2017
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एक मनुष्य के जीवन अंतराल में ऐसा वक्त आ सकता है जब उसे किसी रिश्ते को ना चाहते हुए भी बीच में ही तोड़ना पड़ता है. और फिर वो व्यक्ति उस सफर के कुछ पलों को याद करता है. इस कविता में मैंने वो दृश्य को आपके समक्ष लाने की कोशिश क

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एक दृश्य

3 जून 2017
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ये हमारे साथ कई बार होता है की कोई चेहरा आँखों में यूँ समा जाता है की फिर उसे हम भूल नहीं पाते हैं. ये कविता शायद उसी बात को दर्शा रही है. गांव में शायद ये दृश्य ज्यादा सही प्रमाणित होता है. आशा करता हूँ आपको, मेरी ये रचना, पसंद आएगी.

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