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चीर हरण दमन

5 जून 2022

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कांप गए सब वायवीय, कांपी धरती पाताल गगन l    
खींच रहे थे दुष्ट हाथ, कांपे कुरुओ के विचलित मन ll
भीष्म, द्रोण, कृप नर से नर, अंधों के अंधे ठगे रहे l
वे बलशाली, वे धनुधारी, वे समय चक्र को रहे सहे ll
विकराल ज्वाल की लपट सदृश वे देख रहे बढ़ चली चीर l
नर बैठे जितने सभा मध्य, उर बीच तड़पती रही पीर ll
बढ़ती ही जाती चीर वस्त्र मानो उगता नभ वीर उदय l
हो रहा प्रबलतम तेज-पुंज, अब ह्रदय सभी के नहीं  अभय
चहुँ ओर प्रसारित चीर अग्नि, ब्रम्हांड पूर्ण हो गया अंत l
वीरों के भुज बल का प्रवाह, हो गया चूर्ण, हो गया अंत ll
वह चीर धरा विस्तार गगन, वह कहाँ चली न ओर-छोर l
वह सागर में विस्तार मगन, वह कहाँ छली न ओर-छोर ll
मन में फैली, मन में व्यापक, मन के अंतर्गत भेद चली l
भीषण रौरव कर तीव्र चमक, मन में पिघलाती खेद चली l
आँखों के सम्मुख चीर-चीर, बस चीर, नहीं है अंग प्रकट l
लो देखो! पूरी सभा ढकी, वस्त्रों में केवल वस्त्र विकट ll
सिर झुके हीन बल बाहु, नहीं कर सके कर्म कुछ निर्बल l
बलशाली थे सब वीर वहां वे  मनुज कहाँ उनके थे बल ll
काल-काल-विकराल-दंड-कोदंड प्रलय अति भारी l
यह मूढ़ सभा अन्याय दुष्ट अविलम्ब चलेगी आरी ll
यह अग्नि सुता यह तेज़ पुंज लपटें कराल कुलघालक l
कुरु वंश मूल जड़-चेतन तक हो नष्ट कौन प्रतिपालक ll
यह चीर हरण अधिकार कौन किसका प्रवाह मरता है l
हे दुर्योधन, हे दुःशाषन, अब प्राण काल हरता है ll
यह गगन धरा, पाताल लोक, नक्षत्र लोक भी साक्षी l
यह पाप कर्म, अन्याय धर्म विपरीत महत्वाकाक्षी ll
चेतन-अवचेतन, जीव-जगत, सब प्राण हीन अवशेषी l
ले देख स्वयं नर सभी यहाँ, अपने तन में जड़ शेषी ll
सब खड़े हुए सब जड़े हुए, सब मूल विकारो से तपते l
सब नग्न, वस्त्र से हीन मनुज, लज्जा से अपने को तकते l
रे! ठहर दुःशासन, धर्म हीन दुर्योधन बल से हीन नीच l
क्या नहीं धसेगी धरा? यहाँ केवल है केवल कीच-कीच ll
यह धरा ढकी, है ढका गगन पाताल लोक सुर लोक ढका l
यह विश्व थका, ब्रम्हांड थका, अविराम चेतना धाम थका l
यह धरा यदि हो नग्न गगन के प्राण ढके उसको तन कर l
हो निर्मल सरिता सलिल बहेगे प्रस्तर से बह कर छन कर ll
यह सभा हुई सम्मान हीन, सम्मान योग्यता पालक थे l
अब रहे किसी का मान नहीं, जो स्वयं-स्वयं के चालक थे l
रे देख! दुःशासन दुर्योधन बल तेरा कितना कायर है l
अब देख संभल जा चीर यही इसके सम्मुख तू कातर है ll
अब प्राण नहीं, बस प्राणहीन, लोथो पर लोथ गिरेगे अब l
जल जैसे शोणित मानव जन, पानी-पानी बरसेंगे अब ll
सुन रे ! दुर्योधन नारी का अपमान किया तूने छल से l
अब वही अग्नि-ज्वाला बनकर, कर देगी भस्म तुझे बल से
अब तन ले चाहे तू जितना, बस काल तेरा आने वाला l
है काल-सर्प, विकराल तुझे, बस क्षण भर में खाने वाला ll
बस, रोक दुःशासन, देख वहां वह पीतवर्ण अंगरक्षक है l
जल जायेगा हो भस्म, नराधम वह तेरा अब भक्षक है ll
ले संभल धर्म का त्याग किया, यह पीत वर्ण अब आएगा l
जो तनिक इसे स्पर्श किया, तू काल-गाल में जायेगा ll
रुक गए हाथ बढ़ गया तेज़, वह दिव्य पुंज जाज्वल्यमान 
सब बंद हुए जो खुले नेत्र क्षण भर में ही घट गया मान ll
वस्त्रों में वस्त्र ढकें सबको, ढक गयी द्रौपदी क्षण भर में l
श्रद्धा से नत हो गयी सभा रुक गयी चीर उसके कर में ll
कह रहे कृष्ण सुन कान लगा अब हुआ कर्म का पतन यहाँ
यदि मिला नहीं कुछ दंड इन्हे तो हुआ धर्म का पतन यहाँ l
कह रहा सुनो मैं धर्म त्याग जो कर अधर्म विष पालेगा l
युग चाहे जो हो कृष्ण रूप आ उसके प्राण निकालेगा ll
इसलिए सुनो ही सभा जनों नारी मानव की शोभा है l
इस पर ही तुम सब गर्व करो, यह नहीं किसी की लोभा है ll
वह चाहे जो भी रूप धरे, उसका ही है सम्मान-मान l
सब प्रगति वहीं थम जाएगी, यदि हो जाए उसका अवसान ll
नत-मस्तक हो कृशकाय कांत सब वंदन करते थे उनका l
तब शांत-चित्त हो गयी सृष्टि अभिन्दन करते थे उनका ll
 
                                          -अजय श्रीवास्तव 'विकल'

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रचनाएँ
खद्योत : कविता संग्रह l
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इस काव्य संग्रह में विभिन्न प्रकार की कविताओं का संग्रह किया गया है l मानव की विभिन्न प्रकार की अनुभूतियों, राष्ट्र प्रेम, जीवन संघर्ष, प्रेम भावना, इसी प्रकार की अन्यतम विचारों का प्रस्फुटन मनुष्य को जीवंत करने के लिए और उसकी भावनाओं को सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए किया गया l आप सभी इनको पढ़ें आनन्द लें और अपडेट करते रहें l धन्यवाद अजय श्रीवास्तव 'विकल'
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खद्योत

4 जून 2022
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प्रकाश का चितेरा l अंधकार का मित्रवत वैरी l तारों की आँखों का तारा,  नीले नभ के नीचे विवश प्रहरी l अधिकारी है अपनी चमक का l अंधकार की कालिमा का नहीं,  निशा के आंचल में टाँक देता है,  सितारों के मोती

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राष्ट्र प्रेम

4 जून 2022
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देश हित में प्राण का बलिदान देना चाहता हूँ l कुछ न हो फिर भी उसे सम्मान देना चाहता हूँ ll रक्त रंजित जो हुए, उन देशभक्तों को नमन l त्यागकर जो तन गए, उन वीर संतो को नमन ll देश की माटी तिलक है, वेश है

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पर्यावरण

4 जून 2022
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पर्यावरण दिवस पर एक कविता  ************************** स्वर्ग सी पावन धरा थी, शुद्ध था अन्तःकरण l तितलियों के रंग जैसा, स्वच्छ था पर्यावरण ll    दूध की नदियाँ बही थीं, जल सुधा का पान था l    पक्षियों

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महाराणा प्रताप

4 जून 2022
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वीरों से बढ़कर वीर व्रती, वह सिंह रूप बन आया l मेवाड़ वीर अद्भुत विराट, रिपुदमन सिंह कहलाया ll सिंहनाद कर उठा बजी रणभेरी युद्ध समर में l तलवारों की खनक बीच, नभ चपला रहे भंवर में ll कण-कण में रहा प्रताप

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फूलों को न तोड़ो

4 जून 2022
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फूलों की है बात निराली, जग-मग रंग-बिरंगे l मिलजुल कर रहते हैं सारे, कभी न करते दंगे ll सोचो कितने मनमोहक हैं, कोमल मन के सच्चे l टूट जाएं पर आह न भरते, हमसे-तुमसे अच्छे ll उनको नहीं मरोड़ो l फूलों को

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क्या रहस्य है समझाते ?

4 जून 2022
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क्या रहस्य है समझाते? रजनी का आंचल है भीगा, संध्या की आँखें हैं नम l धरा विकल है, गगन वियोगी, किंचित मन में हतप्रभ हम ll नयनों की भाषा में खोकर, छिपकर हमको बहलाते l क्या रहस्य है समझाते? निकट प्रलय भ

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राम जग के राम हैं l

4 जून 2022
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राम जग के राम हैं, आधार केवल राम हैं l दीन-दुखियों के लिए, संसार केवल राम हैं ll देश हित में देश का, शासन सदा चलता रहे l भय न हो जनतंत्र में, निर्भय ह्रदय पलता रहे ll न्याय हो निष्पक्ष जन में, स्वस्

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चीर हरण दमन

5 जून 2022
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कांप गए सब वायवीय, कांपी धरती पाताल गगन l     खींच रहे थे दुष्ट हाथ, कांपे कुरुओ के विचलित मन ll भीष्म, द्रोण, कृप नर से नर, अंधों के अंधे ठगे रहे l वे बलशाली, वे धनुधारी, वे समय चक्र को रहे सहे ll

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पता नहीं तुम कैसे जीते?

5 जून 2022
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पता नहीं तुम कैसे जीते l मैंने तो  धरती को  नापा l और गगन को भी हैं भांपा ll     निसि-बासर जाग्रत हो करके l     सुरभित कलियों को खो करके ll           तुमको देखा तुम पहले थे l                  बीत गए

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कुछ शब्द सुमन

5 जून 2022
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  विडंबना ******** प्रश्नों के उत्तर का, मैं व्यास खोजता रहा l जीवन के स्वप्नों का, प्रवास खोजता रहा ll नित्य नव अति चेतना होती प्रफुल्लित l राग-वाणी संकलित अविरल प्रबल नित ll     नयन कण में बिम्ब का

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आँसू

5 जून 2022
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आंसू मन के मीत हमारे, आंसू मन की परिभाषा l आंसू दुःख के गीत हमारे, आंसू मन की है भाषा ll आंसू मस्तक की स्मृतियां, आंसू दृग के पास रहें l विकल वेदना सहते-सहते, आंसू बहते और बहेें ll आँखों को प्यारे है

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ह्रदय

5 जून 2022
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ह्रदय में नित भाव सरिता, सरल-रस सी बह रही है l मन अकिंचन बंध गया है, चेतना  यह  कह रही है ll तुम प्रणय के गीत गाकर, ह्रदय में  अभिसार दो l यदि भुजाओं में प्रलय हो, वीर रस का प्यार दो ll हँस रही पीड़ा

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विधु

5 जून 2022
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विधु गगन में, सौम्य तन-मन प्रणय शीतल सार है l कालिमा काजल विभा-तन श्वेत रस मय  धार है ll हो गया उद्विग्न अविरल मन विकल बिन प्रेयसी के l व्यग्र अलकें चंद्र आभा मन पुलक सँग श्रेयसी के ll ज्यों    गगन  

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श्रीमदभागवतगीता

5 जून 2022
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कर्म है प्रारब्ध जन का, कर्म  का  उन्मान  गीता l कर्म है पावन त्रिपथगा, व्यक्ति का उत्थान गीता ll यदि विरथ हों जायं राघव, हो दशानन रथ सहित l कर्म से ही हो विजय पथ, वह  रथी  होगा रहित ll नित्य ही तो क

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सृजन कुछ ऐसा कराओ

6 जून 2022
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इस धरा पर पर्वतों की, श्रंखलायें और हों l चिलचिलाती धूप में, कुछ वृक्ष के भी ठौर हों ll हम बढ़ें बढ़ते रहें, और प्रकृति का आँचल रहे l हो सहज जीवन की गति भी, आत्मा में बल रहे ll        प्रकृति की बिखरी

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मिलन

6 जून 2022
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मैं निकटतम प्रेम का अधिकार पाना चाहता हूँ l होंठ व्याकुल शब्द के स्वीकार पाना चाहता हूँ ll चित्र जो तुमने बनाये, वो हमारे मित्र हैं l शब्द जो तुमने सजाये, वो हमारे चित्र हैं ll तुम गगन के ह्रदय पर,

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मैं जीवन साकार करूँगा

6 जून 2022
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मैं जीवन साकार करूँगा l जब दिनकर के तीर चलेंगे l वारिद भी जमकर बरसेंगें ll          प्रलय प्रकृति को अंक भरेगा l          निष्ठुरता में शरद       रहेगा ll                   रिक्त धरा के अंग भरूंगा l

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आशा

6 जून 2022
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सुख फिर भी मन में रहता हैl   पर्वत पर पर्वत गिर जाएं l   नदियाँ जल से प्रलय मचाये ll       पवन वेग से सब विचलित हो l       धरा हिले डग मग हो नित हो ll                रजनी के आँचल के पीछे,            

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संदेह

6 जून 2022
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 संशय मन रीता रहता है l अभी प्रात ने पलकें खोली l खंजन से प्राची है बोली ll कितनी दूर तुम्हें है जाना?  लौट वहीं फिर तुमको आना l      अंतर्मन मेरा कहता है l      संशय मन रीता रहता है ll जाने कितनी र

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उलाहना

6 जून 2022
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मन सहज होता नहीं है l प्रेम बंधन अब नहीं है, प्रेम व्याकुल हो रहा है l रेत के पथ चल रहे हैं, प्रेम आकुल हो रहा है ll तुम समय के पार जाकर, ह्रदय के उपहार दे दो l कह चलूँ दे कर तुम्हें मैं, अब मिलन के ह

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विवशता

6 जून 2022
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कितना है मन का विस्तार ! वृक्षों की शाखाओं का l चिडियो की आशाओं का l मानव की दुविधाओं का l   मिलता नहीं है उसको पार l   कितना है मन का विस्तार ! नदियों की धारा बहती है l और किनारों को सहती है l सा

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लेखनी

6 जून 2022
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भाग 1 तूलिका  लिखती  रही  संसार  के प्रत्येक पल में l ज्ञानदा के कर निहित स्वीकार के प्रत्येक पल में  ll कृष्ण-द्वैपायन  विकल थे, लेखनी कैसे चलेगी?  युद्ध के जलते  भंवर में, लेखनी  कैसे  पलेगी?  हो

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हिन्दी

6 जून 2022
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जीवन   प्राण  प्रदाता हिन्दी,  हिन्दी  मन में रहती है l बूँद-बूँद  से  प्यास  बुझाये, सुरसरिता  सी  बहती है ll दिव्य अधर प्रस्फुटित निरंतर, हिन्दी जाग्रत तन-मन है l अविरल भाव सरलतम अक्षर,हिन्दी जाग्र

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युवा

6 जून 2022
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पर्वत है  चट्टान  अटल  उदघोष भरा  हुंकार करेगा l नव ऊर्जा संचरित शिराओं में जीवन संचार करेगा ll नायक जन में नायक मन में नायक विश्व विधाता है l नायक प्रण में नायक तृण में नायक सबको भाता है ll युवा  सि

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आजादी

6 जून 2022
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दास युक्त जीवन मानव का जीवन ही अभिशाप है l मन स्वाधीन नहीं हो अपना अविकल है संताप  है ll स्वर्ण  निकेतों के  पिंजरे में स्वांस कहाँ से आएगी l बंधे हुए  जीवन में सुख की आस कहाँ से आएगी ll पल-पल प्रतिप

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बादल

6 जून 2022
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सलिल पयोधर  विचरण करते नभ के वे अभिमान हैं l स्वर्ण  रूप हैं  प्रलय  समेटे  जीवन  धन  प्रतिमान  हैं ll तैर  रहे हैं निश्छल  प्रतिपल  धरती  के  श्रंगार  बने हैं l अाच्छादित नभ में विस्फारित धरती के अध

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निकेत

6 जून 2022
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गृह आलय हैं भवन प्रेम के, निलय कुटी से नाम हैं l सम्बन्धों  के रक्त प्रफुल्लित, बहते  आठों याम हैं ll  प्रात सूर्य सँग उदित रहे जो, दिन भर श्रम को बुनता है l बाहर खग सा व्यस्त रहे वो, तिनका-तिनका चुन

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बसंत

6 जून 2022
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ऋतु बसंती ज्ञान उत्सव, मन  मधुर  मधुमास  आया l ज्ञानदा की छवि सुशोभित, वर सभी के मन समाया ll जग सुशोभित नव मुखर सुन्दर सरल मन गा रहा है l वादिनी वीणा सरलतम  ज्ञान  सुख तन  छा रहा है ll  मन प्रफुल्लित

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समाज और साहित्य

6 जून 2022
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दर्पण औ' साहित्य दिखाते नए-नए प्रतिमान l जैसी छवि बन जाती जग में वैसा ही सम्मान ll कहता है साहित्य वही सब, जो कुछ पड़े दिखाई l  व्यंग  चुटीले  कह देते हैं,  जीवन  की   सच्चाई ll देता  है  साहित्य  दृष

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सत्य

6 जून 2022
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प्राण सत्य है, सत्य वचन है, सत्य मृत्यु की सच्चाई l ईश्वर की अनुभूति सत्य है, कण-कण में है दिखलाई ll मुख से निकले शब्द निरंतर, काल-चक्र के श्रम में हैं l जिनको सत्य कहेंगे वे तो, दुविधाओं के भ्रम में

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होली

6 जून 2022
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आ गया होली का त्यौहार l  है बसंत का मौसम आया, मादक रूप खिले हैं l कलियों पर भौंरे मंडराये, उनके ह्रदय मिले हैं ll रंग, अबीर, ग़ुलाल उड़ाएं, मस्ती में सब झूमें l फगुआ गाये कोयल सुर में, मगन-मगन सब घूमें

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स्वास्थ्य

6 जून 2022
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जीवन  है  अनमोल  निरंतर  इसकी  रक्षा  करनी  है l प्रश्न जटिल है मानव सम्मुख, इसकी विपदा हरनी है ll हैं असभ्य नादान वही सब, जो अस्वच्छ रह जाते हैं l ईश्वर का आवास स्वच्छता, संत यही  कह जाते  हैं ll रो

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पृथ्वी

6 जून 2022
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पृथ्वी अपनी स्वर्ग बनेगी, यदि  हम  इसे  बनाएंगे l समझ-बूझ कर भोग करेंगे, तो मानव कहलायेंगे ll इच्छाओं को प्रबल बनाकर, दोहन इसका करते हैं l नित-नित अपने अहंकार में, विष से इसको भरते हैं ll माता जैसी प

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भारतीय नववर्ष

6 जून 2022
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चैत्र-शुक्ल  प्रतिपदा  हमारा नया वर्ष  कहलाता है l हिन्दी माह, माह हिन्दी ही, अपने मन को भाता है ll नव-फसलें, नव-पल्लव कलियाँ, नव-सरिता बहती है l नव-जीवन में, नव-अमृत मय, नव धारा सी रहती है ll नव बाल

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तिनका

6 जून 2022
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जब आंधी का वेग उड़ाकर तिनके को ले जाता है l एक-एक तिनका उड़ करके अपना नीड़ बनाता है ll प्रबल करों के झंझावत से काल चक्र आतंकित हो l पौरुष का अविराम प्रकम्पन जन-जन में परिलक्षित हो ll जलता है जो अग्नि सद

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गंगा

10 जून 2022
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ब्रह्म कमंडल से निकली यह जीवन अमृत धारा है l शिव जट-जूट उलझकर रह गई, वहीं से ही विस्तारा है ll पाल रही हो वसुंधरा को, हरित वर्ण हरियाली है l रूप अनेकों रचित तुम्हारे, अनुपम छटा निराली है ll मन पवित्र

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परिवाद

10 जून 2022
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कभी-कभी तुम्हारी सरल चितवन,  क्यों मेरे मन में संदेह  जगाती है कि तुम मेरे उतने  पास नहीं हो, जितने  मुझसे दूर?   तुम्हारी प्रत्येक जिजीविषा ने  मेरी भव्यता को उस  दृष्टि से नहीं देखा  जिस दृष्टि से

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अनुनय विनय

10 जून 2022
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तुम ह्रदय के कुंज में मुझको सदा भाया करो l कुछ न हो फिर भी हमारे स्वप्न में आया करो ll रेत के पथ चल रहे हैं, मैं अभी तो रिक्त हूँ  l तुम रसों के भाग्य हो और मैं कहां अभिसिक्त हूँ?  पुष्प सी कुसुमित

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निःशब्द

10 जून 2022
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तारों का टिमटिमाता प्रकाश  मुझसे कुछ कहता है  कि तुम इन कृत्रिम प्रकाशों  में कैसे रहते हो  मैंने एक बार ऊपर निहारा  सभी तारे मानो मेरी  विवशता पर हंस रहे हों l किन्तु मैंने उनमें अपने  उस समय का चित्

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दीप जलाएं

10 जून 2022
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आओ हम सब दीप जलाएं l अंधकार को दूर भगाएं ll कण-कण में आलोकित हो जग l जन-जन में आभूषित हो जग ll दीप ज्योति का पर्व मनाएं l अंधकार को दूर भगाएं ll भेद-भाव से दूर रहे मन l साथ चलें मिलकर हम सब जन ll

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क्या हुआ कि जनता आती है?

10 जून 2022
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क्या हुआ कि जनता आती है?   क्या नहीं हैं अपमानों के धंधे?  शोषित नहीं हैं राजाओं के बंदे?  फुटपाथों पर सोता नहीं है बचपन?  रोटी में खोता नहीं है बचपन?  प्रजातंत्र की नारी को क्या-क्या नहीं दिखाती है

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तुम जाने क्या क्या कहते हो?

10 जून 2022
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तुम जाने क्या-क्या कहते हो?  शब्दों से आकाश गिराकर, धरती  सिंचित  कर दोगे l सूरज की किरणें बरसाकर, तम के परकोटे भर दोगे ll जाने कितनी सदियाँ बीती, अंधकार भी व्याकुल है l दीपों की बाती कहती है, लौ से

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मन को कुछ विस्तार दिया है

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मन को कुछ विस्तार दिया है l विजयी को ही हार  दिया है ll संबंधों के सच्चे किस्से, सबने  बहुत सुनाये हैं  l फिर भी जाने क्यों दुनिया में अपने लगें पराये हैं ll अनुमानित खुशियों में हमने, वैरी जन भी देख

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क्या कहें किससे कहें?

10 जून 2022
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क्या कहें किससे कहें? देखता हूँ गगन में, अम्बार लगता जा रहा है l कर्म के व्यापार का, विस्तार जगता जा रहा है ll कर्म करके फल न मांगो, स्वयं ही मिल जायेगा l डूबती धरती गगन भी, प्राण भी हिल जायेगा ll  

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शिक्षा का त्यौहार

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आओ मिलकर  सभी  मनाएं  शिक्षा  का त्यौहार l जीते  हमने युद्ध अनेकों,  कभी  न  मानी   हार ll                                         दूर  हुआ  है  अंधकार  जीवन में  ज्योति जली है l कण-कण में है ज्ञान सम

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क्या वर्षा जब जीवन पानी

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क्या वर्षा जब जीवन पानी ! ********************* उमड़-घुमड़ कर बादल बरसे l खेत बाग वन उपवन सरसे ll यह पानी विकराल हो गया l बहता है घर बार खो गया ll      किसने कर दी यह मनमानी?       क्या वर्षा जब जीवन पा

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कठिन है पथ

10 जून 2022
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गीत -------====----- कठिन है पथ पथिक को पथ से मिलाना है तुम्हें l साध्य को भी साधना के पास लाना है तुम्हें ll स्वर्ग की है कल्पना, इस सत्य को पहचान लो l इस धरा के प्रस्तरों से आज तुम अनजान हो ll

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प्रभु तुम जग के पालनहार

10 जून 2022
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प्रभु तुम जग के पालनहार ll हम निरीह सन्तानो का तुम कर दो बेडा पार ll आसमान से विपदा बरसी, अब उठकर के जागो l चीर हरण में जैसे भागे, वैसे उठकर भागो l पेट सभी का जो भरता है, वही हुआ बेकार ll 1ll प्रभु त

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कभी क्या श्रमिक अश्रु तुमने बहाया?

10 जून 2022
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कभी क्या श्रमिक-अश्रु तुमने बहाया? पौरुष कहाँ उनके जैसा दिखाया ll   बहे स्वेद पानी के जैसा धरा पर  l   श्रमिक बन जले और कितना यहाँ पर l    सूरज की लाली उठे चक्षु खोले,    धरा से गगन आज कुछ भी न

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समय का आलिंगन

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समय के आलिंगन मे,  मैं दूर-दूर छिटका रहा l न जाने कब सिमट गया,  पाकर अपनी बांहों में,  एक चित्र  जिसमें मैं-मेरा चित्र-मेरी संकल्पना,  मेरे चारों ओर अपना घेरा  बनाकर बैठे मुझसे पूछते हैं l तुम किसके म

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